Friday, April 6, 2012

क्या क्या खिलाती है?

क्या क्या खिलाती  है?

न पूछो आप हमसे औरतें क्या क्या खिलाती है

ये खुद गुल है,मगर फिर भी,हजारों गुल खिलाती है
 हसीं हैं,चाँद सा चेहरा,ये मेक अप कर खिलाती है
अदा से जब ये चलती है,कमर को बल खिलाती है
ख़ुशी में,प्यार में,जब झूम के ये खिलखिलाती है
चमक आँखों में आ जाती,हमारे दिल खिलाती है
करो शादी अगर तो सात ये फेरे खिलाती है
किसी वीरान घर को भी ,चमन  सा ये  खिलाती है
पका कर दो वख्त ,ये मर्द को ,खाना खिलाती है
जो बच्चे तंग करते,उनको ,रोज़ाना खिलाती है
कभी गुस्सा खिलाती है,कभी धमकी खिलाती है
जरा सी बात ना मानो,तो बेलन की खिलाती है
कभी होली खिलाती है,कभी गोली खिलाती है
ये कडवे डोज़ भी हमको,बनी भोली खिलाती है
जरा से प्यार के खातिर,कई चक्कर खिलाती है
कभी जूते खिलाती है,कभी चप्पल खिलाती है
हवा ये अच्छे अच्छों को,हवालात की खिलाती है
खुदा! ये खेलती है हमसे या हमको खिलाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

hanumaan jayanti par-जय हनुमान ज्ञान गुण सागर

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
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हमारी स्वतंत्र भारत माता को,
सीता की तरह,
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ रावणों ने,
कैद कर  रखा रखा है,
हे हनुमान!
उनकी सोने की लंका को जलाओ,
और सीता को छुड़ाओ
मंहगाई सुरसा की तरह,
अपना मुंह फाड़ती ही  जा रही है,
गरीब जनता,बत्तीस रूपये प्रति दिन में,
कैसे लघु रूप धारण कर,बाहर निकले,
हे हनुमान!इतना बतलादो
आम जनता,राम की सेना सी,
समुद्र के इस पार खड़ी है,
और दूसरी ओर,
 सत्ताधारियों की सोने की लंका है ,
इस दूरी को पाटने के लिए,
एक सेतु का निर्माण जरूरी है,
पर एक दुसरे पर पत्थर फेंके जा रहे है,
हे हनुमान!राम का नाम लिखवा कर,
इन पत्थरों को तैरा दो
देश की व्यवस्थाएं
राम और लक्ष्मण जैसी,
भ्रष्टाचार के नागपाश में बंधी है,
हे बजरंगबली! अपने अन्ना जैसे,
गरुड़ मित्र को बुलवा कर,
नागपाश कटवा दो
गरीबी और भुखमरी के ,
ब्रह्मास्त्र की मार ने,
आम आदमी को,
लक्ष्मण  जैसा मूर्छित कर रखा है,
हे पवन पुत्र!
स्वीजरलेंड में जमा,संजीवनी बूंटी लाओ ,
और सबको पुनर्जीवन दिलवा  दो
सत्तारूढ़ दशानन का अहंकार,
दिन ब दिन बढ़ता  ही जा रहा है,
हे अन्जनिनंदन!
अब समय आ गया है,
रावन का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'