Thursday, June 6, 2013

प्यार की बरसात करदे

      
        प्यार की बरसात करदे 

छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले ,बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दे 
चाँद बादल में छुपा है 
मुख तुम्हारा चंद्रमा है 
चांदनी में नहा कर हम,सुहानी ये रात  कर दें 
उष्म मौसम है ,उमस है 
बड़ी मन में कशमकश है 
पास आओ,साथ मिल कर,पंख फैला कर उड़े हम 
मै हूँ पानी ,तुम हो चन्दन 
बाँध कर बाहों का बंधन 
एक दूजे में समायें, एक दूजे संग  जुड़े  हम 
हर तरफ बस प्यार बरसे 
प्रीत की मधु धार बरसे 
हवाएं शीतल बहे और हो हरेक मौसम सुहाना 
पुष्प विकसे,मुस्कराये 
बहारे हर तरफ  छाये 
और भवरे गुनगुनाये ,प्यार का मादक खजाना 
मिलन रस में माधुरी है 
जिन्दगी खुशियाँ भरी है 
जिन्दगी महके सभी की ,कोई ऐसी बात कर दें 
छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दें 

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

आज तुम जब नहाई होगी

       आज तुम  जब नहाई होगी 
       
                          आज तुम जब नहाई  होगी 
देख खुद को आईने में ,मुदित हो मुस्काई होगी 
                           आज तुम जब नहाई होगी 
विधी ने  तुम पर् लुटाया ,रूप का अनुपम खजाना 
किया घायल सैकड़ों को ,बनाया पागल दीवाना 
गुलाबों की मधुर आभा ,गाल पर तेरे बिखेरी 
बादलों की कालिमा सी ,सजाई जुल्फें घनेरी 
और अधरों में भरी है,सुधा संचित  प्रेम रस की,
आईने में स्वयं का चुम्बन किया ,शरमाई होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
कदली के स्तंभ ऊपर ,देख निज चंचल जवानी 
डाल चितवन,स्वयं पर तुम हो गयी होगी दीवानी 
देख  अमृत कलश उन्नत,बदन की  शोभा  बढाते 
झुका करके नज़र देखा उन्हें होगा ,पर लजाते 
भिन्न कोणों से निहारा होगा निज तन के गठन को ,
संगेमरमर सा सुहाना ,बदन लख, इतराई  होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
पडी ठंडी जल फुहारें ,मगर ये तन जला होगा 
स्वयं अपने हाथ से जब बदन अपना मला होगा 
स्निग्ध कोमल कमल तन से बहा होगा जल फिसल कर 
चाहता था संग रहना  ,मगर टिक पाया न पल भर 
रहा सूखा तौलिया ,तन रस न पी पाया अभागा ,
किन्तु खुश स्पर्श से था ,तुमने ली  अंगडाई होगी 
                                आज तुम जब नहाई होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'