रूप चौदस मनाऊंगा
चाँद सा चेहरा चमकता ,केश ये काले घनेरे
रूप चौदस मनाउंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे
कपोलों के कागजों पर ,कलम से अपने अधर की ,
चुंबनों की स्याही से मैं ,प्यार की पाती लिखूंगा
प्रीत का गहरा समंदर ,है तुम्हारा ह्रदय सजनी ,
डूब कर उस समंदर में ,मैं तुम्हारी थाह लूँगा
तमसमय काली निशा को,दीप्त,ज्योतिर्मय करूंगा ,
जला कर के प्रेम दीपक ,दूर कर दूंगा अँधेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे
पुष्प सा तनबदन सुरभित ,गंध यौवन की बसी है ,
भ्र्मर सा रसपान कर ,मकरंद का आनंद लूँगा
अंग अंग अनंग रस में ,डूब कर होगा प्रफुल्लित ,
कसमसाते इस बदन को ,बांह में ऐसा कसूँगा
पौर पौर शरीर का थक , सुखानुभूति करेगा ,
संगेमरमर सा बदन ,इठलायेगा जब पास मेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चाँद सा चेहरा चमकता ,केश ये काले घनेरे
रूप चौदस मनाउंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे
कपोलों के कागजों पर ,कलम से अपने अधर की ,
चुंबनों की स्याही से मैं ,प्यार की पाती लिखूंगा
प्रीत का गहरा समंदर ,है तुम्हारा ह्रदय सजनी ,
डूब कर उस समंदर में ,मैं तुम्हारी थाह लूँगा
तमसमय काली निशा को,दीप्त,ज्योतिर्मय करूंगा ,
जला कर के प्रेम दीपक ,दूर कर दूंगा अँधेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे
पुष्प सा तनबदन सुरभित ,गंध यौवन की बसी है ,
भ्र्मर सा रसपान कर ,मकरंद का आनंद लूँगा
अंग अंग अनंग रस में ,डूब कर होगा प्रफुल्लित ,
कसमसाते इस बदन को ,बांह में ऐसा कसूँगा
पौर पौर शरीर का थक , सुखानुभूति करेगा ,
संगेमरमर सा बदन ,इठलायेगा जब पास मेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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