कान्हा -बुढ़ापे में
कान्हा बूढ़े,राधा बूढी ,कैसी गुजर रही है उन पर
बीते बचपन के गोकुल में,दिन याद आते है रहरह कर
माखनचोर,आजकल बिलकुल ,नहीं चुरा,खा पाते मख्खन
क्लोस्ट्राल बढ़ा,चिकनाई पर है लगा हुआ प्रतिबंधन
धर ,सर मटकी,नहीं गोपियाँ,दूध बेचने जाती है अब
कैसे मटकी फोड़ें,ग्वाले,बेचे दूध,टिनों में भर सब
उनकी सांस फूल जाती है ,नहीं बांसुरी बजती ढंग से
सर्दी कहीं नहीं लग जाए ,नहीं भीगते ,होली रंग से
यूं ही दब कर ,रह जाते है,सारे अरमां ,उनके मन के
चीर हरण क्या करें,गोपियां ,नहा रही 'टू पीस 'पहन के
करना रास ,रास ना आता ,अब वो जल्दी थक जाते है
'अंकल'जब कहती है गोपी,तो वे बहुत भड़क जाते है
फिर भी बूढ़े ,प्रेमीद्वय को,काटे कभी प्रेम का कीड़ा
यमुना मैली, स्विंमिंगपूल में ,करने जाते है जलक्रीड़ा
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
कान्हा बूढ़े,राधा बूढी ,कैसी गुजर रही है उन पर
बीते बचपन के गोकुल में,दिन याद आते है रहरह कर
माखनचोर,आजकल बिलकुल ,नहीं चुरा,खा पाते मख्खन
क्लोस्ट्राल बढ़ा,चिकनाई पर है लगा हुआ प्रतिबंधन
धर ,सर मटकी,नहीं गोपियाँ,दूध बेचने जाती है अब
कैसे मटकी फोड़ें,ग्वाले,बेचे दूध,टिनों में भर सब
उनकी सांस फूल जाती है ,नहीं बांसुरी बजती ढंग से
सर्दी कहीं नहीं लग जाए ,नहीं भीगते ,होली रंग से
यूं ही दब कर ,रह जाते है,सारे अरमां ,उनके मन के
चीर हरण क्या करें,गोपियां ,नहा रही 'टू पीस 'पहन के
करना रास ,रास ना आता ,अब वो जल्दी थक जाते है
'अंकल'जब कहती है गोपी,तो वे बहुत भड़क जाते है
फिर भी बूढ़े ,प्रेमीद्वय को,काटे कभी प्रेम का कीड़ा
यमुना मैली, स्विंमिंगपूल में ,करने जाते है जलक्रीड़ा
मदनमोहन बाहेती'घोटू'