कोने कोने में
कहा जाता है ,
पृथ्वी के कोने कोने में ,
ईश्वर का वास है
पर पृथ्वी तो गोल है ,
और गोल वस्तु का कोई कोना नहीं होता ,
तो इन दो बातों में ,
कितना विरोधाभास है
कुछ भी हो ,कोने होते बड़े ख़ास है
दूरियां पैदा करने वाली ,
दीवारों का जब मिलन होता है
वहां कोने का जनम होता है
ये दो विपरीत दिशाओं में जाने वालों की ,
मिलनस्थली के रूप में जाने जाते है
और भूचाल की स्थिति में ,
सबसे ज्यादा सुरक्षित माने जाते है
ये अपनेआप को ,
हल्के से अँधेरे में समेटे हुए होते है
और जाने कितनी ही यादों को ,
अपने में समेटे हुए होते है
मुझे याद आता है घर का वो कोना ,
जहाँ बचपन में ,
अपनी जिद मनवाने के लिए ,
मैं कितनी ही बार रूठा था
और वो कोना मैं कैसे भुला सकता हूँ ,
जहाँ पर पहली बार ,
प्रथम मिलन और प्यार के चुंबन का ,
सुख लूटा था
कितनी ही बार जिस कोने में छुप ,
मैं दोस्तों की पकड़ में न आया ,
जब बचपन में हम खेलते थे ,
छुपमछुपाई
और स्कूल का वो कोना ,
कैसे भूल सकता हूँ ,जहाँ कितनी ही बार ,
मास्टरजी ने ,उल्टा मुंह कर कर ,
खड़े रहने की सजा थी सुनाई
सबसे छुपा कर
मैंने सिगरेट का पहला कश ,
भी एक सुनसान कोने में ही लिया था
और चोरी चोरी ,
बियर का पहला घूँट भी ,
एक कोने में ही पिया था
मेरे दिल के एक कोने में ,
अभी भी दबी पड़ी है ,
मेरे प्रथम प्रेम की ,वो मीठी यादें
वो जीने मरने की कसमें ,
वो जीवन भर साथ निभाने के वादे
जिन्हे एक कोने में रख कर
अच्छे दहेज़ के लालच में ,
मैंने बसा लिया था किसी और के संग घर
और अपने सारे आदर्शों और सिद्धांतों को ,
एक कोने में दबा कर,
दुनियादारी की भागमभाग में दौड़ रहा हूँ
और साम,दाम,दंड,भेद से ,
अपने कई काबिल साथियों को,
एक कोने में छोड़ रहा हूँ
दोस्तों ,कभी आप भी अपने दिल के अंदर ,
झांक कर देखो तो एक कोने आयेगी नज़र
आपकी कितनी ही बेवफाई ,
और कितनी ही गलतियां
जिनको छुपा कर आपने ,
अब तलक है जीवन जिया
वो सारे करम
जिनको छुपाने का आपके मन में है भरम
पर वो आपके दिल के किसी कोने में ,
दबे है पड़े
और तन्हाई में कभी ,
अपना अस्तित्व दिखाने को,
हो जाते है खड़े
कभी तड़फाते है
कभी सताते है
और हम उन्हें फिर से ,
किसी कोने में दबाकर ,
भूल जाते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '