रावण दहन
एक कागज का पुतला बनकर,
खड़ा हुआ था वह बेचारा
तुमने उसमें आग लगा दी
और कहते हो रावण मारा
घूमे बच्चों के संग मेला ,
खा ली थोड़ी चाट पकौड़ी
थोड़ा झूल लिए झूले पर ,
यूं ही तफरी कर ली थोड़ी
घर में कुछ पकवान बनाकर
या होटल जा करते भोजन
ऐसे ही कितने वर्षों से
मना रहे हैं दशहरा हम
पर वास्तव में इसीलिए क्या
यह त्योहार मनाया जाता
पाप हारता ,पुण्य जीतता ,
विजयादशमी पर्व कहाता
हो विद्वान कोई कितना भी,
वेद शास्त्रों का हो ज्ञाता
पर यदि होती दुष्ट प्रवृत्ति ,
अहंकार,वो मारा जाता
रावण पुतला है बुराई का ,
और प्रतीक है अहंकार का
काम क्रोध और लोभ मोह का
मद और मत्सर, सब विकार का
इनका दहन करोगे तब ही
होगा सही दहन रावण का
सच्चा तभी दशहरा होगा ,
राम जगाओ ,अपने मन का
जब सच्चाई और अच्छाई
अंत बुराई का कर देगी
तभी विजेता कहलाओगे
विजयादशमी तभी बनेगी
तब ही तो सच्चे अर्थों में ,
रावण को जाएगा मारा
कागज पुतला दहन कर रहे
और कहते हो रावण मारा
मदन मोहन बाहेती घोटू