Friday, November 30, 2018

मेरा जीवन भर का दोस्त -चाँद 

चाँद से मेरा रिश्ता है पुराना 
बचपन में उसे कहता था चंदामामा 
मेरी जिद पर ,मम्मी के बुलावे पर ,
वो मुझ संग खेलने ,पानी के थाली में आता था 
मेरे इशारों पर ,हिलता डुलता था ,
नाचता था ,हाथ मिलाता था 
और जब जवानी आयी तो बिना मम्मी को बताये 
हमने कितनी ही चन्द्रमुखियों से नयन मिलाये 
और फिर एक कुड़ी फंस  गयी 
'तू मेरा चाँद ,मैं तेरी चांदनी कहने वाली ,
मेरे दिल में बस गयी 
वक़्त के साथ उस चंद्रमुखी ने 
हमें एक चाँद सा बेटा दिया ,
फिर एक चन्द्रमुख बेटी आयी 
और मेरे घरआंगन में ,चांदनी मुस्करायी 
चांदनी की राह में ,कई रोड़े ,बादलों से अड़े 
सुख और दुःख ,
कभी कृष्णपक्ष के चाँद की तरह घटे ,
कभी शुक्लपक्ष के चाँद की तरह बढ़े 
जिंदगी के आकाश में कई चंद्रग्रहण आये ,
कई मुश्किलों में फँसा 
कभी राहु ने डसा ,कभी केतु ने डसा 
और फिर शुद्ध हुआ 
समय के साथ वृद्ध हुआ 
और चाँद के साथ ,मेरी करीबियत और बढ़ गयी है ,
बुढ़ापे की इस उमर में 
बचपन में थाली में बुलाता था और अब,
चाँद खुद आकर बैठ गया है मेरे सर में 
बचे खुचे उजले बालों की बादलों सी ,चारदीवारी बीच ,
जब मेरी चमचमाती चंदिया चमकती है 
बीबी सहला कर मज़े लेती है ,
पर आप क्या जाने मेरे दिल पर क्या गुजरती है 
जब चंद्रमुखिया ,'हाई अंकल  कह कर पास से  निकलती है 

घोटू 

अचानक क्यों ?

शादी के बाद शुरु शुरू में ,
हम पत्नी को कभी डार्लिंग,कभी गुलबदन 
कभी 'हनी ' कह कर बुलाया करते थे 
और इस तरह अपना प्यार जताया करते थे 
पर वक़्त के साथ ;ढले  जज्बात 
एक दुसरे का नाम लेकर करने लगे बात 
पर इस सत्योत्तर की उम्र में ,एक पार्टी में ,
जब हमने उन्हें 'हनी 'कह कर पुकारा 
तो वो चकरा  गयी ,उन्हें लगा प्यारा 
घर आकर उनसे गया नहीं रहा 
बोली ऐसा आज मुझमे तुमने क्या देखा ,
जो इतने वर्षों बाद 'हनी 'कहा 
देखो सच सच बताना 
तुम्हे हमारी कसम,कुछ ना छुपाना 
हमने कहा ,सच तो ये है डिअर 
हमारी उमर हो रही है सत्योत्तर 
कभी  कभी याददास्त छोड़ देती है साथ 
कोशिश करने पर भी तुम्हारा नाम नहीं आरहा था याद 
सच तो ये है कि सोचते सोचते ,रह रह कर 
हमने तुम्हे तब पुकारा था 'हनी 'कह कर 
तुम तो यूं भी हमारे प्यार में सनी हो 
हमारे मन भाती ,मीठी सी 'हनी 'हो 

घोटू  
बीबियों का इकोनॉमिक्स 

सुनती हो जी 
बाजार जा रहा हूँ ,
कुछ लाना क्या ?
हाँ ,एक पाव काजू ,
एक पाव बादाम 
और एक पाव किशमिश ले आना 
मुझे गाजर का हलवा है बनाना 
पति सारा मेवा ले आया 
पांच दिन बाद उसे याद आया  
पर बीबीजी ने गाजर का हलवा नहीं चखाया 
वो बोला उस दिन सात सौ के ड्राय फ्रूट मगाये थे 
गाजर का हलवा नहीं बनाया 
पत्नीजी बोली अभी गाजर बीस रूपये किलो है ,
पंद्रह की हो जायेगी ,तब बनाउंगी 
चार किलो में बीस रूपये बचाऊंगी 
ऐसी होती है औरतों की इकोनॉमिक्स ,
सात सौ का मेवा डालेंगी
पर गाजर सस्ती होने के इन्तजार में ,
हलवा बनाना टालेंगी  
और इस तरह  बीस रूपये बचालेंगी 

घोटू 

Friday, November 9, 2018

       कार्तिक के पर्व 

धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत 
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक 
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन 
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन 
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन   की 
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की 
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका 
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट  तरीका 
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते 
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते 
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन 
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन 
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन 
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते  वास   देवगण 
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन 
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण 
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा 
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का 
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर 
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर 
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे 
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे 
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य  बहुत हो जाते संचित 
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ  सुनिश्चित 
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये 
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
मुस्कराना सीख लो

जिंदगी में हर ख़ुशी मिल जायेगी,
आप थोडा मुस्कराना सीख लो
रूठ जाना तो बहुत आसन है,
जरा रूठों को मनाना सीख लो
जिंदगी है चार दिन की चांदनी,
ढूंढना अपना ठिकाना सीख लो
अँधेरे में रास्ते मिल जायेंगे,
बस जरा अटकल लगाना सीख लो
विफलताएं सिखाती है बहुत कुछ,
ठोकरों से सीख पाना, सीख लो
सफलता मिल जाये इतराओ नहीं,
सफलता को तुम पचाना सीख लो
कौन जाने ,नज़र कब,किसकी लगे,
नम्रता सबको दिखाना सीख लो
बुजुर्गों के पाँव में ही स्वर्ग है,
करो सेवा,मेवा पाना सीख लो
सैकड़ों आशिषें हैं बिखरी पड़ी,
जरा झुक कर ,तुम उठाना सीख लो
जिंदगी एक नियामत बन जायेगी,
बस सभी का प्यार पाना सीख लो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


आम आदमी

एक दिन हमारी प्यारी पत्नी जी ,
आम खाते खाते बोली ,
मेरी समझ में ये नहीं आता है
मुझे ये बतलाओ ,आम आदमी ,
आम आदमी क्यों कहलाता है
हमने बोला ,क्योंकि वो बिचारा ,
सीधासादा,आम की तरह ,
हरदम काम आता है
कच्चा हो तो चटखारे ले लेकर खालो
चटनी और अचार बनालो
या फिर उबाल कर पना बना लो
या अमचूर बना कर सुखालो
और पकने पर चूसो ,या काट कर खाओ
या मानगो शेक बनाओ
या पापड बना कर सुखालो ,
या बना लो जाम
हमेशा,हर रूप में आता है काम
वो जीवन भी आम की तरह ही बिताता है
जवानी में हरा रहता है ,
पकने पर पीला हो जाता है
कच्ची उम्र में खट्टा और चटपटा ,
और बुढापे में मीठा, रसीला हो जाता है
जवानी में सख्त रहता है ,
बुढापे में थोडा ढीला हो जाता है
और लुनाई भी गुम हो जाती,
वो झुर्रीला हो जाता है
अब तो समझ में आ गया होगा ,
आम आदमी ,आम आदमी क्यों कहलाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          झुनझुना
बचपने में रोते थे तो ,बहलाने के वास्ते ,
                          पकड़ा देती थी हमारे हाथ में माँ, झुनझुना
ये हमारे लिए कुतुहल ,एक होता था बड़ा ,
                          हम हिलाते हाथ थे  और बजने लगता झुनझुना
हो बड़े ,स्कूल ,कालेज में जो पढ़ने को गए ,
                          तो पिताजी ने थमाया ,किताबों का झुनझुना
बोले अच्छे नंबरों से पास जो हो जायेंगे ,
                            जिंदगी भर बजायेंगे ,केरियर  का झुनझुना
फिर हुई शादी हमारी ,और जब बीबी मिली ,
                            पायलों की छनक ,चूड़ी का खनकता झुनझुना
ऐसा कैसा झुनझुना देती है पकड़ा बीबियाँ,
                            गिले शिकवे भूल शौहर ,बजते  बन के झुनझुना
 जिंदगी भर लीडरों ने ,बहुत बहकाया हमें ,
                             दिया पकड़ा हाथ में ,आश्वासनों का झुनझुना
और होती बुढ़ापे में ,तन की हालत इस तरह ,
                              होती हमको झुनझुनी है,बदन जाता झुनझुना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'    
रोज त्योंहार कर लेते

तवज्जोह जो हमारी तुम ,अगर एक बार कर लेते 
तुम्हारी जिंदगी में हम ,प्यार ही प्यार भर देते 
खुदा ने तुम पे बख्शी हुस्न की दौलत खुले हाथों,
तुम्हारा क्या बिगड़ता हम  ,अगर दीदार कर लेते 
पकड़ कर ऊँगली तुम्हारी ,हम पहुंची तक पहुँच जाते ,
इजाजत पास आने की,जो तुम एक बार गर देते 
तुम्हारे होठों की लाली ,चुराने की सजा में जो ,
कैद बाहों में तुम करती ,खता हर बार कर लेते 
तुम्हारे रूप के पकवान की ,लज्जत के लालच में,
बिना ही भूख दावत हम ,सौ  सौ बार कर लेते 
बिछा कर पावड़े हम पलकों के ,तुम्हारी राहों में ,
उम्र भर तुमको पाने का ,हम इन्तेजार कर लेते 
तुम्हारे रंग में रंग कर,खेलते रोज होली हम, 
जला दिये दीवाली के ,रोज त्यौहार कर लेते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Archive for May, 2014
रस के तीन लोभी
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   रस के तीन लोभी 
            भ्रमर 
गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं  गाया करता  
खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता 
गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम वर्ण मैं 
सबके संग ,हिलमिल कर रास रचाया करता 
मैं हूँ रस का लोभी,महक मुझे है प्यारी ,
मधुर मधु पीता  हूँ,मधुप कहाया  करता 
                
                   तितली  
फूलों जैसी नाजुक,सुन्दर ,रंग भरी हूँ 
बगिया में मंडराया करती,मैं पगली हूँ 
रंगबिरंगी ,प्यारी,खुशबू मुझे सुहाती 
ऐसा लगता ,मैं भी फूलों की  पंखुड़ी  हूँ 
वो भी कोमल ,मैं भी कोमल ,एक वर्ण हम,
मैं पुष्पों की मित्र ,सखी हूँ,मैं तितली हूँ 
               
             मधुमख्खी 
भँवरे ,तितली सुना रहे थे ,अपनी अपनी 
प्रीत पुष्प और कलियों से किसको है कितनी 
पर मधुमख्खी ,बैठ पुष्प पर,मधु रस पीती ,
 मधुकोषों में भरती ,भर सकती वो जितनी 
मुरझाएंगे पुष्प ,उड़ेंगे तितली ,भँवरे ,
संचित पुष्पों की यादें है मधु में कितनी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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  May 31, 2014   ghotoo    Leave a comment
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देखो ये कैसा जीवन है
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     देखो ये कैसा जीवन है

गरम तवे पर छींटा जल का 
जैसे  उछला उछला  करता
फिर अस्तित्वहीन हो जाता, 
बस  मेहमान चंद  ही पल का  
जाने कहाँ किधर खो जाता ,
सबका ही वैसा जीवन है 
देखो ये कैसा जीवन है 
मोटी सिल्ली ठोस बरफ की 
लोहे के रन्दे  से घिसती 
चूर चूर हो जाती लेकिन,
फिर बंध सकती है गोले सी 
खट्टा  मीठा शरबत डालो,
चुस्की ले, खुश होता मन है 
देखो ये कैसा जीवन  है 
होती भोर निकलता सूरज 
पंछी संग मिल करते कलरव 
होती व्याप्त शांति डालों  पर,
नीड छोड़ पंछी उड़ते  जब 
नीड देह का ,पिंजरा जैसा,
और कलरव ,दिल की धड़कन है 
देखो ये कैसा जीवन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

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 May 31, 2014   ghotoo    Leave a comment
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ग़ज़ल
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            ग़ज़ल

जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे 
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे 
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे 
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे 
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे 
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे 
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे 
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 28, 2014   ghotoo    Leave a comment
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कुर्सी
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           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर 
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर  
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर 
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर     

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 27, 2014   ghotoo    Leave a comment
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सलाह
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           सलाह 
एक दिन हमारे मित्र  बड़े परेशान थे 
क्या करें,क्या ना करें,शंशोपज में थे, हैरान थे 
हमने उनसे कहा ,सलाह देनेवाले बहुत मिलेंगे,
मगर आप अपने को इस तरह साँचें में ढाल  दें 
जो बात समझ में न आये ,उसे एक कान से सुनकर,
दूसरे कान से निकाल दें 
आप सबकी सुनते रहें 
मगर करें वही ,जो आपका दिल  कहे
लगता है उन्होंने मेरी बात पर अमल कर लिया है 
मेरी सलाह को इस कान से सुन कर,
उस कान से निकाल दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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अच्छे दिन आने लगे है
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      अच्छे दिन आने लगे है

वो भी दिन थे ,जब दस जनपथ,
                      कहता सूर्य उगा करता था 
जब बगुला भी राजहंस बन,
                     मोती सिर्फ चुगा करता था 
'मौन'बना कुर्सी की शोभा ,
                      कठपुतली बन नाचा करता,
जब तक 'टोल टैक्स'ना भर दो,
                       सारा काम  रुका था करता   
चोरबाजारी ,बेईमानी ,
                          घोटालों की चल पहल थी  
 चमचे  और चाटुकारों की,
                           सभी तरफ होती हलचल थी 
देखो मौसम बदल रहा है,
                        अब अच्छे दिन आने को है 
प्रगतिशील,कर्मठ मोदी जी,
                          अब सरकार बनाने को है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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जनाजा -हसरतों का
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      जनाजा -हसरतों का 
 
शून्य पर आउट हुई मायावती जी,
            मुलायम का मुश्किलों से लगा चौका 
सोनिया जी सौ से आधे से भी कम में,
              सिमटी ,ऐसा  नतीजों ने दिया  चौंका 
सोचते थे करेंगे स्कोर अच्छा ,
                सत्ता में दिल्ली की शायद मिले मौका 
और मिल कर बनाएंगे तीसरा एक ,
                 मोर्चा हम,सभी सेक्युलर  दलों का 
रह गए पर टूट कर के सभी सपने ,
                 दे गयी जनता हमें इस बार धोका 
लहर मोदी की चली कुछ इस तरह से ,
                  जनाजा निकला  सभी की हसरतों का

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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चुनाव के बाद चिंतन

  चुनाव के बाद का चिंतन -कोंगेस का 
                       १ 
क्या बतलाएं ,हम पर कैसी बीती है 
कल तक भरी हुई गगरी ,अब रीती   है 
हुआ तुषारापात  सभी आशाओं  पर ,
हार गए हम , अबके  जनता  जीती है
                     २ 
सपने सारे मिटे , धूल में,बिखर गए 
नहीं तालियां,मिली गालियां ,जिधर गए   
उड़ते थे स्वच्छंद ,आज हम अक्षम है ,
वोटर  ऐसे  पंख हमारे   क़तर  गए 
                   ३ 
कुछ  कर्मो  के  फल से ,कुछ नादानी में 
ध्वस्त हुए ,मोदी की  तेज सुनामी  में 
बचे खुचे हम,मिल कर आज करें चिंतन ,
डूब गए क्यों ,हम चुल्लू भर पानी में

चुनाव के बाद चिंतन -मुलायम जी का 
           
लहर मोदी की चली ,उड़ गए सब के होश है 
पांच सीटें मिली हमको,जनता का आक्रोश है 
गांधी के परिवार ने पर पायी दो सीटें सिरफ ,
उनसे ढाई गुना है हम,हमको ये संतोष है

घोटू

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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संगत का असर

          संगत का असर

तपाओ आग में तो निखरता है रंग सोने का,
                          मगर तेज़ाब में डालो तो पूरा गल ही जाता है
है मीठा पानी नदियों का,वो जब मिलती समंदर से ,
                           तो फिर हो एकदम  खारा ,बदल वो जल ही जाता है   
असर संगत  दिखाती है,जो जिसके संग रहता है,
                            वो उसके रंग में रंग  धीरे धीरे  ,खिल ही जाता  है 
अलग परिवारों से पति पत्नी होते ,साथ रहने पर,
                            एक सा सोचने का ढंग उनका  मिल ही जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 24, 2014   ghotoo    Leave a comment
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ब्याह तू करले मेरे लाल

            घोटू  के   पद 
       ब्याह तू करले मेरे लाल

ब्याह तू करले मेरे लाल 
नयी बहू के पग पड़ करते कितनी बार ,निहाल 
होनी थी जो हुई ,मिटा दे ,मन का सभी मलाल 
जनता के भरसक सपोर्ट का,रहा यही जो  हाल 
मोदी की सरकार चलेगी ,अब दस पंद्रह साल 
अपना बैठ ओपोजिशन मे ,बिगड़ जाएगा हाल 
चमचे भी सब  ,मुंह फेरेंगे,देख   समय  की चाल 
मैं बूढी,बीमार  आजकल, तबियत  है   बदहाल 
चाहूँ देखना , हँसता गाता , मै , तेरा   परिवार 
युवाशक्ति बन कर उभरेंगे ,तेरे  बाल  गोपाल 
अपने अच्छे दिन आएंगे ,तब फिर से एकबार 
ब्याह तू,करले मेरे लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 23, 2014   ghotoo    Leave a comment
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सुबह की धूप

          सुबह की धूप

सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है ,
                       ये है पहला प्यार ,धरा से  सूरज का  
प्रकृति का उपहार बड़ा ये सुन्दर है,
                       खुशियों का संसार,खजाना सेहत का 
   धूप नहीं ये नयी नवेली  दुल्हन है ,
                        नाजुक नाजुक सी कोमल, सहमी ,शरमाती 
उतर क्षितिज की डोली से धीरे धीरे ,
                         अपने  बादल के घूंघट पट को सरकाती 
प्राची के रक्तिम कपोल की लाली है ,
                            उषा का ये प्यारा प्यारा  चुम्बन है 
अंगड़ाई लेती अलसाई किरणों का,
                             बाहुपाश में भर पहला आलिंगन है 
निद्रामग्न निशा का आँचल उड़ जाता,
                              अनुपम उसका रूप झलकने लगता है 
तन मन में भर जाती है नूतन उमंग ,
                              जन जन में ,नवजीवन जगने लगता है 
करने अगवानी नयी नयी इस दुल्हन की,     
                               कलिकाये खिलती ,तितली  है करती  नर्तन 
निकल नीड से पंछी कलरव करते है,
                                बहती शीतल पवन,भ्रमर करते  गुंजन 
 जगती ,जगती ,क्रियाशील होती धरती ,
                                शिथिल पड़ा जीवन हो जाता ,जागृत सा 
सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है,
                                 ये है पहला प्यार ,धरा पर   सूरज का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर 
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर  
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर 
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर     

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

       ग़ज़ल

जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे 
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे 
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे 
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे 
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे 
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे 
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे 
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लड़ाई और प्यार

चम्मच से चम्मच टकराते,जब खाने की टेबल पर ,
तो निश्चित ये बात समझ लो,खाना है स्वादिष्ट बना
नज़रों से नज़रें टकराती,तब ही प्यार पनपता है ,
लडे नयन ,तब ही तो कोई ,राँझा कोई हीर बना
एक दूजे को गाली देते ,नेता जब चुनाव लड़ते ,
मतलब पड़ने पर मिल जाते ,लेते है सरकार बना
मियां बीबी भी लड़ते है,लेकिन बाद लड़ाई के,
होता है जब उनका मिलना,देता प्यार मज़ा दुगुना

घोटू

ऐसा भी होता है

चाहते हैं लोग बिस्कुट कुरकुरे,
भले चाय में भिगो कर खाएंगे
कितनी ही सुन्दर हो पेकिंग गिफ्ट की,
मिलते ही रेपर उतारे जाएंगे
पहनती गहने है सजती ,संवरती ,
है हरेक दुल्हन सुहाग रात को,
जबकि होता है उसे मालूम ये,
मिलन में, ये सब उतारे जाएंगे

घोटू

बूढ़ों में भी दिल होता है

होता सिर्फ जिस्म बूढा है,
जो कुछ नाकाबिल होता है
पर जज्बात भड़कते रहते,
बूढ़ों में भी दिल होता है
सबसे प्यार महब्बत करना
और हुस्न की सोहबत करना
ताक,झाँक,छुप कर निहारना
चोरी चोरी ,नज़र मारना
जब भी देखें , फूल सुहाना
भँवरे सा उसपर मंडराना
सुंदरता की खुशबू लेना
प्यार लुटाना और दिल देना
ये सब बातें, उमर न देखे
निरखें हुस्न ,आँख को सेंकें
दिल पर अपने काबू रखना ,
उनको भी मुश्किल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
उनके दिल का मस्त कबूतर
उड़ता रहता नीचे , ऊपर
लेता इधर उधर की खुशबू
करता रहता सदा गुटरगूं
घरकी चिड़िया रहती घर में
खुद उड़ते रहते अम्बर मे
चाहे रहती, ढीली सेहत
पर रहती अनुभव की दौलत
काम बुढ़ापे में जो आती
उनकी दाल सदा गल जाती
दंद फंद कर के कैसे भी ,
बस पाना मंज़िल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
जब तक रहती दिल की धड़कन
तब तक रहता दीवानापन
भले बरस वो ना पाते है
लेकिन बादल तो छाते है
हुई नज़र धुंधली हो चाहे
माशूक ठीक नज़र ना आये
होता प्यार मगर अँधा है
चलता सब गोरखधंधा है
भले नहीं करते वो जाहिर
अपने फ़न में होते माहिर
कैसे किसको जाए पटाया,
ये अनुभव हासिल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुलहनामा -बुढ़ापे में

हमें मालूम है कि हम ,बड़े बदहाल,बेबस है,
नहीं कुछ दम बचा हम में ,नहीं कुछ जोश बाकी है ,
मगर हमको मोहब्बत तो ,वही बेइन्तहां तुमसे ,
मिलन का ढूंढते रहते ,बहाना इस बुढ़ापे में
बाँध कर पोटली में हम,है लाये प्यार के चांवल,
अगर दो मुट्ठी चख लोगे,इनायत होगी तुम्हारी,
बड़े अरमान लेकर के,तुम्हारे दर पे आया है ,
तुम्हारा चाहनेवाला ,सुदामा इस बुढ़ापे में
ज़माना आशिक़ी का वो ,है अब भी याद सब हमको,
तुम्हारे बिन नहीं हमको ,ज़रा भी चैन पड़ता था ,
तुम्हारे हम दीवाने थे,हमारी तुम दीवानी थी,
जवां इक बार हो फिर से ,वो अफ़साना बुढ़ापे में
भले हम हो गए बूढ़े,उमर तुम्हारी क्या कम है ,
नहीं कुछ हमसे हो पाता ,नहीं कुछ कर सकोगी तुम ,
पकड़ कर हाथ ही दो पल,प्यार से साथ बैठेंगे ,
चलो करले ,मोहब्बत का ,सुलहनामा ,बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          दानी श्रेष्ठ चन्द्रमा 

सूर्य से ले रौशनी तू उधारी में 
            ,मुफ्त सबको चांदनी  बांटे  सुहानी 
अपनी सोलह कलायें सब पर बिखेरे ,
          तुझसे बढ़ कर भला होगा कौन दानी 
समुन्दर मंथन किया ,अमृत पिया था ,
              शरद पूनम पर उसे भी तू लुटाता 
कभी घटता ,कभी बढ़ता ,चमचमाता ,
             सुन्दरीमुख ,चन्द्रमुख है कहा जाता 
एक तू ही देव महिलाएं जिसे सब ,
              भाई कह, बच्चों का मामा बोलती है 
एक तू ही देख कर जिसको सुहागन ,
                 बरत करवा चौथ वाला खोलती है 
एक तू ही है जिसे नजदीक पाकर ,
              मारने लगता उछालें ,उदधि का जल 
एक तू ही चांदनी जिसकी हमेशा ,
                सुहानी सुखदायिनी है ,मृदुल शीतल  
प्रेमियों के हृदय की धड़कन बढ़ाता 
                    ,तारिकाओं से घिरा रहता सदा है 
शिवजी के मस्तक पे शोभित चन्द्रमा तू ,
                    सबसे ज्यादा तू ही पूजित देवता है  

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
                                     



लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

दीपावली के बाद दूसरे  दिन

भाईदूज को  लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है

और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है

दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी

यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी

हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना

पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना

जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत

और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत

और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे

उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे

'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है

और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है

बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी

तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी

और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना

तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना

और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल

तो वहां,सत्ता और विपक्ष,

एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'

अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर

और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर

और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी

पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी

और चाइना वालों का भरोसा नहीं,

वीसा देंगे या ना देंगे

फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे

तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना

फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

दीपावली के बाद दूसरे  दिन

भाईदूज को  लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है

और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है

दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी

यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी

हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना

पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना

जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत

और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत

और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे

उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे

'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है

और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है

बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी

तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी

और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना

तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना

और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल

तो वहां,सत्ता और विपक्ष,

एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'

अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर

और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर

और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी

पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी

और चाइना वालों का भरोसा नहीं,

वीसा देंगे या ना देंगे

फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे

तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना

फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे
—————————————
छोड़ नफरत,बीज बोओ प्यार के,
चमन में कुछ फूल खिल ही जायेगे
पत्थरों के कालेजों में मोम के,
चंद कतरे तुम्हे मिल ही जायेंगे
समर्पण की सुई,धागा प्रेम का,
फटे रिश्ते,कुछ तो सिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी जोर है,,
कलेजे हों सख्त,हिल ही जायेगे
यज्ञ   का फल मिलेगा जजमान को,
आहुति में फेंके तिल ही जायेंगे
बेवफा तुम और हम है बावफा,
इस तरह तो टूट दिल ही जायेंगे
अगर पत्थर फेंकियेगा कीच में,
चंद  छींटे तुम्हे मिल ही जायेंगे
करके देखो नेता की आलोचना,
कई चमचे,तुम पे पिल ही जायेगे
कोई भी हो देश कोई भी शहर,
एक दो सरदार मिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी है कशिश,
पत्थरों के दिल पिघल ही जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
——————————————–
जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस  बेंक  में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस.  पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 8, 2018

घरघुस्सू 

एक तो नयी नयी शादी के बाद 
छोड़ कर प्रियतमा का साथ 
घर से बाहर न निकलना ,
आपके पत्नी के प्रति प्रेम का परिचायक है 
दूसरा जब धूमिल हो वातावरण 
फैला हो भयंकर प्रदूषण 
तो घर से बाहर न निकलना ,
आपकी सेहत के लिए लाभ दायक है 
ऐसे में कोई अगर आपको घरघुस्सू  कहे 
तो ये उसका हक है 
पर वो नालायक है 

घोटू 

Saturday, November 3, 2018

कैसे कर स्वीकार लूं ?

प्रेम दीपक जला मन मंदिर में उजियाला करूं 
केश जो हैं हुए उजले ,उन्हें रंग ,काला करूँ 
फेसबुक पर गीत रोमांटिक लिखूं,डाला करूं 
नित नए फैशन के कपडे ,पहन, कर शृंगार लूं 
मगर मैं बूढा हुआ ये ,कैसे कर स्वीकार लूं 

,मानता हूँ,ओज वाणी का जरा  हो कम गया  
मानता हूँ ,जोश का  जज्बा जरा अब थम गया 
ये भी सच है ,बहारों का अब नहीं मौसम रहा 
भावनाएं ,पर मचलती, कैसे मन को मार लूं 
मगर मैं बूढा हुआ ये ,कैसे कर स्वीकार लूं 

उम्र के वरदान को मैं ,ऐसे सकता खो नहीं 
अपने मन को मार लेकिन  जिया जाता यों नहीं 
देख सकता चाँद को तो चंद्रमुखी को क्यों नहीं 
हुस्न से और जवानी से ,क्यों न कर मैं प्यार लूं 
मगर मैं बूढा हुआ ये कैसे कर स्वीकार लूं 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दीवारें 

चार दीवारें हमेशा,मिल बनाती आशियाँ 
मगर उग आती है अक्सर ,कुछ दीवारें दरमियाँ 
गलतफहमी ने  बना दी ,बीच में थी दूरियां ,
वो हमारे और तुम्हारे ,बीच की दीवार थी 

नफरतों की ईंट पर ,मतलब का गारा था लगा 
कच्चा करनी ने चिना था ,रही हरदम डगमगा 
प्यार की हल्की सी बारिश में जो भीगी ,ढह गयी ,
वो हमारे और तुम्हारे बीच की दीवार थी 

घोटू 

Friday, November 2, 2018

रावण का पुनर्जन्म

सीता सी शुद्ध पवन 
का जब जब करे हरण 
प्रदूषण का रावण 
कलुषित कर वातावरण 

पकड़ में जब आता 
जलाया वो जाता 
आतिशबाजियां  छोड़ ,
पर्व मनाया जाता 

पुनः  धूम्र उत्सर्जन 
धूमिल हो  वातावरण 
बार बार जीवित हो ,
प्रदूषण का वो रावण 

घोटू