Tuesday, May 19, 2020

कोरोना से गुहार -अलग अलग लोगों द्वारा

पुरुष द्वारा
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ओ कोरोना सर जी
दिन चल रहे तुम्हारे ,सतालो ,हो जितनी भी मरजी
पूरी तुमको ,टक्कर देंगें ,हम साहस से  भर जी
देंगे भगा ,उखाड़ तुम्हारा ,बोरिया और बिस्तर जी
वेक्सीन आ प्राण तुम्हारा ,झट से लेगा हर जी
फिर से रौनक आ जायेगी,हर घर ,गांव ,शहर जी
करते है नेतृत्व हमारा ,मोदी से लीडर जी
 ओ कोरोना सर जी

महिला द्वारा
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सुनो तुम ओ कोरोना भैया
नचा रहे सारी दुनिया को ,करवा था था थैया
अच्छे अतिथि ,तीन चार दिन ,फिर लगते है आफत
तुम दो महीने से बैठे हो ,तुम में नहीं शराफत  
बंद पड़े बाज़ार ,नहीं की ,इतने दिन से शॉपिंग
ब्यूटी के सेलून बंद ना हेयर सेटिंग कलरिंग
पति बैठ घर ,करे ऑर्डर ,ये लाओ वो लाओ
परेशान कर डाला मुझको ,बंद बंद करवाओ
फिर से चलने लगे ढंग से ,हमरी जीवन नैया
सुनो तुम ओ कोरोना भैया

बच्चे द्वारा
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अजब हो तुम कोरोना अंकल
कितने दिन से कैद कर रखा ,हमको घर के अंदर
ना क्रिकेट ,फ़ुटबाल गेम कुछ खेल सकें घर बाहर
गर्मी की छुट्टी है लेकिन ,जा न पाए नानी घर
बहुत हुआ मेरी नगरी  से ,निकल जाओ अब कल
वरना  पत्थर मार मार कर, कर दूंगा मैं  घायल
बच्चों का भी ख्याल न रखते ,तुम हो दुष्ट भयंकर
अजब हो तुम कोरोना अंकल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कहीं ऐसा न हो

हम आये थे महानगरों में ,कर काम ,कमाने कुछ पैसे
जब धंधा पानी बंद हुआ ,हम इन नगरों को छोड़ चले
इस कोरोना बिमारी ने ,कर डाला जीवन तहस नहस
ना  धन है ना ही अन्न बचा  ,मजबूर हो रिश्ता तोड़ चले
हम निकल पड़े है पैदल ही, मालूम है लम्बा कठिन सफर
घर जाना है ,घर जाना  है ,सबने ये मन में  ठान  लिया
पहुंचेंगे भी या ना पहुंचेंगे  , जो किस्मत में है ,वो होगा
मुश्किल से बचने को हमने ,मुश्किल का दामन थाम लिया
अब तक हमने ये सोचा नहीं,वहां जाके हमें क्या करना है ,
क्योँकि जब हम घर पहुंचेंगे ,खर्चा  घर का बढ़  जाएगा
हम भेजते शहरों से पैसे ,तब गाँव का घर चलता था ,
गाँवों में कमाई  ना होगी , कैसे फिर घर चल पायेगा  
 हो सकता है थोड़े दिन में ,गाँव की हुड़क कम हो जाए ,
और कन्ट्रोल में आ जाए ,ये कोरोना की महामारी  
शहरों में काम काज धंधे ,वापस पटरी पर आ जाए ,
हमको भी आने लगे  याद ,शहरों की सुख सुविधा सारी
गावों के सीमित साधन से  ,करने में गुजारा मुश्किल हो ,
मंहगाई में  करना जुगाड़ ,बच्चों की  पढाई और कपडे
ऐसा न हो कि कुछ दिन में रोजी रोटी के चक्कर में,
फिर लौट के बुद्धू घर आये और शहर हमें आना न पड़े
,
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '