पत्नी का मैके जाना
मेरी पत्नी गई है मैके
है हाल मेरे कुछ ऐसे
सुख बोलूं या दुख बोलूं
जो मुझे गई वो मुझको देके
सुख उसे इसलिए कहता
मैं आजादी से रहता
मैं अपने मन का मौजी
मन चाहे वैसा रहता
ना रोक ना टोका टाकी
और ना अनुशासन बाकी
स्वछंद गगन में उड़ता
मै बंद पिंजरे का पांखी
बस एक-दो दिन या राती
आजादी मन को भाती
फिर हर पल हर क्षण रह रह,
पत्नी की याद सताती
हो जाती शुरू मुसीबत
खाने पीने की दिक्कत
खुद खाओ खुद ही पकाओ
बर्तन मांजो की आफत
एकाकी मान ना लगता
मैं रात रात भर जगता
करवट बदलो तो बिस्तर
खाली-खाली सा लगता
बेगम जो नहीं तो गम है
तन्हाई का आलम है
बीवी को कहीं ना भेजो
अब खा ली मैंने कसम है
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment