Sunday, October 14, 2018

      चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से


उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट

 हुआ तिहत्तर मैं   ,तुम अड़सठ 

एक दूसरे पर अवलम्बित ,

एक सिक्के के हम दोनों पट

      सीधे सादे ,मन के सच्चे    

      पर दुनियादारी में कच्चे

     बंधे भावना के बंधन में,

    पर दुनिया कहती हमको षठ

कोई मिलता ,पुलकित होते 

याद कोई आ जाता ,रोते

तुम भी पागल,हम भी पागल,

 नहीं किसी से है कोई घट

       पलपल जीवन ,घटता जाता

      भावी कल ,गत कल बन जाता

       कभी चांदनी है पूनम की,

      कभी  अमावस का श्यामल पट

इस जीवन के  महासमर में

हरदम हार जीत के डर  में

हमने हंस हंस कर झेले है,

पग पग पर कितने ही संकट

      मन में क्रन्दन ,पीड़ा  ,चिंतन

      क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण

      अब तो ऐसे लगता जैसे ,

      देने लगा  बुढ़ापा   आहट

मैं गधे का गधा ही रहा 


प्रियतमे तुम बनी ,जब से अर्धांगिनी ,

      मैं हुआ आधा ,तुम चौगुनी बन  गयी 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,

         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 


मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,

     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 

पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,

  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 

मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,

    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 

मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,

       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी

 

मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,

     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 

तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,

     सबको सिंचित किया ,नीर जी भर दिया  

मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,

            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी बन  गयी    

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,

        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी

 

मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,

         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 

तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,

        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   

मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,

          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी

मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,

          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी

  

फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,

        तुम सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 

मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,

          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही

मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,

          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 

मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,

          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी

   

प्यार का ऐसा चस्का लगाया मुझे,

        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 

अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,

           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 

मैं तो उबली सी सब्जी सा फीका रहा ,

        प्रियतमे दाल तुम माखनी बन गयी 

 मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,

          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन  गयी 

हम सीधेसादे 'घोटू 'है 


ना तो कुछ लागलगावट है 

ना मन में कोई बनावट  है 

हम है सौ प्रतिशत खरी चीज,

ना हममे कोई मिलावट है

          हम सदा मुस्कराते रहते 

          हँसते  रहते , गाते  रहते 

         जियो और जीने दो सबको ,

         दुनिया को समझाते रहते 

कितना ही वातावरण भले ,

गंदा,दूषित ,दमघोटू  है 

हम सीधेसादे  'घोटू ' है 


ना  ऊधो से लेना  कोई 

ना माधो  का देना कोई 

है हमे पता जो बोयेंगे ,

हम काटेंगे फसलें वो ही 

        इसलिए सभी से मेलजोल 

        बोली में  मिश्री सदा घोल 

        हम सबसे मिलते जुलते है 

        दिल के दरवाजे सभी खोल 

ना  मख्खनबाज ,न चमचे है ,

ना ही चरणों पर लोटू  है 

हम सीधेसादे 'घोटू ' है 


मिल सबसे करते राम राम 

है हमे काम से सिरफ काम 

ना टांग फटे में कोई के ,

ना ताकझांक ना तामझाम 

           हम सीधी राह निकलते है 

           कुछ लोग इसलिए जलते है 

           है मुंह में राम ,बगल में पर ,

           हम छुरी न लेकर चलते है 

अच्छों के लिए बहुत अच्छे ,

खोटो के लिए पर खोटू  है 

हम सीधेसादे 'घोटू ' है