Tuesday, February 2, 2016

           अपनी दिल्ली छोड़ कर

अपना मफलर ,अपनी टोपी ,अपनी दिल्ली छोड़ कर
भाग रहे बंगलूर को हो ,इलाज कराने दौड़ कर
' आड 'और 'ईवन 'चक्कर में ,दिल्ली की जनता को सता
सड़कों पर फैला कर ढेरों ,कूड़ा ,करकट , रायता
पोलल्युशन को बढ़ा गए हो ,तुम अपना मुख मोड़ कर
अपना मफलर ,अपनी टोपी,अपनी दिल्ली छोड़ कर
मुश्किल से तुम भाग रहे हो ,यह तुम्हारा  ढोंग है
खांसी का इलाज है अदरक  और शहद है,लोंग है
हाल ठीक करते हो अपना और दिल्ली बदहाल है
नहीं दूध के धुले हुए तुम,क्या ये कोई चाल है
और ठीकरा इस सबका ,औरों के सर पर फोड़ कर
भाग रहे तुम बेंगलूर ,इलाज कराने  दौड़ कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 तुम बेगाने हो जाओगे
 
कोई बेगाने को इतना  अपनाओगे
कि अपनों से ,तुम बेगाने हो जाओगे
नौ महीने तक रखा कोख में ,पाला पोसा
सच्चे मन से ,तुमको अपना प्यार परोसा
उस माँ का भी तोड़ दिया दिल और भरोसा
बुरा भला कह ,उसको ही करते हो कोसा
बेटे ,सपने में भी कभी नहीं सोचा था ,
ऐसे हो जाओगे, इतने बदल जाओगे
कि अपनों से तूम बेगाने हो जाओगे
इतने वर्षों तक तुमको प्यारी लगती थी
वो माँ जो तुमको सबसे न्यारी लगती थी
चार दिनों ,पत्नी सुख पा,इतने पगलाए
उससे अच्छी कोई तुम्हे नज़र ना आये
प्यार सभी ही करते है अपनी पत्नी से ,
लेकिन तुम इतने दीवाने हो जाओगे
कि अपनों से तुम बेगाने हो जाओगे
अपने सारे भाई बहन का प्यार भुलाया
किया पिता ने इतना सब उपकार भुलाया
पढ़ा लिखा कर तुम्हे बनाया जिसने लायक
आज उन्ही की बातें लगती तुमको बक बक
मैं और मेरी मुनिया में सीमित कर दुनिया ,
शादी कर तुम इतने स्याने हो जाओगे
कि अपनों से तुम बेगाने हो जाओगे

मदन मोहन बाहेती;घोटू' 
       सर्दी के रंग

कोहरे से धुंधलाया ,आसमान नीला सा
सूरज का रंग भी ,पड़  गया पीला सा
गुलाबी गुलाबी सी ,सर्दियाँ पड़ने लगी
वृक्षों की हरियाली ,थोड़ी उजड़ने लगी
अलाव की लाल लाल,लपटों ने सहलाया
श्वेत बर्फ चादर ने ,सर्दी से सिहराया
सूरज के ढलने पर नारंगी हुई साँझ
रात रजाई में दुबकी,काला सा काजल आंझ
बैगनी 'प्यार घाव',सवेरे नज़र आये
सर्दी ने, देखो तो, सभी रंग बिखराये

घोटू 
           कितने दिन जीवन बाकी है

नहीं पता यह मौत किसी को कब आ जाए ,
        नहीं पता यह कितने दिन जीवन बाकी है
नहीं किसी को कभी पता यह लग पाता है,
       कितने दिन तक ,साँसों की सरगम बाकी है
फिर भी उलझे बैठें है दुनियादारी मे ,
       परेशान है ,सोच रहे है कल ,परसों की
है कितनी अजीब फितरत इन्सां की देखो,
      कल का नहीं भरोसा ,बात करे बरसों की
मोहजाल में फंसे हुए,माया में उलझे ,
      जाने क्या क्या ,लिए लालसा भटक रहे है
अपनी सभी कमाई धन दौलत ,वैभव में ,
     रह रह कर के ,प्राण हमारे अटक रहे है
धीरे धीरे ,क्षीण हो रही ,जर्जर काया ,
      कई व्याधियों ने घेरा है, तन पीड़ित है
साथ समय के ,बदल रहा व्यवहार सभी का ,
       अपनों के बेगानेपन से मन पीड़ित है
ना ढंग से कुछ खा पाते ना पी पाते है ,
      फिर भी मन में चाह ,और हम जी ले थोड़ा
नज़र क्षीण है,याददास्त कमजोर पड़  गयी,
      लोभ मोह ने पर अब तक पीछा ना छोड़ा
पता नहीं यह मानव मन की क्या प्रकृती है,
     कृत्तिम साँसे लेकर कब तक चल  पायेगा
जिस दिन तन से उड़ जाएंगे प्राणपंखेरू ,
     हाड़मांस का पिंजरे है तन  ,जल जाएगा
तो क्यों ना जितने दिन शेष बचा है जीवन ,
     उसके एक एक पल का,जम कर लाभ उठायें
हंसी ख़ुशी से जिए ,तृप्त कर निज तन मन को,
    जितना भी हो सकता ,सब में ,प्यार लुटाएं     
सभी जानते,दुनिया में,यह सत्य अटल है,
    माटी में ही माटी का संगम बाकी है
नहीं पता यह मौत किसी को कब आ जाए,
   नहीं पता यह कितने दिन जीवन बाकी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
     मिडिया -तूने क्या क्या किया

हम सुनते है ,तुम सुनते हो,सब सुनते है ,
        तरह तरह की खबर रोज टी वी देता है
हरेक  खबर की निश्चित एक उमर होती है,
        किन्तु मिडिया उसको लम्बी कर देता है
बलात्कार ,अपहरण और मर्डर की खबरें,
       तरह तरह की रोज रोज कितनी आती है
इतना ज्यादा उन्हें उछाला पर जाता है,
      जिससे कई जरूरी खबरें  दब जाती है
कितनी न्यूज़ चेनले चलती चौबीस घंटे ,
     कितनी बार ,कहाँ से नयी खबर लाएगी
पर चौबीस घंटे कुछ ना कुछ करना ही है,
      तो फिर वो खबरों पर चर्चा  करवाएगी
कुछ जाने पहचाने नामी,चर्चित चेहरे ,
      ऐसी चर्चाओं में रोज नज़र  आते है 
 सारे के सारे बढ़ बढ़ बातें करते है ,
      एक दूसरे को गाली दे,चिल्लाते  है
  क्रिकेट  मैच जीतते ,वाह वाह होती है ,
      और हार जाते ,केप्टिन गाली खाता है
कोई चैनल सदा किसी का आलोचक है ,
      कोई चैनल ,सदा किसी के गुण गाता है
कभी दादरी वाला केस उछल जाता है ,
      कभी मालदा वाली घटना  दब जाती है
हर एक खबर के पीछे कोई भेद छुपा है,
      और कुछ खबरे दावानल सी बन जाती है
चंद्रग्रहण पर,सूर्यग्रहण पर ,घंटों घंटों ,
     ज्योतिषियों का पेनल मिल करता है चर्चा
करवा लाइव टेलीकास्ट कथा का वाचक,
         पॉपुलर बनने को करते कितना खर्चा
राजनीति की उठापटक में माहिर टी वी,
       कभी कभी सत्ताएं भी पलटा करता है
कभी किसी को बहुत उठता,बहुत गिराता ,
      सत्ता ही क्या,हर विपक्ष उससे डरता है
हुई किसी की मौत चार दिन चर्चा होती,
       बरसों बाद उखड़ते मुर्दे  गढ़े हुए है
चार दिनों में मिले  जमानत कोई को तो,
      कोई सालों यूं ही जेल में पड़े हुए है
ग्रह बदले ना बदले ,टीवी जब रुख बदले ,
      कितनो का ही भाग्य  बदल लेकिन जाता है
कोई पार्टी सत्ता से च्युत हो जाती है ,
    और किसी के हाथों में पावर  आता है
खेल मिडिया का है या फिर है पैसों का,
     कुछ भी हो,दोनों के दोनों पावरफुल है
देख मिडिया पर्सन,माइक और कैमरा ,
     अच्छे अच्छों की हो जाती बत्ती गुल है
कोई फेंकता नेता पर चप्पल या श्याही,
    पब्लिसिटी ,अच्छी खासी, पा लेता है
हरेक खबर की निश्चित एक उमर होती है,
     मगर मिडिया उसको लम्बी कर देता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
         काटा काटी

मार काट से क्यों है ये  दुनिया  घबराती
जबकि कितनी काट ,काम में काफी आती
नाइ काटे बाल ,आदमी संवर जाएगा
दरजी काटे वस्त्र ,नया फैशन आएगा
माली काटे फूल पत्तियां,निखरे गार्डन
नेता काटे रिबिन, उसे कहते  उदघाटन
जेब किसी की कटती है वो लुट जाता है
रोज रोज किट किट से झगड़ा बढ़ जाता है
मंत्री जी वो जबसे बने ,कट रही चांदी
धन दौलत और शोहरत होती पद की बांदी
ओहदे वाले अफसर  ,काटे रोज  मलाई
कटता सदा  गरीब ,मगर  है यही सचाई
खरबूजे पर चाकू, चाकू पर खरबूजा
गिरे कोई भी,कटता  बेचारा खरबूजा
काटा काटी ने है बिगड़ा काम सुधारा
जब ना खुलती गाँठ,काटना पड़ता नाडा
नींद न आती जब रातों को काटे मच्छर
कोई ज्यादा उड़े ,काट दो तुम उसके पर
दे दो ज्यादा ढील,पतंगे कट जाती है
थोड़े बनो दबंग, मुसीबत  हट जाती है 
कुछ होते इतने जहरीले ,क्या बतलाये
जिनका काटा ,पानी तक भी मांग न पाये
मुश्किल के दिन,मुश्किल से ही कट पाते है
अपने से मत कटो, काम वो ही आते  है
कभी किसी की बात न काटो,चिढ जाएगा
बिना बात के झगड़ा करके  भिड़   जाएगा
अपना पेट काट कर ,जिन बच्चो को पाला
बुढ़ापे में ,घर से उनने , हमें  निकाला 
यूं ही किट किट में मत उलझाओ निज मन
जितना जीवन बचा ,काट दो,कर हरिस्मरण

घोटू
दाद

जो आता है मेरे मन में ,उसे ढाल कर के लफ्जों में ,
अपनी बात ग़ज़ल कह कर के ,सदा सुनाया करता हूँ
जिन्हे बात मेरी जमती है,जम कर दाद मुझे देते है ,
मगर दाद जो तुमने दी है , सदा  खुजाया करता  हूँ

घोटू
        मेरा गाँव-मेरा देश

मेरे गाँव के हर आँगन में ,बिरवा है तुलसीजी का ,
    गली गली में मीरा जी के ,देते भजन सुनाई है
हर घर एक शिवालय सा है,हर दिवार पर राम बसे ,
    कान्हा की बंसी बजती ,रामायण की चौपाई है
मंदिर से घण्टाध्वनि आती ,भजन कीर्तन होता है,
    ताल मंजीरे ,ढोलक के स्वर ,सदा गूंजते रहते है
जहां गंगा की एक डुबकी में पुण्य कमाया जाता है,
    जहां गाय को गौमाता कह  लोग पूजते रहते है
जहां पीपल ,वट वृक्ष,आंवला ,का भी पूजन होता है,
   रस्ते के पत्थर भी पूजे जाते कह  कर पथवारी
अग्नि की पूजा होती है ,दीप  वंदना  होती है ,
   हवन यज्ञ में आहुति दे ,पुण्य कमाते है भारी
गंगा जमुना का उदगम भी ,तीर्थ हमारा होता है,
  गंगाजल लोटे में भर कर ,उसकी पूजा की जाती
हम पत्थर की मूरत  में भी ,प्राण प्रतिष्ठा करते है,
   सात अगन के फेरे लेकर ,बनते है जीवनसाथी
हम सीधे सादे भोले है ,मगर आस्था इतनी है,
    उगते और ढलते सूरज को अर्घ्य चढ़ाया जाता है
जहाँ औरतें व्रत करती है, पति को लम्बी उम्र मिले,
   चन्द्रदेव के दर्शन कर के भोजन खाया   जाता है
श्राद्धपक्ष में सोलह दिन तक ,तर्पण करते पुरखों का,
   श्रद्धा से सर उन्हें नमाते ,हम उनके आभारी है
धर्म सनातन,बहुत पुरातन ,धन्य धन्य यह संस्कृती है,
   हम भारत के वासी ,भारतमाता  हमको प्यारी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'