Sunday, March 23, 2014

हम सभी टपकने वाले है

 हम सभी टपकने वाले है

विकसे थे कभी मंजरी बन, हम आम्र तरु की डाली पर ,
         धीरे धीरे फिर कच्ची अमिया ,बन हमने  आकार  लिया
थोड़े  असमय ही टूट गए,आंधी में और तूफ़ानो में,
          कुछ को लोगों ने काट, स्वाद हित, अपने बना अचार लिया
कुछ लाल सुनहरी आभा ले ,अपनी किस्मत पर इतराये ,
            कुछ पक कर चूसे जायेंगे ,कुछ पक कर कटने वाले है 
कुछ बचे  डाल पर सोच रहे ,कल अपनी बारी आयेगी ,
           सब ही बिछुड़ेगें डाली से  ,हम सभी  टपकने वाले  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

न होली ना दिवाली है

                 न होली ना दिवाली है

अजब दस्तूर दुनिया का ,प्रथा कितनी निराली है
खता खुद करते, लेकिन दूसरों को देते गाली है
न तो जलती कहीं होली,न ही दीपक दिवाली  के,
भूख से पेट जब जलता ,न होली ना  दिवाली  है
अगर खींचो ,चढ़े ऊपर ,ढील दो तो जमीं पर है,
हवा में उड़ रही कोई ,पतंग तुमने सम्भाली है
पराया माल फ़ोकट में ,बड़ा ही स्वाद लगता है,
मज़ा बीबी से भी ज्यादा ,हमेशा देती साली है
अगर वो कोठरी काली है जिससे हम गुजरते है,
सम्भालो लाख ,लेकिन लग ही जाती लीक काली है 
भले एक बार खाते पर, मज़ा दो बार लेते  है ,
मनुज से तो  पशु अच्छे ,वो जो करते जुगाली है
जमा करने की आदत में,ऊँट हम सबसे अव्वल है ,
 खुदा ने  पानी की टंकी ,जिस्म में उनके  डाली है
छोड़ बाबुल का घर जाती ,किसी की बन वो घरवाली ,
किसी औरत के जीवन की ,प्रथा कितनी निराली है
सुनो बस बात तुम मीठी ,मिठाई ना मयस्सर है ,
खुदा  ने चाशनी 'घोटू 'के खूं  में, इतनी  डाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'