Wednesday, August 10, 2011

जीवन दर्शन

जीवन दर्शन
---------------
मै का मय है बड़ा नशीला,
             सर पर चढ़ बोला करता है
अहंकार का मूल यही है,
               सबको बढबोला करता है
होता जब कोई मदांध है,
                 तो आने लगती सड़ांध है
पूर्ण विकस कर जब इतराता,
                  होने लगता क्षीण चाँद है
जब तक पानी बंधा बाँध से,
                  बिजली और उर्जा देता है
बाँध तोड़ बहता गरूर से,
                  तहस नहस सब कर देता है
,कितने ही बन जाओ बड़े तुम,
                   मर्यादा में रहना सीखो
अहंकार को मत छूने दो,
                    मंथर गति से बहना सीखो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

घर का खाना

घर का खाना
----------------
पकवानों को देख बहुत मन ललचाता है
थाली में पर घर का खाना ही आता है
अच्छा लगने लगता जो खाते रोजाना
सबको अच्छा लगता अपने घर का खाना
लेकिन कभी कभी मन हो जाता है बेकाबू
जब पड़ोस के चौके से आती है खुशबू
कभी कभी होटल जाने को भी जी करता
पेट मगर घर की रोटी से ही है भरता
वैसे ही, सूखी लकड़ी हो या हो हथिनी
सबको अच्छी लगती अपनी अपनी पत्नी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बनो हजारे

बनो हजारे
-------------
तुमने ये संसार रचा है,सच बतलाना मुझको भगवन
एक अनार में इतने दाने, कैसे सजा सजा भरते तुम
कितने मीठे और रसीले,एक एक मोती से सुन्दर
मिल कर गले एक दूजे से,पास पास रहते है अन्दर
कैसे गेदे के पुष्पों में ,कई पंखुडियां खुशबू वाली
एक दूजे से बंध कर रहती,और महकती है मतवाली
क्यों गुलाब की कई पंखुडियां,एक साथ मिल कर खिलती है
कितनी सुन्दर शोभित होती,और कितनी खुशबू मिलती है
ये सब रचनाएँ तुम्हारी,रूप संगठित जिनका निखरा
मानव भी तुम्हारी रचना,फिर क्यों रहता बिखरा,बिखरा?
क्यों ना वो अनार दानो सा,एक दूजे के संग रह पाता
बाँध हजारों पंखुड़ी संग में,खिला हजारे सा बन जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'