बुढ़ापे में बदलाव की जरूरत
अब तो तुम हो गए रिटायर ,उमर साठ के पार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने की तुमको दरकार हो गयी
अब तक बहुत निभाए तुमने ,वो रिश्ते अब तोड़ न पाते
परिस्तिथि ,माहौल देख कर ,जीवन का रुख मोड़ न पाते
वानप्रस्थ की उमर आ गयी ,मगर गृहस्थी में उलझे हो ,
छोड़ दिया तुमको कंबल ने ,तुम कंबल को छोड़ न पाते
ये तुमने खुद देखा होगा ,कि ज्यों ज्यों बढ़ रही उमर है
नहीं पूछता तुमको कोई ,तुम्हारी घट रही कदर है
अब तुम चरण छुवाने की बस ,मूरत मात्र रह गए बन कर ,
त्योहारों और उत्सव में ही ,होता तुम्हारा आदर है
त्याग तपस्या तुमने इतनी ,की थी सब बेकार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी
शुरू शुरू में निश्चित बच्चों का बदला व्यवहार खलेगा
अपनों से दुःख पीड़ा पाकर ,हृदय तुम्हारा बहुत जलेगा
ये मत भूलो ,उनमे ,तुममे ,एक पीढ़ी वाला अंतर है ,
तुमको सोच बदलना होगा सोच पुराना नहीं चलेगा
इसीलिये उनके कामों में ,नहीं करो तुम दखलंदाजी
बात बात पर नहीं दिखाओ ,अपना गुस्सा और नाराजी
वो जैसे जियें जीने दो ,और तुम अपने ढंग से जियो ,
सबसे अच्छा यही तरीका ,तुम भी राजी ,वो भी राजी
खुल कर जीने की जरूरत अब,खुद अपने अनुसार होगयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब तो तुम हो गए रिटायर ,उमर साठ के पार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने की तुमको दरकार हो गयी
अब तक बहुत निभाए तुमने ,वो रिश्ते अब तोड़ न पाते
परिस्तिथि ,माहौल देख कर ,जीवन का रुख मोड़ न पाते
वानप्रस्थ की उमर आ गयी ,मगर गृहस्थी में उलझे हो ,
छोड़ दिया तुमको कंबल ने ,तुम कंबल को छोड़ न पाते
ये तुमने खुद देखा होगा ,कि ज्यों ज्यों बढ़ रही उमर है
नहीं पूछता तुमको कोई ,तुम्हारी घट रही कदर है
अब तुम चरण छुवाने की बस ,मूरत मात्र रह गए बन कर ,
त्योहारों और उत्सव में ही ,होता तुम्हारा आदर है
त्याग तपस्या तुमने इतनी ,की थी सब बेकार हो गयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी
शुरू शुरू में निश्चित बच्चों का बदला व्यवहार खलेगा
अपनों से दुःख पीड़ा पाकर ,हृदय तुम्हारा बहुत जलेगा
ये मत भूलो ,उनमे ,तुममे ,एक पीढ़ी वाला अंतर है ,
तुमको सोच बदलना होगा सोच पुराना नहीं चलेगा
इसीलिये उनके कामों में ,नहीं करो तुम दखलंदाजी
बात बात पर नहीं दिखाओ ,अपना गुस्सा और नाराजी
वो जैसे जियें जीने दो ,और तुम अपने ढंग से जियो ,
सबसे अच्छा यही तरीका ,तुम भी राजी ,वो भी राजी
खुल कर जीने की जरूरत अब,खुद अपने अनुसार होगयी
जीवन की पद्धिति बदलने ,की तुमको दरकार हो गयी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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