Tuesday, July 26, 2016

आत्मकेंद्रित

एक तरफ तो 'अहंब्रह्म 'का पाठ पढाते हो
स्वाभिमान से जीवन जीना ,हमे सिखाते हो
कहते हो सब ख्याल रखें जो अपना अपना
तब ही होगा पूर्ण ,प्रगति का अपना सपना
और अगर जो कोई अपनी सोचे  हरदम
बुरा मान कर,उसे 'आत्मकेंद्रित'कहते हम
करो ब्रह्म पर आत्मा केंद्रित 'ब्रह्मज्ञान'है
करो आत्म पर आत्मा केंद्रित 'आत्मज्ञान'है
आत्मज्ञान जो मिला ,स्वयम को तुम जानोगे
खुद को समझा ,परमब्रह्म 'को पहचानोगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बड़ा है काम मुश्किल का

चमन में फूल बन खिलना ,बड़ा है काम मुश्किल का 
कभी  मंडराते  है  भँवरे ,कभी  तितली  सताती  है
कभी मधुमख्खियां आकर  ,किया रसपान करती है ,
कभी  बैरन  हवाएं  आ,   सभी खुशबू  चुराती   है 
कभी आ तोड़ता माली, चुभाता  सुई सीने में ,
कभी बन कर के वरमाला ,बनाया करते रिश्ते हम
कभी गजरे में गूँथ कर के ,सजाते रूप गौरी का,
मिलन की सेज पर बिछ कर,मसलते और पिसते हम
कभी अत्तार भपके में,तपा ,रस चूस सब लेता ,
कभी मालाओं में लटके ,सजाते रूप महफ़िल का
कभी हम शव पे चढ़ते है,कभी केशव पे चढ़ते है ,
चमन के फूल बन खिलना ,बड़ा है काम मुश्किल का

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 
यह तो कहने की बातें है

यह तो कहने की बातें है ,बिन गर्मी प्यार नहीं होता ,
मैंने तो बरफ़ के टुकड़ों को,आपस में चिपकते देखा है
ना अकलमन्द कोई होता है अक्लदाढ़ के आने से,
कितने ही अकल भरे करतब,बच्चों को करते देखा है
तन की ताक़त से भी ज्यादा,मन की शक्ति आवश्यक है ,
कितने अपँग ,लाचारों को,  मंजिल  पर पहुँचते देखा है
दफ्तर में दहाड़ा जो करते ,घर पर बनते भीगी बिल्ली,
कितने रौबीले  साहबों को,बीबी से  डरते  देखा  है
सागर का जल तो खारा है,मीठा जल होता नदियों का ,
फिर भी सागर से मिलने को,नदियों को उमड़ते देखा है
वो ऊपरवाला एक ही है,अल्लाह बोलो चाहे इश्वर ,
मजहब के नामपे बन्दों को  ,आपस में झगड़ते देखा है
ना बरसे तो त्राहि त्राहि ,ज्यादा बरसे तो तबाही है ,
हर चीज की अति जब होती ,तो काम बिगड़ते देखा है
तक़दीर मेहरबां जब होती ,धन छप्पर फाड़ बरसता है,
परसु बन जाता परसराम ,तक़दीर संवरते  देखा है
दुःख ,पीड़ा और तकलीफों में,अपने ही साथ निभाते है ,
फिर भी कुछ अपनो को अपनों से नफरत करते देखा है
जिन बच्चों पर सब कुछ वारा ,उनने ही किया तिरस्कृत है,
माँ बापों को उनके खातिर , दिन रात तड़फते देखा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अच्छा लगता है

कैसे भी मन को समझाना अच्छा लगता है
वादे कर  सबको भरमाना , अच्छा लगता है
जहाँ नेह,आदर मिलता है,स्वागत होता है ,
उस घर में ही ,आना जाना ,अच्छा लगता है
मै हूँ, तुम हो, ये हो, वो हो,  या कोई भी हो,
सबको ही फोटो खिंचवाना ,अच्छा लगता है
भीड़ इकट्ठी करने में ,मुश्किल तो होती है,
पर उनसे ,ताली बजवाना ,अच्छा लगता है
ऐसा लगता ,भरा हुआ है घी और शक्कर से ,
औरों की थाली का खाना ,अच्छा लगता है
मतलब हो या ना हो,कुछ की आदत होती है ,
उन्हें फटे में ,टांग अड़ाना ,अच्छा लगता है
आजादी का मतलब हमको छूट मिल गयी है ,
एक दूसरे पर गलियाना,अच्छा लगता है
कुश्ती अब न अखाड़े में,मोबाइल पर होती ,
फेसबुकों पर जा भिड़ जाना,अच्छा लगता है
कुछ को सुख मिलता है औरों को तड़फाने में ,
जले घाव पर ,नमक लगाना,अच्छा लगता है
एक जमाना था जब गाने मीठे लगते  थे ,
अब हल्ला गुल्ला ,चिल्लाना ,अच्छा लगता है
फल अच्छे ,दो चार दिनों में पर सड़ जाते है ,
नीबू का आचार पुराना ,अच्छा लगता है
अपने ही जब साथ छोड़ देते है अपनों का ,
तो  लोगों को ,हर बेगाना ,अच्छा लगता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'