अचार
कच्ची सी अमिया ,अगर पक जाती
तो मधुर रस से भर जाती
निराला स्वाद देती
खाने वाले को आल्हाद देती
पर बेचारी को ,बाली उमर में रोना पड़ा
स्वाद के मारों के लिए ,कुर्बान होना पड़ा
टुकड़े टुकड़े होकर कटना पड़ा
चटपटे मसालों से लिपटना पड़ा
और आने वाले साल भर तक ,
लोगों को चटखारे देने को तैयार हो गयी
सबका प्यार हो गयी
कोई भी चीज का ,
जब अधकचरी उमर में ,
इस तरह बलिदान दिया जाता है
और बाद में दिनों तक ,
उसके स्वाद का मज़ा लिया जाता है
इसे पूर्णता प्राप्त किया हुआ ,
अधूरा अफसाना कहते है
जी हाँ इसे अचार बनाना कहते है
मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
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