लोहे का तन ,कुंठित जीवन
जमीन से जड़ी हुई
दूर दूर पड़ी हुई
जो कभी न मिल पायी
इसी दो सखियाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
कितनो का ही बोझ उठाती
सबको मंजिल तक पहुंचाती
सुनसान जंगलों में
या कस्बों ,शहरों में
साथ साथ भटक रही
पर हमको पता नहीं
हमारी मंजिल कहाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
साथ साथ रह कर भी,
क्या है मजबूरियां
बनी ही रहती है ,
आपस में दूरियां
जिनकी सोच आपस में ,
कभी नहीं मिल पाती
हम ऐसी दो पीढियां है
हाँ हम रेल की पटरियां है
जमीन से जड़ी हुई
दूर दूर पड़ी हुई
जो कभी न मिल पायी
इसी दो सखियाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
कितनो का ही बोझ उठाती
सबको मंजिल तक पहुंचाती
सुनसान जंगलों में
या कस्बों ,शहरों में
साथ साथ भटक रही
पर हमको पता नहीं
हमारी मंजिल कहाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
साथ साथ रह कर भी,
क्या है मजबूरियां
बनी ही रहती है ,
आपस में दूरियां
जिनकी सोच आपस में ,
कभी नहीं मिल पाती
हम ऐसी दो पीढियां है
हाँ हम रेल की पटरियां है