मेरी माँ
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
मुझ से प्यार करती है ,मुझ पे मेहरबाँ है
उमर नब्बे के पार है
थोड़ी कमजोर और लाचार है
फिर भी हर काम करने को तैयार है
कृषकाय शरीर में नहीं दम है
मगर हौंसले कहीं से भी नहीं कम है
घर में जब भी हरी सब्जी जैसे ,
मैथी,पालक या बथुआ आता है
वो खुश हो जाती है क्योंकि ,
उसे करने को कुछ काम मिल जाता है
वो एक एक पत्ता छांट छांट कर सुधारती है
मटर की फलियों से दाने निकालती है
ये सब करके उसे मिलता है संतोष
उसमे आ जाता है वही पुराना जोश
हर काम करने के लिए आगे बढ़ती है
मना करो तो लड़ती है
जब हम कहते है कि अब आप की ,
ये सब काम करने की उमर नहीं है माता
तो वो कहती है कि कहने में क्या है जाता
काम करने की जिद कर ,करती परेशाँ है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
जब भी कोई मेहमान आता है
उसे बहुत सुहाता है
उनकी बातों में पूरी दिलचस्पी लेती है
बीच बीच में अपनी राय भी देती है
बहन,बेटियां या बहुए जब सामने पड़ती है
ये उनका ऊपर से नीचे तक निरीक्षण करती है
और अगर उनके हाथों में नहीं होती चूड़ियां
या पावों में न हो बिछूडियां
या फिर नहीं हो बिंदिया माथे पर
तो फिर ये लेती है उनकी खबर
उसे शुरू से ही छुवाछूत ,
व जातपात का बड़ा ख्याल है
इसलिए आज के जमाने में ,
इस मामले में उसका बुरा हाल है
हालांकि समय के साथ साथ ,
उसे थोड़ा कम्प्रोमाइज करना पड़ा है
और उसका परहेज कड़ा है
फिर भी दुखी रहती ख्वामखां है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
रह रह के नींद आती है
बार बार उचट जाती है
जग जाती तो गीता या रामायण पढ़ती है
और पढ़ते पढ़ते फिर सोने लगती है
खुद ही करती है अपने सब काम
आत्मविश्वास और स्वाभिमान
ये है उसकी पहचान
कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया
सब के लिए ,सब कुछ ,
सच्चे दिल से लुटाया
न पक्षपात है न बैरभाव है
सबके लिए मन में समभाव है
त्योंहार मनाने का चाव है
कब क्या पूजा करना व चढ़ाना
किस दिन क्या खाना बनाना
विधिविधान सी मनाती है हर त्योंहार
रीतिरिवाजों का उसके पास है भण्डार
यूं तो बुढ़ापे में कमजोर हो गई है याददास्त
पर अब भी याद है पुरानी सब बात
सुबह सूर्य को अर्घ्य देना,
या तुलसी को पानी चढ़ाना
शाम और सवेरे ,
मंदिर में दीपक जलाना
पूजाघर में चढ़ाना प्रसाद
खाने के पहले निकालना गौग्रास
बुढ़ापे में यही उसकी पूजा है
ये मेरी माँ है,प्यारी सी माँ है
भूख कम लगती है
फिर भी खाने की कोशिश करती है
थाली में सब चीजें पुरुसवाती है
मगर खा नहीं पाती है
दांत बहुत कम रह गए है
इसलिए चबा नहीं पाती है
बहुत पीछे पड़ने पर ,
थोड़ा बहुत निगल लेती है
रोटी के टुकड़ों को,
कटोरी के नीचे छुपा देती है
और एक मासूम सी ,
मजबूरी भरी मुस्कान लिए ,
सारा खाना जूठा छोड़ देती है
और फिर रौब से कहती है ,
जितनी भूख है उतना खा पी रही हूँ
नहीं तो बिना खाये पीये ,
क्या ऐसे ही जी रही हूँ
सुबह और शाम उसकी
स्पेशियल चाय बनती है
एक कप में तीन चीनी चम्मच डलती है
इतनी है स्वाद की मारी
जरासा नमक या मिर्च कम हो
तो रिजेक्ट है चीजें सारी
जब एकादशी का व्रत करती है
तो फिर उसे बिलकुल भी भूख ना लगती है
वो सब पर ममता बरसाती है
अपना प्यार लुटाती है
उसने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा
जो भी माँगा ,परिवार की ख़ुशी के लिए माँगा
वो सब पर अपना प्यार बांटती है
नाराज होती है तो डाटती है
खुश होकर जब मुस्काती है
अपने स्वर्णदंत चमकाती है
उसके सब बच्चे ,अपने अपने घर सुखी है ,
इसलिए हमेशा उसकी आँखों में संतोष झलका है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
मुझ से प्यार करती है ,मुझ पे मेहरबाँ है
उमर नब्बे के पार है
थोड़ी कमजोर और लाचार है
फिर भी हर काम करने को तैयार है
कृषकाय शरीर में नहीं दम है
मगर हौंसले कहीं से भी नहीं कम है
घर में जब भी हरी सब्जी जैसे ,
मैथी,पालक या बथुआ आता है
वो खुश हो जाती है क्योंकि ,
उसे करने को कुछ काम मिल जाता है
वो एक एक पत्ता छांट छांट कर सुधारती है
मटर की फलियों से दाने निकालती है
ये सब करके उसे मिलता है संतोष
उसमे आ जाता है वही पुराना जोश
हर काम करने के लिए आगे बढ़ती है
मना करो तो लड़ती है
जब हम कहते है कि अब आप की ,
ये सब काम करने की उमर नहीं है माता
तो वो कहती है कि कहने में क्या है जाता
काम करने की जिद कर ,करती परेशाँ है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
जब भी कोई मेहमान आता है
उसे बहुत सुहाता है
उनकी बातों में पूरी दिलचस्पी लेती है
बीच बीच में अपनी राय भी देती है
बहन,बेटियां या बहुए जब सामने पड़ती है
ये उनका ऊपर से नीचे तक निरीक्षण करती है
और अगर उनके हाथों में नहीं होती चूड़ियां
या पावों में न हो बिछूडियां
या फिर नहीं हो बिंदिया माथे पर
तो फिर ये लेती है उनकी खबर
उसे शुरू से ही छुवाछूत ,
व जातपात का बड़ा ख्याल है
इसलिए आज के जमाने में ,
इस मामले में उसका बुरा हाल है
हालांकि समय के साथ साथ ,
उसे थोड़ा कम्प्रोमाइज करना पड़ा है
और उसका परहेज कड़ा है
फिर भी दुखी रहती ख्वामखां है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
रह रह के नींद आती है
बार बार उचट जाती है
जग जाती तो गीता या रामायण पढ़ती है
और पढ़ते पढ़ते फिर सोने लगती है
खुद ही करती है अपने सब काम
आत्मविश्वास और स्वाभिमान
ये है उसकी पहचान
कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया
सब के लिए ,सब कुछ ,
सच्चे दिल से लुटाया
न पक्षपात है न बैरभाव है
सबके लिए मन में समभाव है
त्योंहार मनाने का चाव है
कब क्या पूजा करना व चढ़ाना
किस दिन क्या खाना बनाना
विधिविधान सी मनाती है हर त्योंहार
रीतिरिवाजों का उसके पास है भण्डार
यूं तो बुढ़ापे में कमजोर हो गई है याददास्त
पर अब भी याद है पुरानी सब बात
सुबह सूर्य को अर्घ्य देना,
या तुलसी को पानी चढ़ाना
शाम और सवेरे ,
मंदिर में दीपक जलाना
पूजाघर में चढ़ाना प्रसाद
खाने के पहले निकालना गौग्रास
बुढ़ापे में यही उसकी पूजा है
ये मेरी माँ है,प्यारी सी माँ है
भूख कम लगती है
फिर भी खाने की कोशिश करती है
थाली में सब चीजें पुरुसवाती है
मगर खा नहीं पाती है
दांत बहुत कम रह गए है
इसलिए चबा नहीं पाती है
बहुत पीछे पड़ने पर ,
थोड़ा बहुत निगल लेती है
रोटी के टुकड़ों को,
कटोरी के नीचे छुपा देती है
और एक मासूम सी ,
मजबूरी भरी मुस्कान लिए ,
सारा खाना जूठा छोड़ देती है
और फिर रौब से कहती है ,
जितनी भूख है उतना खा पी रही हूँ
नहीं तो बिना खाये पीये ,
क्या ऐसे ही जी रही हूँ
सुबह और शाम उसकी
स्पेशियल चाय बनती है
एक कप में तीन चीनी चम्मच डलती है
इतनी है स्वाद की मारी
जरासा नमक या मिर्च कम हो
तो रिजेक्ट है चीजें सारी
जब एकादशी का व्रत करती है
तो फिर उसे बिलकुल भी भूख ना लगती है
वो सब पर ममता बरसाती है
अपना प्यार लुटाती है
उसने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा
जो भी माँगा ,परिवार की ख़ुशी के लिए माँगा
वो सब पर अपना प्यार बांटती है
नाराज होती है तो डाटती है
खुश होकर जब मुस्काती है
अपने स्वर्णदंत चमकाती है
उसके सब बच्चे ,अपने अपने घर सुखी है ,
इसलिए हमेशा उसकी आँखों में संतोष झलका है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'