Saturday, March 31, 2012

मातृ ऋण

मातृ ऋण
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
माता की सेवा कर,थोडा सा मातृऋण चुका रहा हूँ
माँ,जो बुढ़ापे के कारण,बीमार और मुरझाई है
उनके चेहरे पर संतुष्टि,मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
मुझको तो बस अशक्त माँ को देवदर्शन करवाना है
न श्रवणकुमार बनना है,न दशरथ के बाण खाना है
और मै अपनी झोली ,माँ के आशीर्वादों से भरता जा रहा हूँ
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संकल्प

          संकल्प
         
बहुत कुछ दिया धरती माँ ने,
                         बदले में हम क्या देते है
बढ़ा रहे है सिर्फ प्रदूषण,
                         और कचरा फैला देते है
जग हो जगमग,स्वच्छ ,सुगन्धित,
                        एसे दीप जलाएं हम सब,
पर्यावरण सुधारेंगे  हम,
                         ये संकल्प आज लेते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'