Wednesday, April 3, 2019

कबूतरों की बस्ती की एक सुबह 

पौ फटी 
कबूतरों की बस्ती में हलचल मची 
एक बूढी कबूतरनी ने ,
अपने पंखों को फड़फड़ाया 
और पास में सोये अपने कबूतर को जगाया 
बोली जागो प्रीतम प्यारे 
मोर्निग उड़ान पर निकल चुके है दोस्त तुम्हारे 
तुम्हे भी व्यायाम के लिए जाना है 
विटामिन डी की कमी को दूर करने ,
थोड़ी देर धूप  भी खाना है 
आलस में डूबा कबूतर जब कुछ न बोला  
तो कबूतरनी  ने उसे झिंझोड़ा 
बोली उठो ,इस बुढ़ापे में हमें ही ,
अपनी सेहत का ध्यान खुद ही रखना पडेगा 
दूसरा कोई ख्याल नहीं रखेगा 
क्योंकि बच्चे तो अपना अपना नीड़ बसा  
हो गए है हमसे अलग 
मुश्किल से ही हमें पूछते है अब 
आप उधर व्यायाम  करके आओ,
इधर मैं कुछ दाना चुग कर आती हूँ 
आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाती हूँ 
और सुनो तुम दो दिन से नहाये नहीं हो 
आते समय स्विंमिंगपूल में पंख फड़फड़ा कर आ जाना
और किसी अन्य कबूतरी से नैन मत लड़ाना 
एक बात और  याद रखना 
कुछ लोगो ने मंदिर के आसपास ,
बाजरे के दाने बिखरा रखे है ,उन्हें मत चखना 
इस तरह दाने बिखरा कर ,
ये लोग  सोचते है कि वो पुण्य कमा  रहे है 
पर दर असल वो हमारी कौम को ,
आलसी और निकम्मा बना रहे है  
 सुन कर के उनका वार्तालाप 
पड़ोस के घोसले में 'लिविंग इन रिलेशनशिप 'में
रहनेवाला एक जवान कबूतर का जोड़ा गया जाग  
 कबूतरनी ने ली अंगड़ाई 
'गुडमॉर्निंग किस' के लिए ,
कबूतर की चोंच से चोंच मिलाई 
वो मुस्कराई और बोली डार्लिंग आपका क्या प्रोग्राम है 
कहाँ गुजारनी आज की शाम है 
कबूतर बोला आज मैंने छुट्टी लेली है 
दिन  भर करना अठखेली है 
पहले हम स्वीमिंगपूल के किनारे जायेगे 
पूल में तैरती सुंदरियों के दीदार का मज़ा उठाएंगे 
बीच बीच में हम भी थोड़ी जलक्रीड़ा करेंगे 
चोंचे मिला कर ,रासलीला करेंगे 
और फिर उस चौथी मंजिल वाली बालकनी को 
अपनी इश्कगाह बनाएंगे 
गुटरगूँ कर पंख फैलाएंगे 
हंसी ख़ुशी दिन गुजारेंगे और फिर 
अपने घोंसले में लौट आएंगे 
पता नहीं क्यों लोग इतने संगदिल होते जारहे है 
जो हमारी इश्कगाहों याने अपनी बालकनियों पर ,
जाली लगवा रहे है 
वो लोग कभी जिनके प्रेमसन्देशे हम लेकर जाते थे 
कबूतर जा जा के गाने गाते थे 
आजकल वो ही गए है बन 
हमारे प्यार के दुश्मन 
बड़ी मुश्किल से कहीं कहीं मिलता है ठिकाना 
वरना तड़फता ही रहता ये दिल दीवाना 
कबूतरनी बोली छोडोजी ,
जब तक जवानी है ,मौज मना लें 
थोड़ा सा हंस लें ,थोड़ा मुस्करालें 
वरना फिर तो वो ही दूसरे कबूतरों की तरह ,
रोज रोज दाना चुगने ,दूर दूर जाना पड़ेगा 
गृहस्थी  की गाडी चलना पड़ेगा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '