गलतफहमी
ये समझ कर तुम्हारा हसीं जिस्म है ,
मैं अँधेरे में सहलाता जिसको रहा
तुमने ना तो हटाया मेरा हाथ ही,
ना रिएक्शन दिया और न ना ही कहा
मैं बड़ा खुश था मन में यही सोच कर,
ऐसा लगता था ,दाल आज गल जायेगी
हसरतें कितनी ही ,जो थी मन में दबी ,
सोचता था की अब वो निकल जायेगी
गुदगुदा और नरम था वो कोमल बदन ,
मैं समझ तेरा ,मन अपना बहला रहा
दिल के अरमाँ सभी,आंसुओ में बहे ,
निकला तकिया ,जिसे था मैं सहला रहा
घोटू