Saturday, February 7, 2015

बात -रात की

              बात -रात की

तुम पडी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ऐसे भी मज़ा कहीं कोई  ,आता है जानम  सोने में
मेरी आँखों में उतर रही ,निंदिया  घुल कर ,धीरे धीरे
खर्राटे बन कर उभर रहे , साँसों के स्वर ,धीरे धीरे
तुम भी लगती जागी जागी ,हो शायद इसी प्रतीक्षा में,
मैं पास तुम्हारे आ जाऊं ,करवट भर कर ,धीरे धीरे
तुम सोच रही ,मैं पहल करूँ ,मैं सोच रहा तुम पहल करो,
लेटे है इस उधेड़बुन में, हम और तुम एक  बिछोने में
तुम पड़ी हुई उस कोने में,मैं पड़ा हुआ इस कोने में
ना तो कोई झगड़ा हम मे ,ना ही कोई  मजबूरी है
तो फिर ऐसी क्या बात हुई ,जो हम में तुम में दूरी है
मैं  सीधी  करवट एक भरता ,आ जाते है हम तुम करीब,
तुम  उलटी करवट  ले लेती  ,बढ़ जाती हम मे दूरी है 
समझौतो का हो समीकरण ,यह मधुर मिलन का मूलमंत्र ,
टकराव अहम का अक्सर बाधा बनता प्यार संजोने में 
तुम पडी हुई उस कोने में ,मैं  पड़ा हुआ इस कोने में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सब मौसम अच्छे

        सब मौसम अच्छे

जब तुम अच्छे,जब हम अच्छे
गुजरेंगे  सब  मौसम   अच्छे
प्यार भरी ठंडक  गरमी  में,
और सर्दी में बंधन   अच्छे
 तुम भी सीधे,हम भी भोले,
नहीं बनावट के कुछ लच्छे
गाँठ पड़े ना और ना टूटे  ,
प्रेम सूत  के धागे   कच्चे
हमें भुला कर रम जाएंगे,
अपने अपने घर सब बच्चे
बस हम और तुमसाथ रहेंगे ,
तुम संग गुजरें,सब दिन अच्छे 
साथ निभाना ,तुम जीवन भर,
बन कर मेरे हमदम  सच्चे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैं हूँ झाड़ू

                     मैं  हूँ  झाड़ू

सेक रहे है अपनी अपनी रोटी , नेता , सभी  जुगाड़ू
राजनीति  का शस्त्र बनी मैं ,किसे सुधारूं किसे बिगाड़ूँ
                                                मैं  हूँ झाड़ू
सुबह सुबह गृहणी हाथों में आती,घर का गंद बुहरता
स्वच्छ साफ़ हर कोना होता,और सारा घरबार चमकता
सड़कों पर और गलियों में जो बिखरा रहता सारा कचरा
मैं ही उसे साफ़ करती हूँ, गाँव,शहर  रहता है  निखरा
फिर भी घर के एक कोने में पडी उपेक्षित मैं रहती हूँ
कोई मेरे दिल से पूछे ,मैं कितनी  पीड़ा  सहती हूँ
घर भर तो मैं साफ़ करूं पर,कैसे मन की पीर बुहारूं
                                               मैं हूँ झाड़ू
 कहते है बारह वर्षों मे ,घूरे के भी दिन फिर जाते
लेकिन बरस सैकड़ों बीते,मेरे अच्छे दिन को आते
'आप'पार्टी ,लड़ी इलेक्शन ,और चुनाव का चिन्ह बनाया
मोदी जी ने मुझे उठाया और स्वच्छ अभियान  चलाया
तब से  बड़े  बड़े नेताओं, के हाथों   की शान बनी मैं
जगह जगह 'बैनर्स 'पर दिखती,एक नयी पहचान बनी मैं
चाहूँ स्वच्छ प्रशासन कर दूँ और व्यवस्था सभी सुधारूं
                                                 मैं  हूँ झाड़ू
एक सींक जब रहे अकेली ,तो खुद ही कचरा कहलाती
कई सींक मिलती ,झाड़ू बन ,घर का कचरा दूर हटाती
यही एकता की महिमा है ,यही संगठन की शक्ति है
कचरा सभी साफ़ हो जाता ,जहाँ जहाँ झाड़ू फिरती है
मोदी जी ने ,अच्छे दिन के सब को सपने दिखलाये है
और किसी के ,आये न आये ,मेरे अच्छे दिन   आये है
मेरी शान बढ़ गयी कितनी,खुशियां इतनी ,कहाँ सम्भालू
                                                  मै  हूँ  झाड़ू

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'