Saturday, October 31, 2020

मेरी जीवन यात्रा

एक मैं और मेरी तारा
मिलजुल कर करें गुजारा
हँसते हँसते मस्ती में ,
कट जाता समय हमारा

हम दो है नहीं अकेले
जीवन में नहीं झमेले
मैं टी वी रहूँ देखता ,
वो मोबाईल पर खेले

वो चाय पकोड़े बनाये
हम दोनों मिलकर खायें
आपस में गप्पें मारें ,
और अपना वक़्त बितायें

हम ज्यादा घूम न सकते
अब जल्दी ही हम थकते
कमजोरी से आक्रान्तिक ,
है जिस्म हमारे ,पकते

मन में है नेक इरादे
हम बंदे सीधे सादे
देती है साथ हमारा ,
कुछ भूली बिसरी यादें

यूं गुजरी उमर हमारी
हम खटे उमर भर सारी
बच्चों को सेटल करके ,
पूरी की जिम्मेदारी

जीवन भर काम किया है
प्रभु ने अंजाम दिया  है
अब जाकर चैन मिला है ,
हमको आराम दिया है

बच्चे इज्जत है देते
त्योहारों पर मिल लेते
छूकर के चरण  हमारे,
हमसे आशीषें  लेते

खुश कभी ,कभी हम चिंतित
दर नहीं हृदय  में  किंचित  
एक दूजे का है सहारा ,
एक दूजे पर अवलम्बित

मन कभी भटकता रहता
मोह में है अटकता रहता
व्यवहार कभी लोगों का ,
है हमें खटकता रहता

मन सोच सोच घबराये
आँखों पे अँधेरा  छाये
हम में से कौन न जाने ,
किस रोज बीड़ा हो जाये

जो जब होगा ,देखेंगे
चिंता न फटकने देंगे
कैसी भी विपदा आये ,
हम घुटने ना टेकेंगे

ये मन तो है बंजारा
भटके है मारा मारा
हम बजा रहे इकतारा
एक मैं और मेरी तारा  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ये दिल मांगे मोर -तीन छक्के

इच्छाओं का अंत ना ,नहीं और का छोर
जाने फिर क्यों बावरा ,ये दिल मांगे मोर
ये दिल मांगे मोर ,अंत ना है लालच का
करना पड़ता किन्तु सामना ,सबको सच का
कह घोटू कवि ,दिन मुश्किल के आने वाले
छोड़ मोर का चक्कर ,जो है ,उसे संभाले

हमें चाहिये और की ,दे हम छोड़ तलाश
बेहतर रखें संभाल कर ,जो है अपने पास
जो है अपने पास ,बड़ा ही कठिन दौर है
कोरोना का संकट फैला   सभी  ओर  है
घोटू करे सचेत ,सभी को यह पुकार कर  
खड़े हुए हम ,तृतीय विश्वयुद्ध की कगार पर

बिगड़ा है वातावरण ,मन है बहुत उदास
अब तो मुश्किल हो रहा  लेना ढंग से सांस    
लेना ढंग से  सांस ,हवा में जहर भरा है
हरेक आदमी ,अंदर से कुछ डरा डरा है
दिया प्रेम का ,दीवाली पर ,रखें  जगा कर
घोटू आतिशबाजी रक्खे, दूर  भगाकर  

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
 
शरद पूनम की रात

कल की रात शरद पूनम थी, धुंधलाया सा चाँद दिखा
मुझको रोता और सिसकता ,मुरझाया सा चाँद दिखा
कहते है कि शरद रात में वह अमृत बरसाता है ,
पीत वर्ण था ,अमृत वर्षा का  न कहीं आल्हाद दिखा
अमृत बरसाया तो होगा  हवा बीच में  गटक  गयी ,,
मुझे हवा जहरीली का ,इतना ज्यादा उत्पात दिखा
मैंने छत पर खीर रखी थी ,आत्मसात करने अमृत ,
उठ कर सुबह सुबह जो खाई ,तीता तीता स्वाद दिखा
इतना ज्यादा आज प्रदूषित ,वातावरण हो गया है ,
मुझे प्रकृति के चेहरे पर ,दुःख और पीड़ा अवसाद दिखा
पता  नहीं  हम कब सुधरेंगे , पर्यावरण  सुधारेंगे ,
हमको जो भी दिखा सिर्फ वह अपना ही अपराध दिखा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '