Thursday, August 7, 2014

ये राजनीति है

 
            ये राजनीति है

थे दुश्मन दांतकाटे ,कोसते थे ,एक दूजे को,
वो लालू और नितीश भी बन गए है दोस्त अब फिर से,
स्वार्थ में ना किसी को, किसी से परहेज होता है ,
               गधों को और घोड़ों को,मिलाती राजनीति है
चुने जाते है करने देश की सेवा ,मगर नेता ,
 है करने लगते , सबसे पहले अपने आप की सेवा
लूट कर देश को ,अपनी तिजोरी भरते दौलत से,
                बहुत ही भ्रष्ट इंसां को ,बनाती  राजनीति है
नशा ये एक ऐसा है ,जो जब एक बार लगता है,
छुटाओ लाख पर ये छूटना ,मुश्किल बहुत होता ,
गलत और सही में अंतर,नज़र आता नहीं उनको,
               नशे में सत्ता के अँधा ,बनाती   राजनीति है
यहाँ पर रहके भी चुप ,दस बरस ,सदरे रियासत बन,
 चला सकता है कोई  देश को  ,बन कर के कठपुतली ,
  यहाँ चमचे चमकते है ,चाटुकारों की चांदी है,
                बड़े ही अच्छे अच्छों को,नचाती राजनीति है
पड़ गयी सत्ता की आदत,तो कुर्सी छूटती कब है,
रिटायर हो गए तो गवर्नर बन कर के  बैठे है,
किसी की पूछ जब घटती ,बने रहने को चर्चा में,
                  किताबें लिख के,राज़ों को,खुलाती राजनीति है  
कई उद्योगपति भी ,घुस रहे ,इस नए धंधे में ,
क्योंकि इससे न केवल ,नाम ही होता नहीं रोशन,
नए कांट्रॅक्ट मिलते,लीज पर मिलती खदाने है ,
                 कमाई के नए साधन ,दिलाती राजनीति है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्थर दिल

       पत्थर दिल

कहा उनने  हमें एक दिन ,आपका दिल तो है पत्थर
कहा हमने ,ये तारीफ़ या कोई इल्जाम है हम पर
कोई पत्थर है नग  होता ,अंगूठी में जड़ा  जाता
चमकता कोई हीरे सा ,सभी के मन को है भाता
कोई पत्थर ,पुजाता है ,देवता बन  के मंदिर  में
कोई पत्थर है संगमरमर ,लगाया जाता घर घर में
कोई पत्थर है रोड़ी का,बने  कंक्रीट जो ढल कर
कोई  पत्थर ,जो फेंको तो,फोड़ देता ,किसी का सर
कोई को वृक्ष पर फेंको ,तो मीठे फल है खिलवाता 
ज़रा सी किरकिरी बन कोई , आँखों में  चुभा जाता
कोई  रस्ते में टकराता  ,लगाता  पाँव में  ठोकर
कोई मंजिल बताता है ,जब बनता मील का पत्थर
मैं पत्त्थर दिल,मगर ये तो बताओ कोन सा पत्थर
कहा उनने  'तुम हीरे हो' ,मुझे बाहों में अपनी भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बीबीजी की चेतावनी

         बीबीजी की चेतावनी

मुझे तुम कहते हो बुढ़िया ,जवां तुम कौन से लगते
  तुम्हारी फूलती साँसे ,चला  जाता  नहीं    ढंग से
मैं तो अब भी ,अकेले ही ,संभाला करती सारा घर
नहीं तुम  टस से मस होते ,काम करते न  रत्ती भर
नयी हर रोज फरमाइश ,बनाओ ये , खिलाओ ये
रहूँ दिन भर मैं ही पिसती ,भला क्यों कर,बताओ ये
तुम्हारी पूरी इच्छाये ,सभी दिन रात ,मैं करती
और उस पर ये मजबूरी ,रहूँ तुमसे ,सदा डरती
तुम्हारे सब इशारों पर ,नाचने वाली , अब मैं  ना
बहुत शौक़ीन खाने के ,हो तुम पर ये ,समझ लेना
सजी पकवान की थाली ,तुम्हे चखने भी  ना  दूंगी
कहा फिर से अगर बुढ़िया ,हाथ रखने भी ना दूंगी

घोटू
 
 

एक दूजे के लिये

            एक  दूजे  के लिये

हाथ पे रख  के सर सोते,चैन की नींद आती है
दबाते  हाथ जब सर को,तो पीड़ा भाग जाती है
कभी है नाव पर गाडी ,कभी गाडी है  नाव पर ,
सहारे एक दूजे के, जिंदगी कट ही  जाती   है
जहाँ पर धूप है प्रातः ,वहीँ पर छाँव संध्या को,
धूप और छाँव का ये खेल ,सारी उम्र चलता है,
कभी चलता है बच्चा ,बाप की उंगली पकड़ कर के ,
जब होता बाप बूढा,बच्चे की ऊँगली पकड़ता है
रहो तुम मेरे दिल में और रहूँ मै दिल में तुम्हारे ,
मगर हम संग रहते ये ,मोहब्बत की निशानी है
गिरूँ मै ,तुम मुझे थामो,गिरो तुम ,मै तुम्हे थामू,
भरोसे एक दूजे के ,  उमर हमको बितानी   है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'