Friday, November 24, 2017

सर्व सुलभ तू मुझे बनाना 

हे प्रभु यदि दो पुनर्जन्म और मुझे पड़े धरती पर आना 
सर्वसुलभ और बहुउपयोगी ,मिलनसार तू मुझे बनाना 
प्यार करे सब ,हर मौसम में ,रहूँ जमीन से ,जुड़ा हमेशा 
अगर बनाओ यदि जो सब्जी  ,मुझे बनाना आलू   जैसा 
बेंगन हो या मेथी,पालक ,फली मटर की ,या फिर गोभी 
रंग ना देखूं ,स्वाद बढ़ाऊं मिले साथ में ,मुझसे जो भी 
समा समोसे में मन भाऊ ,भरा रहूँ मै ,वड़ा पाव  में 
मुझे परांठे में भर कर के ,लोग नाश्ता ,करें चाव  में 
कभी चाट आलू टिक्की में ,या डोसे का बनू मसाला 
या फिर गरम पकोड़े में तल,निखरे मेरा ,स्वाद निराला 
'क्रिस्पी 'कभी बनू 'वेफर'सा ,या फिर 'फ्रेंच फ़्राय'सा प्यारा 
हे भगवान ,बनाना मुझको ,आलू जैसा सर्व दुलारा 
या फिर जनजन का मन प्रिय बन शक्ति का मै बनू खजाना 
प्रभु जो मुझको अन्न बनाओ तो मुझको तुम चना बनाना 
ताकत मिले ,भिगो खाने में ,खाओ भून कर ,भूख मिटाओ 
छोले चांवल ,चना भठूरे ,लेकर स्वाद,,प्रेम से खाओ 
दाल बना ,खाओ रोटी संग ,या तल कर नमकीन बनाओ 
और पीसो तो ,बेसन बन कर ,कई ढंग से स्वाद बढ़ाओ 
कभी पकोड़ी जैसा तल लो ,कभी भुजिया ,सेव बनालो 
कभी बना ,बेसन के लड्डू या बूंदी परशाद  चढ़ा लो 
बेसन की प्यारी सी बरफी ,या फिर मोतीचूर  सुहाना 
या हल्दी और तैल मिलाकर ,उबटन बना ,रूप निखराना 
मीठा या नमकीन सभी कुछ ,बनकर सबका मन ललचाना 
सर्वसुलभ और बहु उपयोगी ,हे भगवन ,तू मुझे बनाना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 21, 2017

पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 

राजवश का कोई राजा ,पब्लिक का सर्वन्ट हो गया  
कल तक था जो मिटटी गारा ,आज वही सीमेन्ट हो गया  
सत्ता सिमट रही अपनों में,देखो कैसा ट्रेन्ड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
जबसे मंदिर मंदिर जाकर ,उसने अपना शीश झुकाया 
जबसे उसने अपने मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाया 
तबसे कम बकवास कर रहा ,वो थोड़ा डिसेन्ट  हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
उसकी जयजयकार कर रहा ,है उसके चमचों का जत्था 
मम्मी  खुश है , यही तसल्ली, पास रही  पुश्तैनी  सत्ता 
अब तक उसका राज टेम्पररी था अब परमानेन्ट हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
राजनीति में ,कुर्सी की हसरत ,क्या क्या करवा देती है 
पिज़ा ,पास्ता खाने वाले को, खिचड़ी  खिलवा देती है 
एक पुदीने का पत्ता था, अब वो पिपरमेंट  हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
प्रौढ़ खून में आयी जवानी ,अब कोतवाल बन गए सैया 
नाव डुबोने वाला मांझी ,ही अब देखो बना खिवैया 
अध्यादेश फाड़ने वाला ,कितना ओबीडियन्ट हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
बांह चढाने का अफलातूनी अंदाज बदल जाएगा 
आज चढ़ा है कुर्सी पर तो कल घोड़ी भी चढ़ जाएगा 
हाथ मिला ,सेल्फी खिचवाता ,अब वो सबका फ्रेन्ड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
अब जितने बेरोजगार है ,सबको जॉब दिला देगा वो 
जितना करजा है किसान पर ,सबको माफ़ करा देगा वो 
वादे कर सबको भरमाना ,राजनीति का ट्रेंड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, November 13, 2017

अच्छा लगे कहाना अंकल 

हुए रिटायर ,बाल न सर पर ,दुःख मन में हर पल रहता है 
इसीलिये  अच्छा लगता जब ,कोई मुझे अंकल  कहता है 
अंकल के इस  सम्बोधन  में ,बोध  बड़प्पन का होता है ,
क्योंकि इसमें सखा भाव  संग ,श्रद्धा भाव  छुपा  रहता  है 
कल की सोच सोच कर अक्सर ,ये मन बेकल सा हो जाता,
अंकल के कल में यादों का ,सरिता जल, कल कल बहता है 
कभी जवानी जोर मारती ,कभी  बुढ़ापा  टांग  खींचता ,
प्रौढ़ावस्था  में  जीवन की  ,चलता  ये दंगल  रहता  है 
भाई साहब कहे जाने से ,अच्छा है अंकल कहलाना ,
और बूढा कहलाने से तो  ,निश्चित  यह  बेहतर  रहता है 
दिन दिन है हम बढे हो रहे,उमर हुई दादा ,नाना की,
चन्द्रबदनी  बाबा ना कहती,मन में यह संबल रहता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Monday, November 6, 2017


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madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
Nov 1 (5 days ago)

to baheti.mm.t., baheti.mm.tara2, baheti.mm.tara4 
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
जाल में जुल्फ के ,ऐसे उलझे नयन ,
        मैं उलझता,उलझता उलझता गया 
ऐसा बाँधा मुझे,रूप के जाल में ,
        होके खुश बावरा ,मैं तो फंसता  गया 
उबली सी सब्जी सा ,मैं तो फीका रहा ,
          और प्रिये दाल तुम,माखनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
             गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'


भाव नहीं देती है 

ऐसा है स्वभाव ,करती सबसे है मोलभाव ,
सब्जी हो या साड़ी सब ,सस्ती लेकर आती है 
मन में है उसके न दुराव न छुपाव कहीं,
सज के संवर  ,हाव भाव  दिखलाती  है 
रीझा पति पास जाय ,भाव नहीं देती है ,
मन में लगाव पर बहुत भाव खाती है  
रूप के गरूर में सरूर इतना आ जाता ,
पिया के जिया के भाव ,समझ नहीं पाती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नींद क्यों नहीं आती 

कभी चिंता पढाई की ,थी जो नींदें उड़ाती थी 
फंसे जब प्यार चक्कर में ,हमे ना नींद आती थी 
हुई शादी तो बीबीजी,हमें  अक्सर  जगाती थी 
करा बिजनेस तो चिंतायें ,हमे रातों सताती थी 
फ़िक्र बच्चो की शादी की,कभी परिवार का झंझट 
रात भर सो न पाते बस ,बदलते रहते हम करवट 
किन्तु अब इस बुढ़ापे में,नहीं जब कोई चिंतायें 
मगर फिर भी ,न जाने क्यों ,मुई ये नींद न आये 
न लेना कुछ भी ऊधो से ,न देना कुछ भी माधो का 
ठीक से सो नहीं पाते ,चैन गायब है रातों का 
जरा सी होती है आहट ,उचट ये नींद जाती है 
बदलते रहते हम करवट,बड़ा हमको सताती है 
एक दिन मिल गयी निंदिया ,तो हमने पूछा उससे यों 
बुढ़ापे में ,हमारे साथ,करती बदसलूकी क्यों 
लाख कोशिश हम करते ,बुलाते ,तुम न आती हो 
बड़ी हो बेरहम ,संगदिल,मेरे दिल को दुखाती हो
कहा ये निंदिया ने हंस कर,जवां थे तुम ,मैं आती थी 
भगा देते थे तुम मुझको,मैं यूं ही लौट जाती थी 
नहीं तब मेरी जरूरत थी ,तो था व्यवहार भी बदला 
है अब जरूरत ,मैं ना आकर ,ले रही तुमसे हूँ बदला 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 

आलस तन में बसा ,रहे ना अब फुर्तीले 
खाना वर्जित हुए ,सभी पकवान रसीले 
मीठा खाना मना,तले पर पाबंदी  है 
भूख न लगती,पाचनशक्ति भी मंदी है
खा दवाई की रोज गोलियां ,हम जीते है 
चाट पकोड़ी मना ,चाय फीकी पीते है 
दांत गिर गए ,चबा ठीक से ना पाते हम 
पुच्ची भर में बदल गया हो जैसे चुंबन 
यूं ही मन समझाने वाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 
'आर्थराइटिस 'है घुटनो में रहती जकड़न 
थोड़ी सी मेहनत से बढ़ती दिल की धड़कन 
'डाइबिटीज 'के मारे सब अंग खफा हो गए 
मिलन और अवगुंठन के दिन ,दफा हो गए 
वो उस करवट हम इस करवट ,सो लेते है 
आई लव यू आई लव यू ,कह खुश हो लेते है 
कभी यहां पीड़ा है ,कभी वहां दुखता है 
फिर भी दिल का दीवानापन ,कब रुकता है 
अब तो बस ,सहलानेवाली  ,उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर  आगयी 
 कहने,सुनने की क्षमता भी क्षीण हो चली 
अंत साफ़ दिखता पर आँखें धुंधली धुंधली 
छूटी मौज मस्तियाँ ,मोह माया ना छूटी 
देते रहते खुद को यूं ही तसल्ली ,झूठी 
कोसों दूर बुढ़ापा ,हम अब भी जवान है 
मन ही मन ,अंदर से रहते परेशान है 
बात बात पर अब हमको गुस्सा आता है 
बीती यादों में मन अक्सर खो जाता है 
यूं ही मन बहलानेवाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर आ गयी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
दिल मगर दिल ही तो है 

हरएक सीने में धड़कता ,है छुपा बैठा कहीं,
चाह पूरी जब न होती,मसोसना भी पड़ता है 
कभी अनजाने ही जब ,जुड़ जाता ये है किसी से,
नहीं चाहते हुए उसको ,तोडना भी पड़ता  है 
कभी चोंट खाकर जब ,पीता है वो खूं के आंसू,
उसकी मासूमियत को ,कोसना भी पड़ता है 
कभी देख कर किसी को,जब मचल जाता है,
तो किसी के साथ उसको ,जोड़ना भी पड़ता है 
बात दिल की है ,कोई दिलदार कोई दिलपसंद,
तो कोई है दिलरुबाँ ,दिलचस्प है और दिलनशीं 
कोई दिलवर है कोई दिलसाज कोई दिलफरेब ,
दिल दीवाने को सुहाती है किसी की दिलकशी 
कोई होता संगदिल तो कोई होता दरियादिल ,
जब किसी पे आता तो देता ये मुश्किल ही तो है 
इसकी आशिक़ मिजाजी का ओर है ना छोर है,
कुछ भी हो,कैसा भी हो,ये दिल मगर दिल ही तो है 


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

थोड़े बड़े भी बन जाइये 

सवेरे सवेरे चार यार ,मिलो,घूमो फिरो,
नींद खुले औरों की ना जोर से चिल्लाइये 
भंडारा परसाद खूब खाओ लेके स्वाद मगर ,
डब्बे भर लाद लाद ,घर न ले जाइये 
औरतें और बच्चे सब ,घूम रहे आसपास ,
अपनी जुबान को शालीन तुम  बनाइये 
सर की सफेदी का लिहाज करोऔर डरो
बूढ़े हो गए हो यार,बड़े भी बन जाइये 

घोटू 

Wednesday, November 1, 2017

तुम रहो हमेशा सावधान 

वह कलकल करती हुई नदी 
तट  की  मर्यादा बीच   बंधी 
उसकी सुन्दरता ,अतुलनीय 
वह सुन्दर,सबको बहुत प्रिय 
मैं था सरिता को सराह रहा 
एक वृक्ष किनारे ,कराह रहा 
बोला ,तुम देख रहे कल कल 
पर मैंने देखा है बीता  कल 
जब इसमें आता है उफान 
मर्यादाओं का छोड़  भान 
जब उग्र रूप है यह धरती 
सब कुछ है तहस नहस करती  
जैसे शीतल और मंद पवन 
मोहा करती है सबका  मन 
पर जब तूफ़ान बन जाती है 
तो कहर गजब का ढाती है 
है मौन  शांत  धरती माता 
पर जब उसमे  कम्पन आता 
तब  आ जाती ऐसी तबाही 
सब कुछ हो जाता धराशायी 
सुंदर,सज धज कर मुस्काती 
पत्नी सबके ही मन भाती 
जीवन में खुशियां भरती है 
पर उग्र रूप जब धरती है 
तो फिर वह कुपित केकैयी बन 
जिद मनवाती ,जा कोप भवन 
पति असहाय हो दशरथ सा 
लाचार बहुत और बेबस सा 
माने पत्नी की जिद हरेक 
बनवास बने ,राज्याभिषेक 
ये नदी,हवा,धरती,नारी 
जिद पर आती ,पड़ती भारी 
कब बिगड़ जाय ,ना रहे ज्ञान 
तुम रहो हमेशा  सावधान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'