गधे का अंतर्द्वंद
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इस धूप भरी दोपहरी में,उस पीपल के तरु के नीचे
वो कौन तपस्वी खड़ा हुआ है मौन ,शांत,आँखें मीचे
लाल रेत पर,तीन पैर पर,खड़ा हुआ काया साधे
नयन निराले सुन्दर हैं,रह रह खुलते,आधे आधे
कितना बुजुर्ग है यह साधू,चांदी से बाल हुए सारे
शोभा उसकी बढ़ा रहे है,उसके कान बड़े प्यारे
देवदूत सा लगता है,उजला तन है,उजला मन है
लोभ,मोह से बचने को ,पैरों में पगहा बंधन है
कई कीट,कितने मच्छर,तुन तुन करते,बाधा डाले
पर ध्यान न उसका तोड़ सके,कितने प्रयत्न ही कर डाले
जनहित ही इसने जन्म लिया ,यह सेवाव्रती,धीर प्राणी
कितना परोपकारी है ये,कितना बलवान वीर प्राणी
कितने ही जुलम हुए उस पर,पर सहनशील ने सभी सहा
पर सहनशीलता ,सेवा पर ,लोगों ने उसको गधा कहा
वह सोच रहा है खड़ा खड़ा,है कैसी रीत जमाने की
सब को तो बस आज पड़ी है,अपना काम बनाने की
सब अपने में ही मस्त,दर्द औरों का कोई क्या जाने
है नहीं जोहरी कोई जो ,मुझसे हीरे को पहचाने
लिफ्ट न मुझको मिलती,कितनी लिफ्ट किया करता हूँ मै
लेबर की डिगनिटी में,विश्वास किया करता हूँ मै
लेकिन अपने श्रम की कीमत,मै क्या पाता हूँ बेचारा
दो,चार,पांच,डंडो के संग,कुछ भूसा,कुछ सूखा चारा
नाम बहुत है लेकिन कुछ भी,पूछ नहीं है लेबर की
इसीलिए तो कद्र नहीं,मुझसे श्रमशील जानवर की
मुझको अब तक जान न पायी,जनता कितनी बेसुध है
मै नेता हूँ,मुझमे नेतागिरी का हर गुण मौजूद है
मेरी आवाज बुलंद बहुत,जो जन जन तक है जा सकती
नयी क्रांति फूंक सकेगी,नया सवेरा ला सकती
सहनशील मै नेता सा,मेरे कितने आलोचक है
खड़े कान है टोपी से ,जो नेतागिरी के सूचक है
मुझे पुराणों ने भी माना,बात पुरानी,युग त्रेता
लंका के राजा रावण का,भाई था मै खर नेता
राजनीती का चतुर खिलाड़ी,देखे कई रंग मैंने
सेनापति बन युद्ध किया था,अरे राम के संग मैंने
मुझे याद है बुरी तरह से,मैंने उन्हें खदेड़ा था
बन्दर सब डर कर भागे जब चींपों का स्वर छेड़ा था
सारी दुनिया जान गयी थी,वीर बहुत हूँ सुन्दर मै
और डिफेन्स के लिए एक ही हूँ उपयुक्त मिनिस्टर मै
कलाकार हूँ,कविता करना भी तो मेरे गुण में है
कितनी प्रयोगवादी कविता,मेरी चींपों की धुन में है
बड़े से बड़ा कवि भी मेरे आगे घुटने टेक रहा
नहीं समझ में कविता आती ,तो कहता मै रेंक रहा
मै गायक हूँ,गीत सुना कर,सबका मन बहलाता हूँ
मंत्रमुग्ध सब हो जाते जब अष्ठम स्वर में गाता हूँ
और खिलाडी,मत पूंछो,मुझको बोक्सिंग का शौक लगा
मेरी दुलत्तियों के आगे,कोई ना मुझसे जीत सका
मेरी गदही का दूध बहुत,पोषक,सौन्दर्य प्रसाधक है
बजन और मोटापा कम ,करने में बड़ा सहायक है
मै क्या हूँ,कितना अच्छा,पूछो धोबी,कुम्हारों से
कितनी बड़ी मुसीबत मैंने दूर करी बेचारों से
वे बहुत दुखी थे बेचारे,मैंने उन पर उपकार किया
उनके दुःख दूर किये मैंने,बोझा ढोना स्वीकार किया
मेरी देवी ने कद्र करी,सचमुच मै कितना पावन हूँ
जिनकी सब पूजा करते है,मै शीतला माँ का वाहन हूँ
मोरमुकुट से कान खड़े है,मै भी तो अवतारी हूँ
विष्णु चारभुज धारी है,मै किन्तु चार पग धारी हूँ
शंकर के सर पर एक चन्द्र,मेरे सर पर दो चाँद जड़े
वह एक आह ठंडी भर कर,धीरे से रेंका खड़े खड़े
वह सोच रहा था बेचारा,मेरी किस्मत भी रंग लाये
शांति और सेवा का नोबल प्राईज मुझको मिल जाये
इतने में गरम गरम लू का,एक हल्का सा झोंका आया
साज सजे ,सुर मिले सभी,चींपों कर गदहा चिल्लाया
चींपों,चींपों,चींपों,चींपों,मै जाग गया दुनिया वालों
मै क्रांति मचा दूंगा जग में,अब भी संभलो,देखो,भलो
फिर किया दंडवत भगवन को,वो लगा लोटने ढेरी में
अंगों में रमी भभूति फिर,उस धूप भरी दोपहरी में
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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इस धूप भरी दोपहरी में,उस पीपल के तरु के नीचे
वो कौन तपस्वी खड़ा हुआ है मौन ,शांत,आँखें मीचे
लाल रेत पर,तीन पैर पर,खड़ा हुआ काया साधे
नयन निराले सुन्दर हैं,रह रह खुलते,आधे आधे
कितना बुजुर्ग है यह साधू,चांदी से बाल हुए सारे
शोभा उसकी बढ़ा रहे है,उसके कान बड़े प्यारे
देवदूत सा लगता है,उजला तन है,उजला मन है
लोभ,मोह से बचने को ,पैरों में पगहा बंधन है
कई कीट,कितने मच्छर,तुन तुन करते,बाधा डाले
पर ध्यान न उसका तोड़ सके,कितने प्रयत्न ही कर डाले
जनहित ही इसने जन्म लिया ,यह सेवाव्रती,धीर प्राणी
कितना परोपकारी है ये,कितना बलवान वीर प्राणी
कितने ही जुलम हुए उस पर,पर सहनशील ने सभी सहा
पर सहनशीलता ,सेवा पर ,लोगों ने उसको गधा कहा
वह सोच रहा है खड़ा खड़ा,है कैसी रीत जमाने की
सब को तो बस आज पड़ी है,अपना काम बनाने की
सब अपने में ही मस्त,दर्द औरों का कोई क्या जाने
है नहीं जोहरी कोई जो ,मुझसे हीरे को पहचाने
लिफ्ट न मुझको मिलती,कितनी लिफ्ट किया करता हूँ मै
लेबर की डिगनिटी में,विश्वास किया करता हूँ मै
लेकिन अपने श्रम की कीमत,मै क्या पाता हूँ बेचारा
दो,चार,पांच,डंडो के संग,कुछ भूसा,कुछ सूखा चारा
नाम बहुत है लेकिन कुछ भी,पूछ नहीं है लेबर की
इसीलिए तो कद्र नहीं,मुझसे श्रमशील जानवर की
मुझको अब तक जान न पायी,जनता कितनी बेसुध है
मै नेता हूँ,मुझमे नेतागिरी का हर गुण मौजूद है
मेरी आवाज बुलंद बहुत,जो जन जन तक है जा सकती
नयी क्रांति फूंक सकेगी,नया सवेरा ला सकती
सहनशील मै नेता सा,मेरे कितने आलोचक है
खड़े कान है टोपी से ,जो नेतागिरी के सूचक है
मुझे पुराणों ने भी माना,बात पुरानी,युग त्रेता
लंका के राजा रावण का,भाई था मै खर नेता
राजनीती का चतुर खिलाड़ी,देखे कई रंग मैंने
सेनापति बन युद्ध किया था,अरे राम के संग मैंने
मुझे याद है बुरी तरह से,मैंने उन्हें खदेड़ा था
बन्दर सब डर कर भागे जब चींपों का स्वर छेड़ा था
सारी दुनिया जान गयी थी,वीर बहुत हूँ सुन्दर मै
और डिफेन्स के लिए एक ही हूँ उपयुक्त मिनिस्टर मै
कलाकार हूँ,कविता करना भी तो मेरे गुण में है
कितनी प्रयोगवादी कविता,मेरी चींपों की धुन में है
बड़े से बड़ा कवि भी मेरे आगे घुटने टेक रहा
नहीं समझ में कविता आती ,तो कहता मै रेंक रहा
मै गायक हूँ,गीत सुना कर,सबका मन बहलाता हूँ
मंत्रमुग्ध सब हो जाते जब अष्ठम स्वर में गाता हूँ
और खिलाडी,मत पूंछो,मुझको बोक्सिंग का शौक लगा
मेरी दुलत्तियों के आगे,कोई ना मुझसे जीत सका
मेरी गदही का दूध बहुत,पोषक,सौन्दर्य प्रसाधक है
बजन और मोटापा कम ,करने में बड़ा सहायक है
मै क्या हूँ,कितना अच्छा,पूछो धोबी,कुम्हारों से
कितनी बड़ी मुसीबत मैंने दूर करी बेचारों से
वे बहुत दुखी थे बेचारे,मैंने उन पर उपकार किया
उनके दुःख दूर किये मैंने,बोझा ढोना स्वीकार किया
मेरी देवी ने कद्र करी,सचमुच मै कितना पावन हूँ
जिनकी सब पूजा करते है,मै शीतला माँ का वाहन हूँ
मोरमुकुट से कान खड़े है,मै भी तो अवतारी हूँ
विष्णु चारभुज धारी है,मै किन्तु चार पग धारी हूँ
शंकर के सर पर एक चन्द्र,मेरे सर पर दो चाँद जड़े
वह एक आह ठंडी भर कर,धीरे से रेंका खड़े खड़े
वह सोच रहा था बेचारा,मेरी किस्मत भी रंग लाये
शांति और सेवा का नोबल प्राईज मुझको मिल जाये
इतने में गरम गरम लू का,एक हल्का सा झोंका आया
साज सजे ,सुर मिले सभी,चींपों कर गदहा चिल्लाया
चींपों,चींपों,चींपों,चींपों,मै जाग गया दुनिया वालों
मै क्रांति मचा दूंगा जग में,अब भी संभलो,देखो,भलो
फिर किया दंडवत भगवन को,वो लगा लोटने ढेरी में
अंगों में रमी भभूति फिर,उस धूप भरी दोपहरी में
मदन मोहन बहेती 'घोटू'