Sunday, July 24, 2011

हम सत्तर के

         हम सत्तर के
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हम सत्तर के
हम हस्ताक्षर बीते कल के
हम सत्तर के
कोई समझे अनुभव के घट
कोई समझे कूढा करकट
बीच अधर में लटके है हम,
नहीं इधर के ,नहीं उधर के
हम सत्तर के
कभी तेज थे,बड़े प्रखर थे
उजियारा करते दिन भर थे
अब भी लिए सुनहरी आभा,
ढलते सूरज अस्ताचल के
हम सत्तर के
याद आते वो दिन रह रह के
हम भी महके,हम भी चहके
यौवन था तो खूब उठाया,
मज़ा जिंदगी का जी भरके
हम सत्तर के
पीड़ा दी टूटे सपनो ने
हम को बाँट दिया अपनों ने
किस से करें शिकायत अपनी,
अब न घांट के और न घर के
हम सत्तर के
उम्र बढ़ी अब तन है जर्जर
लेकिन नहीं किसी पर निर्भर
स्वाभिमान  से जीवन जीते,
आभारी है परमेश्वर के
हम सत्तर के

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


राज़-कोमल गालों का

राज़-कोमल गालों का
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होली के अवसर पर पर,
समधन के गालों   पर
जब मैंने लगायी गुलाल
इन्फ्रारेड लाली से,
लाल हो गए उनके गाल,
मैंने कहा कमाल है
इस उम्र में भी,
कितने कोमल और चिकने,
आपके गाल है
समधन जी मुस्काई
थोड़ी सी सकुचाई,
और बोली शरमा कर
आपको बताती हूँ आज
अपने कोमल गालों का राज़
मै रोज अपने गालों को,
'जोनसन बेबी सोप  'से धोती हूँ,
और गालों पर लगाती हूँ,
'जोनसन बेबी पावडर'
इसीलिए मेरी त्वचा,
है बच्चों सी कोमल

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

सुख समधन का

सुख समधन का
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सबका दुलार प्यार,
अच्छी सी देखभाल,
चूमे सब बार बार,
                 ये सुख है बचपन का
यौवन ऋतू मदमाती,
है खुशियाँ बरसाती ,
जब जीवन का साथी,
                   देता सुख यौवन का
 प्यार पुष्प जब लहके
बच्चों से घर महके,
जब किलकारी  चहके,
                    मिलता सुख जीवन का
बच्चों की शादी कर,
खुशियों से भरता घर,
बोनस में मिलता पर,
                  हमको सुख  समधन का

मदन मोहन बहेती 'घोटू'