Saturday, March 28, 2015

पापा तो पापा रहते है

        पापा तो पापा रहते है

अपनी पीड़ा खुद सहते है
नहीं किसी से कुछ कहते है
बच्चे बदल जाए कितने भी,
पापा तो पापा रहते है
मन में ममता ,प्रेम वही है
कोई भी दुष्भाव  नहीं है
जिन्हे प्यार से पाला पोसा
जिन पर इतना किया भरोसा
प्यार लुटाया जिन पर इतना
इक दिन बदल  जाएंगे  इतना
बिलकुल उन्हें भुला वो  बैठे
पर क्या ,है तो उनके बेटे
भले मर गयी  उनकी गैरत
फिर भी उनसे वही मोहब्बत
बस मन में घुटते रहते  है
पापा तो पापा रहते  है
जब काटे यादों का कीड़ा
मन में  होने लगती पीड़ा
यही सोचते रहते मन में
कि उनके लालन पोषण में
में ही शायद रही कसर है
या फिर कोई बाह्य असर है
वर्ना वो क्यों करते ऐसा 
ये व्यवहार परायों जैसा
पर वो खुश तो ये भी खुश है
पास नहीं,मन में ये दुःख है
याद आती ,आंसू बहते है
पापा तो पापा रहते है 
शायद होगी कुछ मजबूरी
तभी बनाली उनने  दूरी
ऐसे तो वे ना थे वरना
बदल गए तो अब क्या करना
जब भी कभी कभी  मिल जाते
हो प्रसन्न उनके दिल जाते 
बैठे मन में  आस लगाए
शायद उन्हें सुबुद्धि आजाए
है नादान  ,नासमझ बच्चे
शायद वक़्त  बनादे अच्छे 
आस लगाए बस रहते है
पापा तो पापा  रहते  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



नव निर्माण

                   नव निर्माण

धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
               तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है
बिना  पतझड़ ,नयी कोंपल ,नहीं आती है वृक्षों पर,
               अँधेरी रात  ढलती तब  ,सुबह का भान  होता  है 
फसल पक जाती,कट जाती,तभी फसलें नयी आती,
                बीज से वृक्ष ,वृक्ष से फल ,फलों से बीज होते है
कोई जाता,कोई आता,यही है चक्र जीवन का ,
                 कभी सुख है कभी दुःख है ,कभी हम हँसते ,रोते है
जहाँ जितनी अधिक गहरी ,बनी बुनियाद होती है ,
                 वहां उतनी अधिक ऊंची ,बना करती  इमारत है
चाह जितनी अधिक गहरी ,किसी की दिल में होती है ,
                  उतनी ज्यादा अधिक ऊंची ,चढ़ा करती मोहब्बत है
कोई ऊपर को चढ़ता है ,कोई नीचे उतरता है ,
                  ये तुम पर है ,चढ़ो,उतरो ,वही सोपान   होता  है
धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
                   तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

पड़ोसन भाभी

         पड़ोसन भाभी

कल पड़ोसन ने शिकायत दागी
भाईसाहब ,मैं तो बहुत छोटी हूँ,
 फिर आप मुझे क्यों कहते  है भाभी
हमने कहा आपकी  बात सही है
आप छोटी तो है ,मगर ,
आपको बेटी कहना भी ठीक नहीं है
क्योंकि बाप बेटी का रिश्ता,
 बड़ा नाजुक होता है
छोटी छोटी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती,
तो बड़ा  दुःख होता है
आपको मैं कह नहीं सकता हूँ 'साली'
क्योंकि साली लगती है गाली
और ये शायद आपके पति को भी न भाये ,
क्योंकि साली कहलाती आधी  घरवाली
'बहू' कहने की नहीं है मेरी मर्जी
क्योंकि बहू को हमेशा ,
सास  ससुर  से   रहती है 'एलर्जी '
एक देवर भाभी का ही ऐसा रिश्ता है
जिसमे  भाईचारा  झलकता  है
हंसी मज़ाक की भी होती है आजादी
इसलिए आपको  हम बुलाते है भाभी

घोटू

पैसे तेरे रूप अनेक

         पैसे तेरे रूप अनेक

साधू कहते तुझको 'माया'
मंदिर में कहलाय 'चढ़ावा '
 बीबी मांगे कह कर' खर्चा'
सभी तरफ है तेरी चर्चा
'भीख 'भिखारी कह कर मांगे
ले सरकार 'टैक्स' कहलाके
मांगे कोर्ट कहे 'जुर्माना'
मिले किसी को बन हर्जाना
रेल और बस में कहे 'किराया'
स्कूल मे तू ' फीस 'कहाया
'यूरो','पोंड' तो कहीं 'डॉलर '
 तेरा भूत चढ़ा है सब पर
जैसा देश  है वैसा भेष
पैसे  तेरे  रूप अनेक
गुंडा मांगे कह'रंगदारी'
अफसर की तू 'रिश्वत 'प्यारी
चपरासी का 'चायपान'है
हर मुश्किल का तू निदान है
'पत्र पुष्प' कहलाय कहीं पर
दे  सरकार 'सब्सिडी'कह कर
सौदों में कहलाय 'कमीशन'
प्यारी लगती तेरी खन खन
'टिप'है कहीं,कहीं 'नज़राना'
कोई तुझे कहता 'शुकराना'
ले मजदूर कहे'मजदूरी'
नौकर की तू 'तनख्वाह'पूरी
शादी में कहलाय 'दहेज़'
पैसे  तेरे  रूप  अनेक
नेता अफसर खाते है सब
तू ही 'लक्ष्मी ' तू ही 'दौलत'
कभी'ब्याज' तो कभी 'मुनाफ़ा'
दिन दिन दूना होय इजाफा
पाँव नहीं  पर तुझे चलाते
 पंख नहीं पर तुझे उड़ाते
कोई बहाता पानी जैसा
कितने रूप धरे तू पैसा
तेरा रंग है अजब निराला 
कहीं सफ़ेद ,कहीं तू काला
छुपा बैंक के खातों में तू
कभी पर्स तो हाथों में तू
मन हरषाता तुझको देख
पैसे तेरे  रूप अनेक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गाँठ

             गाँठ
अगर प्रेम के  धागे  कभी टूट जाते है
भले गाँठ पड़ जाती लेकिन जुड़ जाते है
शादी का बंधन है जनम जनम का बंधन
ये रिश्ता तब बनता जब होता गठबंधन
अगर गाँठ में पैसा तो दुनिया झुकती है
बात गाँठ में बाँधी ,सीख हुआ करती  है
लोग गांठते रहते  मतलब की यारी है
रौब गांठने वाले  बाहुबली  भारी   है
किसी सुई में जब भी धागा जाय पिरोया   
बिना गाँठ के ,फटा वस्त्र ना जाता सिया
कंचुकी हो   या साड़ी ,सबके मन भाते है
बिना गाँठ के ,ये तन पर ना टिक पाते है
बिना गाँठ के नाड़ा ,रस्सी का टुकड़ा है
गाठों के ही बंधन से संसार  जुड़ा  है
खुली गाँठ,कितने ही राज खुला करते है
गाँठ बाँध ,रस्सी पर सीढ़ी से चढ़ते है
बाहुपाश भी तो एक गांठों का बंधन है
गाँठ पड़  गयी तो क्या,जुड़े जुड़े तो हम है
घोटू

मैं औरत हूँ

            मैं औरत हूँ

मैं औरत हूँ
कोमल ह्रदय,कामिनी सुन्दर,स्नेहिल ममता की मूरत हूँ
विधि की सर्वोत्तम रचना हूँ,मैं अनमोल निधि ,अमृत  हूँ
सरस्वती सी ज्ञानवती हूँ,और  लक्ष्मी  की सम्पद   हूँ
मैं सीता सी सहनशील हूँ, और सावित्री का पतिव्रत हूँ
माँ हूँ कभी,कभी बहना हूँ,पत्नी कभी  खूबसूरत   हूँ
परिवार की मर्यादा हूँ,और हर घर की मैं  इज्जत हूँ
जिसकी छाँव  तले सब पलते ,हरा भरा वह अक्षयवट हूँ
मुझको अबला कहने वालों ,मैं तो दुर्गा की ताकत हूँ
मैं बेटी ,पर लोग  भ्रूण में ,हत्या करते ,मैं आहत  हूँ
मैं औरत हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'