झूंठ बोलिये
यदि जीवन सुख से जीना है
हंसी खुशी का रस पीना है
ना मालूम किसी के दिल को क्या चुभ जाए ,
मन की बातें ,मन में रखिये ,नहीं खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये! झूंठ बोलिये!
सच्चे बोल कड़े लगते है
झूंठे बोल भले लगते है
मौका देखो,वैसा बोलो
चाहे ऐसा वैसा बोलो
जरुरत है तो डट कर बोलो
मन के भाव सिमट कर बोलो
थोडा उलट पुलट कर बोलो
डर है,पीछे हट कर बोलो
लेकिन ये है जो भी बोलो
सबके मन में मिश्री घोलो
आप पाओगे ,ये दुनिया काफी भोली है
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
वो जो अगर सामने आये
आँख मिलाये या शरमाये
हो सकता है तुमसे पूछे
क्योंजी कैसी लगती हूँ मैं ?
अच्छा तुमको नहीं लगा हो
भले पाऊडर पोत रखा हो
चुपड़ी हो गालों पर लाली
नज़र आरही गर्दन काली
पर जो करना उन्हें सुखी है
कहो आप तो चंद्रमुखी है
झूंठी तारीफ़ करी,प्यार के बीज बोलिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
अगर पड़ोसन घर आती है
चीजें मांग न लौटती है
चीज लौट जब भी आती है
बिगड़ी ही पायी ही जाती है
इसीलिये तुम ऐसा करिये
झूंठ बोलने में ना डरिये
अब मांगे तो यही कीजिये
कोई बहाना बना दीजिये
बिगड़ गयी या टूट गयी है
समझो आफत छूट गयी है
चीज भी बची ,झंझट से भी दूर हो लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
भैया ये तो प्रजातंत्र है
राज्य झूंठ का यत्र तत्र है
झूंठे है भाषण,आश्वासन
झूंठ बोलने वाला ,शासन
झूंठा धंधा ,चोर बाज़ारी
झूंठे है नर,झूंठी नारी
रहो रोम में रोमन जैसे
वरना काम चलेगा कैसे
तभी तरक्की कर जाओगे
जबकि झूंठ को अपनाओगे
देख हवा का रुख,उसके ही साथ हो लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये !झूंठ बोलिये!
जीवन जियो हंसी खुशी का
आज ज़माना चापलूसी का
चापलूसी या मख्खनबाजी
पाकर सब ही होते राजी
ये तुम तब ही कर सकते हो
माहिर झूंठ बोलने में हो
साहब आगे पीछे डोलो
हाँ को हाँ,ना को ना बोलो
अगर झूंठ पर ना लगाम है
जिव्हा सोने की खदान है
मतलब पूरा करिये,सुख के द्वार खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
केवल आप युधिष्ठिर होकर
सत्य सत्य का रोना रोकर
जी न पाओगे ,इस दुनिया में
आज ज़माना बदल गया है
अब सौ क्या ,लाखों कौरव है
झूंठ बोलना ही गौरव है
और युधिष्ठिर भी मौके पर
झूंठ युद्ध में बोल गये पर
कहा गया अश्वस्थामा मर
यह न बताया ,नारी या नर
तो जब मतलब आये,मन की हिचक खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
इस जीवन में कितने सारे
ऐसे मौके आते प्यारे
झूंठ बोलना ही है पड़ता
वरना सारा काम बिगड़ता
तुम्ही बताओ,दशरथ राजा
झूंठ बोलते ,अगर ज़रा सा
केकैयी के वचन भुलाते
अपने वादे से टल जाते
तो क्या चौदह बरस राम जी
खाक छानते फिर जंगल की
सच के खातिर,कितने झंझट मोल ले लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
मदन मोहन बाहेती'घोटू'