ये राजनीति है
थे दुश्मन दांतकाटे ,कोसते थे ,एक दूजे को,
वो लालू और नितीश भी बन गए है दोस्त अब फिर से,
स्वार्थ में ना किसी को, किसी से परहेज होता है ,
गधों को और घोड़ों को,मिलाती राजनीति है
चुने जाते है करने देश की सेवा ,मगर नेता ,
है करने लगते , सबसे पहले अपने आप की सेवा
लूट कर देश को ,अपनी तिजोरी भरते दौलत से,
बहुत ही भ्रष्ट इंसां को ,बनाती राजनीति है
नशा ये एक ऐसा है ,जो जब एक बार लगता है,
छुटाओ लाख पर ये छूटना ,मुश्किल बहुत होता ,
गलत और सही में अंतर,नज़र आता नहीं उनको,
नशे में सत्ता के अँधा ,बनाती राजनीति है
यहाँ पर रहके भी चुप ,दस बरस ,सदरे रियासत बन,
चला सकता है कोई देश को ,बन कर के कठपुतली ,
यहाँ चमचे चमकते है ,चाटुकारों की चांदी है,
बड़े ही अच्छे अच्छों को,नचाती राजनीति है
पड़ गयी सत्ता की आदत,तो कुर्सी छूटती कब है,
रिटायर हो गए तो गवर्नर बन कर के बैठे है,
किसी की पूछ जब घटती ,बने रहने को चर्चा में,
किताबें लिख के,राज़ों को,खुलाती राजनीति है
कई उद्योगपति भी ,घुस रहे ,इस नए धंधे में ,
क्योंकि इससे न केवल ,नाम ही होता नहीं रोशन,
नए कांट्रॅक्ट मिलते,लीज पर मिलती खदाने है ,
कमाई के नए साधन ,दिलाती राजनीति है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'