Tuesday, July 4, 2017

नदिया  यूं बोली सागर से 

तुम्हारा विशाल वक्षस्थल ,देख उछलती लहरें मन में 
इतनी थी मैं हुई बावरी, दौड़ी  आयी तुमसे मिलने 
तुम्हारा पहला चुम्बन जब ,लगा मुझे कुछ खारा खारा 
मैंने सोचा ,हो जाओगे ,मीठे हो जब मिलन  हमारा  
अपना सब मीठापन लेकर ,रोज आई  मैं पास तुम्हारे 
लेकिन तुम बिलकुल ना बदले ,रहे वही  खारे  के खारे  
तुमने तप कर ,बादल बन कर ,उड़ा दिया मीठापन सारा 
जन और जगती के जीवन हित ,देखा जब ये त्याग तुम्हारा 
तमने अपना स्वार्थ न देखा ,किया समर्पित अपना जीवन  
देख परोपकारी अंतर्मन ,भूल गयी मैं सब  खारापन 
इसीलिए बस दौड़ी दौड़ी ,तुमसे मिलने भाग रही हूँ 
पूर्ण रूप से ,तुम्हे समर्पित , निज मीठापन  त्याग रही हूँ 

घोटू 
सुख दुःख बाँटें 

नहीं हमको सिर्फ मीठा सुहाता ,सिर्फ हम नमकीन  खा  सकते नहीं 
मीठे और नमकीन का जब मेल हो,मज़ा आता खाने का ,तब ही सही 
वैसे जीवन में किसी को सुख सिरफ ,और किसी को दुःख सिरफ मिलते रहे 
रहे कोई मुश्किलों से जूझता ,फूल खुशियों के कहीं खिलते रहें 
अपने सुख ,दुःख और समस्याएं सभी ,मीठे और नमकीन सी हम बाँटले 
मुश्किलों के सारे दिन काट जायेंगें , जिंदगी का मज़ा मिल कर साथ  लें 

घोटू  
खारा समंदर कर दिया 

नदियों ने तो मीठा जल ही ,समंदर में भरा था,
उसका मीठापन सभी पर गुम हुआ जाने कहाँ 
कभी मंथन करने पर जो ,उगला करता रत्न था ,
बात ऐसी क्या हुई अब पहले जैसा ना  रहा 
हंस के मिल के ,संग रहती ,सब की सब जो मछलियां ,
हुई एक दूजे की दुश्मन ,भय था अंदर भर दिया 
इस तरह से अहम जागा ,मित्रता गायब हुई  ,
आपसी टकराव ने ,खारा समंदर  कर दिया 

घोटू