Friday, August 14, 2015

हम दोनों

         हम दोनों
अहंकार से एक भरा ,एक है चारा चोर
पहला है छप्पन छुरी ,और दूजा मुंहजोर
एक भालू उल्टा चढ़े,एक गुर्राता  बाघ,
एक पीना चाहे शहद,और एक सत्ताखोर
दोनों ही घबरा रहे,आया बब्बर शेर ,
इसीलिए है हो गया ,दोनों में गठजोड़
बिल्ली मौसी खा गयी,बुरी तरह से मात ,
वो भी है संग आ गयी,सभी हेकड़ी छोड़ 
एक खुद को चदन कहे,और दूजे को सांप ,
दोनों ही विष उगलते ,मचा रहे है शोर
एक दूजे को गालियां,देते थे जो रोज,
शुरू हो गया दोस्ती ,का अब उनमे दौर
दोनों ही है पुराने ,घुटे हुए और घाघ ,
राजनीति डी.एन.ऐ.,दोनों का कमजोर
उत्तर गए मैदान में,सबने  कसी लंगोट,
सब के सब है कह रहे'ये दिल मांगे मोर'

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कैसे कह दें हम है स्वतंत्र ?

       कैसे कह दें हम है स्वतंत्र  ?

बचपन में मात पिता बंधन,
               मस्ती करने पर मार पड़े
फिर स्कूल के अनुशासन में,
               हम बेंचों पर भी हुए खड़े
जब बढे हुए तो पत्नी संग ,
               बंध  गया हमारा गठबंधन
 बंध कर बाहों के बंधन में ,
           करदिया समर्पित तन और मन  
उनके बस एक इशारे पर ,
           नाचा करते थे सुबह शाम
वो जो भी कहती,हम करते ,
          इस कदर हो गए गुलाम    
फिर फंसे गृहस्थी चक्कर में ,
          और काम काज में हुए व्यस्त
कोल्हू के बैल बने,घूमे,
           मेहनत कर कर के हुए पस्त
फिर बच्चों का लालन पालन ,
           उनकी पढ़ाई और होम वर्क
बंध  गए इस तरह बंधन में,
            बेडा ही अपना हुआ गर्क
जब हुए वृद्ध तो है हम पर 
            लग गए सैंकड़ो  प्रतिबन्ध
डॉक्टर बोला है डाइबिटीज ,
             खाना मिठाई अब हुई बंद
बंद हुआ तला खानापीना ,
              हम ह्रदय रोग से ग्रस्त हुए
उबली सब्जी और मूंग दाल ,
             हमरोज रोज खा त्रस्त हुए
आँखे धुंधलाई ,सुंदरता का ,
                    कर सकते दीदार नहीं
चलते तो सांस फूलती है,
              कुछ करने तन तैयार नहीं
तकलीफ हो गयी घुटनो में,
              और तन के बिगड़े सभी तंत्र
बचपन से लेकर मरने तक,
               बतलाओ हम कब है स्वतंत्र
थोड़े बंधन थे सामाजिक,
                तो कुछ बंधन  सांसारिक थे
कुछ बंधन बंधे भावना के,
                कुछ बंधन पारिवारिक थे
हरदम ही रहा कोई बंधन ,
                हम अपनी मर्जी चले नहीं
और तुम कहते ,हम हैं स्वतंत्र ,
                ये बात उतरती   गले नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'