समझौता
पत्नीजी नाराज़ बहुत है ,
पडी हुई मुझसे मुंह फेरे
डबल बेड के उस कोने में ,
पास नहीं आती है मेरे
और दूसरे कोने में ,मैं ,
उनसे मुंह फेरे लेटा हूँ
मुझको लगता जैसे उनसे ,
मीलों दूर ,कहीं बैठा हूँ
पर यदि वो एक करवट ले ले ,
तो दूरी हो जायेगी कम
और यदि मैं एक करवट ले लूं,
आपस में मिल जायेंगे हम
लेकिन पहल कौन करता है ,
रहा मामला यहीं अटक है
दोनों मिलन चाहते लेकिन,
लेता कौन प्रथम करवट है
जीवन में सुख छा जायेंगे ,
अपना अहम् छोड़ दें जो हम
वो लें करवट,मै लूं करवट ,
तो निश्चित ही होगा संगम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पत्नीजी नाराज़ बहुत है ,
पडी हुई मुझसे मुंह फेरे
डबल बेड के उस कोने में ,
पास नहीं आती है मेरे
और दूसरे कोने में ,मैं ,
उनसे मुंह फेरे लेटा हूँ
मुझको लगता जैसे उनसे ,
मीलों दूर ,कहीं बैठा हूँ
पर यदि वो एक करवट ले ले ,
तो दूरी हो जायेगी कम
और यदि मैं एक करवट ले लूं,
आपस में मिल जायेंगे हम
लेकिन पहल कौन करता है ,
रहा मामला यहीं अटक है
दोनों मिलन चाहते लेकिन,
लेता कौन प्रथम करवट है
जीवन में सुख छा जायेंगे ,
अपना अहम् छोड़ दें जो हम
वो लें करवट,मै लूं करवट ,
तो निश्चित ही होगा संगम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'