वक़्त वक़्त की बात
एक जवां मच्छर ने,कहा एक बूढ़े से,
आपके जमाने में ,बड़ी सेफ लाइफ थी
ना 'हिट 'ना' डी .डी .टी .'न ही 'आल आउट 'था,
और ना धुवां देती ,कछुवे की कोइल थी
एक आह ठंडी भर,बोला बूढा मच्छर,
वो तो सब ठीक मगर ,मौज तुम उड़ाते हो
आज के जमाने में ,है इतना खुल्लापन ,
जहाँ चाहो मस्ती से ,चुम्बन ले पाते हो
हमारे जमाने में,एक बड़ी मुश्किल थी,
औरतों का सारा तन,रहता था ,ढका ,ढका
तरस तरस जाते थे ,मुश्किल से कभी,कहीं,
चूमने का मौका हम,पाते थे यदा कदा
समुन्दर के तट पर या फिर स्विमिंग पूलों पर ,
खतरा भी कम है और रौनक भी ज्यादा है
तुम तो हो खुश किस्मत ,इस युग में जन्मे हो ,
तुम्हे मौज मस्ती के,मौके भी ज्यादा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Sunday, January 13, 2013
कल और आज
कल और आज
याद हमें आये है वो दिन ,
जब ना होते थे कंप्यूटर
चालीस तक के सभी पहाड़े,
बच्चे रटते रहते दिन भर
ना था इंटरनेट उन दिनों ,
और न होते थे मोबाईल
कभी ताश या फिर अन्ताक्षरी ,
बच्चे ,खेला करते सब मिल
ना था टी वी ,ना एम .पी ,थ्री ,
ना ही मल्टीप्लेक्स ,माल थे
ना ही को- एजुकेशन था ,
हम सब कितने मस्त हाल थे
हाथों में स्कूल बेग और ,
कोपी ,कलम, किताबें होती
रामायण के किस्से होते ,
देश प्रेम की बातें होती
रहता था परिवार इकठ्ठा,
पांच ,सात होते थे बच्चे
घर में चहल पहल रहती थी ,
सच वो दिन थे कितने अच्छे
अब तो छोटे छोटे से ,बच्चों,,
के हाथों में है मोबाईल
कंप्यूटर और लेपटोप के ,
बिना पढाई करना मुश्किल
नन्हे बच्चे जो कि अपना ,
फेस तलक ना खुद धो सकते
खोल फेस बुक,सारा दिन भर,
मित्रों से है बातें करते
अचरज,छोटे बच्चों में भी ,
पनप रहा ये नया ट्रेंड है
उमर दस बरस की भी ना है ,
दस से ज्यादा गर्ल फ्रेंड है
मेल भेजते फीमेलों को,
बात करें स्काईप पर मिल
ट्वीटर पर ट्विट करते रहते ,
हरदम ,हाथों में मोबाईल
हम खाते थे लड्डू,मठरी ,
ये खाते है पीज़ा ,बर्गर
ईयर फोन लगा कानों में,
गाने सुनते रहते दिन भर
क्योकि अब ,एक बेटा ,बेटी ,
एकाकी वाला बचपन है
मम्मी,पापा ,दोनों वर्किंग ,
भाग दौड़ वाला जीवन है
'हाय'हल्लो 'की फोर्मलिटी में,
अपनापन हो गया गौण है
इतना 'आई' हो गया हावी ,
'आई पेड 'है ,'आई फोन 'है
ये ही अगर तरक्की है तो ,
इससे हम पिछड़े अच्छे थे
मिलनसार थे,भोलापन था ,
प्यार मोहब्बत थी,सच्चे थे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
याद हमें आये है वो दिन ,
जब ना होते थे कंप्यूटर
चालीस तक के सभी पहाड़े,
बच्चे रटते रहते दिन भर
ना था इंटरनेट उन दिनों ,
और न होते थे मोबाईल
कभी ताश या फिर अन्ताक्षरी ,
बच्चे ,खेला करते सब मिल
ना था टी वी ,ना एम .पी ,थ्री ,
ना ही मल्टीप्लेक्स ,माल थे
ना ही को- एजुकेशन था ,
हम सब कितने मस्त हाल थे
हाथों में स्कूल बेग और ,
कोपी ,कलम, किताबें होती
रामायण के किस्से होते ,
देश प्रेम की बातें होती
रहता था परिवार इकठ्ठा,
पांच ,सात होते थे बच्चे
घर में चहल पहल रहती थी ,
सच वो दिन थे कितने अच्छे
अब तो छोटे छोटे से ,बच्चों,,
के हाथों में है मोबाईल
कंप्यूटर और लेपटोप के ,
बिना पढाई करना मुश्किल
नन्हे बच्चे जो कि अपना ,
फेस तलक ना खुद धो सकते
खोल फेस बुक,सारा दिन भर,
मित्रों से है बातें करते
अचरज,छोटे बच्चों में भी ,
पनप रहा ये नया ट्रेंड है
उमर दस बरस की भी ना है ,
दस से ज्यादा गर्ल फ्रेंड है
मेल भेजते फीमेलों को,
बात करें स्काईप पर मिल
ट्वीटर पर ट्विट करते रहते ,
हरदम ,हाथों में मोबाईल
हम खाते थे लड्डू,मठरी ,
ये खाते है पीज़ा ,बर्गर
ईयर फोन लगा कानों में,
गाने सुनते रहते दिन भर
क्योकि अब ,एक बेटा ,बेटी ,
एकाकी वाला बचपन है
मम्मी,पापा ,दोनों वर्किंग ,
भाग दौड़ वाला जीवन है
'हाय'हल्लो 'की फोर्मलिटी में,
अपनापन हो गया गौण है
इतना 'आई' हो गया हावी ,
'आई पेड 'है ,'आई फोन 'है
ये ही अगर तरक्की है तो ,
इससे हम पिछड़े अच्छे थे
मिलनसार थे,भोलापन था ,
प्यार मोहब्बत थी,सच्चे थे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
संक्रांति पर
संक्रांति पर
आया सूर्य मकर में ,आये नहीं तुम मगर
पर्व उत्तरायण का आया ,पर दिया न उत्तर
तिल तिल कर दिल जला,खिचड़ी बाल हो गये
और गज़क जैसे हम खस्ता हाल हो गये
अगन लोहड़ी की है तपा रही ,इस तन को
अब आ जाओ ,तड़फ रहा मन,मधुर मिलन को
मकर संक्रांति की शुभ कामनाये
घोटू
आया सूर्य मकर में ,आये नहीं तुम मगर
पर्व उत्तरायण का आया ,पर दिया न उत्तर
तिल तिल कर दिल जला,खिचड़ी बाल हो गये
और गज़क जैसे हम खस्ता हाल हो गये
अगन लोहड़ी की है तपा रही ,इस तन को
अब आ जाओ ,तड़फ रहा मन,मधुर मिलन को
मकर संक्रांति की शुभ कामनाये
घोटू
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