Sunday, September 18, 2011

अब शानू ,आशीष हो गया

पापा पापा ,मम्मी,दीदी,करता कभी नहीं थकता था
सीधा सादा,आज्ञाकारी,भोला सा प्यारा लगता था
लेकिन वोदीन बचपन के था,पर अब तो वो बड़ा हो गया
इतना बड़ा हो गया है कि,सबके ऊपर खड़ा हो गया
मेहनत और लगन से सच्ची,मंजिल पायी,सफल हुआ है
दिन दूनी और रात चोगुनी,करे तरक्की,यही दुआ है
पर लगता है धीरे धीरे ,उसमे कुछ बदलाव आ गया
इतना सब कुछ पा जाने पर,एक अहम् का भाव आ गया
इतना ज्यादा उलझ गया है,पूरा करने निज सपनो को
व्यस्त हो गया,समय नहीं है,लगा भूलने है अपनों को
भूले से भी याद न करता,अब वो बड़ा रईस  हो गया
   अब शानू ,आशीष हो गया

तुमने मेरी सुबह बना दी

तुमने मेरी सुबह बना दी
-----------------------------

तारे सारे डूब गए थे,दूर हो रहा अँधियारा था

नभ में उषा की लाली थी,सूरज उगने ही वाला था
शबनम की बूंदों के मोती ,हरित  तृणों पर चमक रहे थे
और पुष्प रजनी गंधा के,अब भी थोड़े महक रहे थे
पंछी अभी नीड़ में ही थे,अपना आलस भगा रहे थे
पुरवैया के झोंके थपकी,दे पुष्पों को जगा रहे थे
कब कलियाँ चटके और विकसे,रसिक भ्रमर थे इन्तजार में
मै भी अलसाया लेटा था, खोया सपनों के खुमार में
तुमने अपनी आँखें खोली,करवट बदली,ली अंगडाई
लतिका सी मुझसे आ लिपटी,मेरी बाहों में अलसाई
सूरज उगा,प्रखर हो चमका,तन मन में वो आग लगा दी
सुबह सुबह मुझ को सहला कर,तुमने मेरी सुबह बना दी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'