Wednesday, September 12, 2012

परेशानी की वजह

        परेशानी की वजह

तुम परेशां,हम परेशां,हर कोई है परेशां,

                         परेशानी किस वजह है,कभी सोचा आपने
बात है ऐसी कोई जो खटकती मन में सदा,
                         याद करिये किया था क्या कोई लोचा आपने
बहुत सी चिंतायें जो रहती लगी घुन की तरह,
                          गलतियां तो खुद करी,औरों को कोसा  आपने
या की फिर बढ़ने को आगे,जिंदगी की दौड़ में,
                           क्या कभी तोडा था ,कोई  का भरोसा आपने
 हमने उनसे पूछा ये,तो उनने हम से ये कहा,
                           जो भी ,जैसा चल रहा है,चलने दो,खामखाँ,
परेशानी की वजह को ढूँढने की फ़िक्र में,
                           एक परेशानी बढ़ा कर, करें खुद को  परेशां

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चीपट-घिसे हुए साबुन की

चीपट-घिसे हुए साबुन की

घिसे हुए साबुन की चीपट,

न पकड़ में आती है,न काम में आती है
या तो यूं ही गल जाती है,
या व्यर्थ फेंकी जाती है
मगर उस घिसी हुई चीपट को,
अगर नए साबुन के साथ चिपका दो,
तो आखरी दम तक काम आती है
बुजुर्ग लोग भी,
घिसे हुए साबुन की चीपट की तरह है,
उम्र भर काम आते है
और बुढ़ापे में,चीपट से क्षीण हो जाते है
नयी पीढियां यदि नए साबुन की तरह,
उन्हें अपने साथ प्यार से चिपका ले,
तो उम्र भर काम आते है
वर्ना चिंताओं से गल जाते हैं,
या फेंक दिए जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'