घर का खाना
चाट से अच्छी तो बीबी की डाट है ,
और मीठी ,मिठाई से ,तक़रार है
पेट इनसे हमारा बिगड़ता नहीं ,
बाद में मिलता जी भर हमें प्यार है
ना शुगर और न बढ़ना क्लोस्ट्रोल का
है असर ऐसा बीबी के कंट्रोल का
जेब भी अपनी ढीली है होती नहीं,
खर्च होता नहीं कोई बेकार है
जिद नहीं करती बीबी कि होटल चलें
क्योंकि वेज़ नॉनवेज संग जाते तले
सब्जी दो सौ की ,रोटी मिले तीस की ,
यूं न पैसे लुटाते समझदार है
चाट ठेले पर खाने का मन ना करे
धुल मिटटी से सब है सने से पड़े
गोलगप्पे का पानी ,भरोसा नहीं ,
कितना 'इंफेक्शियस 'और बेकार है
इसलिए छोड़ होटल के सब चोंचले
घर में बीबी के हाथों के फुलके भले
मिलती तृप्ति है सच्ची इसी खाने से,
क्योंकि खाने में घर के बसा प्यार है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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