Thursday, March 20, 2014

क्या बतलाऊँ ?

    क्या बतलाऊँ ?

मुझको कितना सुख मिलता है,तेरे साथ मिलन में
                                                   क्या बतलाऊँ ?
कितनी मस्ती  छाई  रहती है  उस  पागलपन  में
                                                     क्या बतलाऊँ?
होता भाव विभोर बावला सा ये मन पागल सा
तैरा करता ,साथ चाँद के ,अम्बर में  बादल सा
या फिर जैसे विचरण करता है चन्दन के वन में
मतवाला ,मदमस्त ,घूमता ,ज्यों नंदन कानन में
तुम राधा सी रास रचाती ,मन के वृन्दावन में ,
                                                क्या बतलाऊँ?
तेरी साँसे,मेरी साँसे ,टकराती आपस मे
शहनाई सी बजती मन में,हो जाता बेबस मैं
अपने आप ,यूं ही बंध जाता है बाहों का बंधन
तुम कलिका सी,और भ्रमर मैं ,हो जाता अवगुंठन
मन कितना आनंदित होता ,तेरे आलिंगन में
                                            क्या बतलाऊँ?
मुझको कितना सुख मिलता है ,तेरे साथ मिलन में
                                             क्या बतलाऊँ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पाक स्थल

             पाक स्थल

जहाँ प्रातः उठ ,सबसे पहले ,जाने करता मन है
और जगते ही ,जहाँ आदमी ,रखता प्रथम कदम है
जहाँ अवांछित ,जल और पृथ्वी तत्व विसर्जित होता
जहाँ प्रतीक्षित ,जब आ जाता ,मन आनंदित होता
 कई बार ,इस स्थल जाने ,मन होता बेकल सा
मन में भर जाती उमंग ,तन  लगता ,हल्का हल्का
हो जाता निर्वस्त्र आदमी  बिना झिझक ,शरमाये
चिंतन और विचार उभरते,जन्मे नव कवितायें
तन का हर एक अंग जहाँ निर्मल,पवित्र हो जाता
खुलजाते नव द्वार,जहाँ पर चोला बदला जाता
बैठ जहाँ अहसास शांति का करता है तन और मन
करता आत्मनिरीक्षण मानव,मूल रूप के दर्शन
जहाँ हमेशा,जल की धारा ,फंव्वारे बहते है
उस प्यारे पावन स्थल  को ,'बाथरूम'कहते है

मदनमोहन बाहेती'घोटू'