Friday, March 9, 2012

हिरण्यगर्भा सत्ता

हिरण्यगर्भा  सत्ता

है हिरण्य गर्भा ये सत्ता,कितने ही नेता हिरणाक्ष

कैसे करें स्वर्ण का दोहन,हरदम रहती इस पर आँख
कुछ हिरण्यकश्यप के जैसे,सत्तामद में रहते चूर
कुछ प्रहलाद ,सत्य के प्रेमी,पाते  पीड़ायें भरपूर
ईर्ष्या बनी होलिका बैठी ,गोदी में लेकर प्रहलाद
खुद जल गयी,जला ना पायी,सत्य सदा  रहता आबाद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुनो भागवत है क्या कहती

सुनो भागवत  है क्या कहती

मुझे दिला दो,स्वर्णाभूषण,तुम हरदम जिद करती रहती

                                       सुनो ,भागवत है क्या कहती
कलयुग आया था धरती  पर,बैठ परीक्षित स्वर्ण मुकुट पर
उसको ये वरदान प्राप्त है, उसका वास,  स्वर्ण के अन्दर
और तुम पीछे पड़ी हुई हो, तुमको स्वर्णाभूषण लादूं
पागल हूँ क्या,जो कलयुग को,गले तुम्हारे से लिपटा दूं
और यूं भी सोना मंहगा है,दाम चढ़ें है आसमान पर
गहनों की क्या जरुरत तुमको,तुम खुद ही हो इतनी सुन्दर
सोने का ही चाव अगर है,हम तुम साथ साथ  सो लेगे
स्वर्ण हार ना,बाहुपाश का,हार तुम्हे हम पहना देंगे
पर मै इतना  मूर्ख नहीं  जो ,घर में कलयुग आने दूंगा
स्वर्ण तुम्हे ना दिलवाऊंगा,ना ही तुमको लाने दूंगा
प्यार तुम्हारा,सच्चा गहना, तुम हो मेरे  दिल में रहती
                                      सुनो भागवत है क्या कहती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुटर -गूं

 गुटर -गूं

आओ हम तुम साथ मिल कर ,करें आपस में गुटर-गूं


गर्दनो को पास लाकर,एक दूजे से सटा कर

मै उडूं,फिर लौट आऊँ,पंख अपने फडफडा कर
चोंच में भर लाऊं दाना,और तुम्हारी चोंच में दूं
आओ हम तुम ,साथ मिल कर,करें आपस में गुटर-गूं
कोई हमको देखता है,तो हमें क्या,देखने दो
प्यार रत हम युगल प्रेमी,प्यार में बस डूबने दो
गोल आँखे,घुमा कर के,तुम मुझे,मै तुम्हे देखूं
आओ हम तुम युगल प्रेमी,करें आपस में गुटर-गूं
पास बैठें,हम सिमट कर,कभी थोड़े दूर  हट कर
एक दूजे को समर्पित,एक दूजे से लिपट कर
अंग से अपने लगा कर, पूर्ण मन की चाह कर लूं
आओ हम तुम साथ मिल कर,करें आपस में गुटर -गूं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आओ हम होली मनाये

आओ हम होली मनाये

मेट कर मन की कलुषता,प्यार की गंगा बहाये

                        आओ हम होली  मनाये
अहम् का  जब हिरनकश्यप,प्रबल हो उत्पात करता
सत्य का प्रहलाद उसकी कोशिशों से नहीं मरता
और ईर्ष्या, होलिका सी,गोद में   प्रहलाद लेकर
चाहती उसको जलाना,मगर जाती है स्वयं  जल
शाश्वत सच ,ये कथा है,सत्य कल थी,आज भी है
लाख कोशिश असुर कर ले,जीतता प्रहलाद  ही है
सत्य की इस जीत की आल्हाद को ऐसे मनाये
द्वेष सारा,क्लेश सारा, होलिका में हम जलायें
भीग जायें, तर बतर हो ,रंग में अनुराग के हम
मस्तियों में डूब जाये, गीत गायें ,फाग के हम
प्यार की फसलें उगा,नव अन्न को हम भून खायें
हाथ में गुलाल  लेकर ,एक दूजे   को     लगायें
गले मिल कर,हँसे खिलकर,ख़ुशी के हम गीत गाये
                                आओ हम होली मनाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'