Thursday, June 30, 2016

            बेवफा बाल

ये बाल बेवफा होते है

कितना ही इनका ख्याल रखो
कितनी ही साजसम्भाल  रखो
कितनी ही  करो कदर इनकी
सेवा सुश्रमा , जी भर  इनकी
हम सर पर इन्हे चढ़ा रखते
कोशिश कर इन्हे बड़ा रखते
अपना ही जाया  ,जान इन्हे
हम कहते अपनी शान  इन्हे
 ये   अपना  रंग  बदलते है
और साथ बहुत कम टिकते है
जैसे ही उमर गुजरती है ,
ये साफ़ और सफा होते है
ये बाल बेवफा होते है
ये बालवृन्द ,सारे सारे
होते  ही कब  है तुम्हारे
ये  होते  है   औलादों  से
रह जाते है बस  यादों से
संग छोड़ कहीं ये उड़ जाते
कुछ संग रहते कुछ झड़ जाते
ये करते अपना रंग बदला
करते हमको ,गंजा ,टकला
अहसास उमर का करवाते
मुश्किल से  साथ निभा पाते
ना रखो ख्याल,उलझा करते ,
ये खफा ,हर दफा होते है
ये बाल बेवफा होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                 सच्ची कमाई

तू इतनी मै मै करता था और डींगें मारा करता था
निज वर्चस्व दिखाने खातिर  ,ये नाटक सारे करता था
महल दुमहले बना रखे थे  ,सुख के साधन जुटा रखे थे
जमा करी अपनी दौलत पर ,सौ सौ पहरे बिठा  रखे थे
छप्पनभोग लगी थाली में ,नित होता तेरा भोजन था
खूब मनाता था रंगरलियां ,भोग विलास भरा जीवन था
बहुत दम्भ में डूबा रहता ,मै ऐसा हूँ , मै हूँ  वैसा
इतनी बड़ी सम्पदा मेरी ,कोई नहीं होगा मुझ जैसा
झुकते थे सब तेरे आगे ,बड़ी शान शौकत थी तेरी
इस माया के खातिर तूने ,करी उमर भर ,हेरा फेरी
दान धरम भी कभी किया तो,होता था वो मात्र दिखावा
श्रदधा नहीं ,अहम होता था , ईश्वर के भी साथ छलावा
आज देख ले ,क्या परिणीति है ,तेरे कर्मों की और तेरी
बचा अंत में अब तू क्या है ,केवल एक राख की ढेरी
घर की केवल एक दीवार पर ,तेरी फोटो टंगी हुई है
सूखे मुरझाये  फूलों की,उस पर  माला , चढ़ी हुई  है
इस जीवन का अंत यही है ,तो बसन्त में क्या इतराना
सच्ची एक कमाई होती ,सतकर्मों से नाम कमाना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'