Sunday, May 22, 2016

           थोथा चना -बाजे घना

बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
        जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
बधें है ,दकियानूसी   पुराने  विचारों से ,
       अभी तक ,कैद से उनकी ,निकल  नहीं पाये
बिल्ली जो काटती रस्ता है तो ये रुक जाते ,
        राहुकालम में ,कोई  काम ,ये नहीं करते
छींक दे कोई तो इनके कदम सहम जाते ,
        कोई भी अपशकुन से आज भी बहुत डरते 
जिस  दिशा में हो दिशाशूल ,नहीं जाते है,
        मुताबिक़ वक़्त के बिलकुल भी नहीं ढल पाये 
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
             जरा  भी  खुद  को  मगर  ये  बदल  नहीं  पाये
सोम को दूध चढ़ाते है शिव की मूरत पर,
                         शनि को तैल चढ़ाते है शनि देवा पर
श्राद्ध में पंडितों को प्रेम से खिलाते है ,
                          बूढ़े माँ बाप की  करते नहीं  सेवा पर
  आदमी चलते चलते चाँद तलक पहुँच गया ,
                        ग्रहों के चक्र से पर ये नहीं निकल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
                      जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
छू लिया ,बेटियों ने आसमां सफलता का ,
                          बेटे और बेटी में ये अब भी मानते अंतर
दिखाने के लिए बाहर है कुरता खादी  का,
                        पहन के रख्खा है बनियान विदेशी   अंदर
ऐसे उलझे हुए है ,रूढ़ियों ,रिवाजों में ,
                     दो कदम भी समय के संग नहीं चल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
                        जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                   
   डूबता जहाज-भागते चूहे

बहुत हो गया ,अब ना करनी चमचेबाजी
ये लो अपनी 'लकुटी कामरी 'अब अम्मा जी
झूंठी निष्ठां दिखा ,कब तलक तुम्हे साथ दें
एक एक कर निकल रहे सब राज्य हाथ से
और तुम हो कि सिरफ फायदा  अपना देखो
बेटेजी के  राजतिलक  का   सपना  देखो
न तो तुम्हारा बेटा कुरसी पर बैठेगा
ये लगता है ,ना वो घोड़ी कभी चढ़ेगा
स्वामिभक्त हम,इसीलिये कुछ नहीं बोलते
कब तक  ,उसके  आगे पीछे ,रहें डोलते
ना तो उसमे दम है और ना काबलियत है
इसीलिये ,हर जगह हो रही ये फजीयत है
अब ना हमसे ,होती है ,ये स्वामिभक्ति
उसके पीछे  चलें ,हाथ में लेकर तख्ती
तेरा लल्ला,झल्ला है ,क्या पकडे पल्ला
बैंकॉक को भाग जाएगा ,ये  ऐकल्ला
और यहाँ हम ,बैठे क्या पीटेंगे  ताली
नित्य उजागर होगी  जब करतूतें काली
अब तक आशा थी ,कि शायद बदल जाए दिन
 देख हवा का रुख ये लगता,अब नामुमकिन
कोई किरण आशा की नज़र नहीं अब आती
 कुछ न मिलेगा , ना मंत्री पद,न ही बाराती
हम लेंगे दल बदल ,कहीं बिठला कर गोटी
मिल ही जायेगी,कोई कुर्सी ,छोटी मोटी
कब तक करते रहें तुम्हारी हाँ में हांजी
ये लो अपनी 'लकुटी कामरी 'अब अम्माजी
बहुत हो गयी ,अब ना होती चमचेबाजी

घोटू
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