Wednesday, September 9, 2020

समझौता -बुढ़ापे में

अब तुझको छोड़ बुढ़ापे में ,जाऊं किस पास ,बता तू ही
इस बढ़ी उमर में कौन मुझे ,डालेगा घास ,बता तू ही
क्या हुआ रही ना घास हरी ,सूखी तो है पर स्वाद भरी
वह भी चरने न मुझे देती ,भूखा रखती है  ,सता यूं ही
ये बात भले सच है तेरी ,है उमर जुगाली की मेरी ,
सोचा न कभी था ,दूर मुझे ,कर दोगी ,दिखा ,धता यूं ही
मैं कमल पुष्प कुम्हलाया सही,तुम भी जूही की कली न रही
आइना देखो ,हालत का ,लग तुम्हे जाएगा ,पता यूं ही
देखो अब जीना ना मुमकिन ,मैं तुम्हारे तुम मेरे बिन ,
क्यों व्यर्थ झगड़ते ,एक दूजे पर ,हम अहसान जता यूं ही
मैं अब भी प्यार भरा सागर ,अमृत छलकाती तुम गागर ,
कल कल कल कर तू बहने दे ,इस जीवन की सरिता यूं ही
ना मुझे मिलेगी और कोई ,ना तुझे मिलेगा और कोई ,
बरसायें प्यार भूल जाएँ ,आपस में हुई खता यूं ही

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं क्यों देखूं  इधर उधर

मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे ,
यूं देख रेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर
सुन्दर,मनमोहक,आकर्षक,अनमोल कृति तुम ईश्वर की ,
जब खड़ी सामने हो मेरे , तो मैं क्यों देखूं इधर उधर

दो नयन तुम्हारे ,दो मेरे ,जब मिले ,नयन हो गये  चार
कुछ हुआ इस तरह चमत्कार ,खुल गए ह्रदय के सभी द्वार
तुम धीरे धीरे ,चुपके से ,आई और मन में समा गयी ,
मैं भी दिल हार गया अपना ,आपस में हममें हुआ प्यार
अब पलक झपकते नैन नहीं ,बिन तुमको देखे चैन नहीं ,
जिस तरफ डालता हूँ  नज़रें ,तुम ही तुम आती मुझे नज़र
मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे ,
यूं देख रेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर  

दिन रात तुम्हारे ख्वाबों में ,खोया रहता दीवाना मन
कुछ असर प्यार का है ऐसा ,छाया रहता है पागलपन
हल्की सी भी आहट  होती ,यूं लगता है तुम आयी हो ,
दिन भर बेचैन रहा करता ,पाने को तुम्हारे दरशन
तुन बिन सबकुछ सूना सूना ,दुःख विरह वेदना का दूना ,
बस हम मन ही मन प्यार करें ,कोई भी होता नहीं मुखर
मैं रहूँ देखता सिर्फ तुम्हे ,तुम रहो देखती सिर्फ मुझे ,
यूं देखरेख में आपस की ,जाता है अपना वक़्त गुजर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '