रस के तीन लोभी
भ्रमर
गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं गाया करता
खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता
गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम वर्ण मैं
सबके संग ,हिलमिल कर रास रचाया करता
मैं हूँ रस का लोभी,महक मुझे है प्यारी ,
मधुर मधु पीता हूँ,मधुप कहाया करता
तितली
फूलों जैसी नाजुक,सुन्दर ,रंग भरी हूँ
बगिया में मंडराया करती,मैं पगली हूँ
रंगबिरंगी ,प्यारी,खुशबू मुझे सुहाती
ऐसा लगता ,मैं भी फूलों की पंखुड़ी हूँ
वो भी कोमल ,मैं भी कोमल ,एक वर्ण हम,
मैं पुष्पों की मित्र ,सखी हूँ,मैं तितली हूँ
मधुमख्खी
भँवरे ,तितली सुना रहे थे ,अपनी अपनी
प्रीत पुष्प और कलियों से किसको है कितनी
पर मधुमख्खी ,बैठ पुष्प पर,मधु रस पीती ,
मधुकोषों में भरती ,भर सकती वो जितनी
मुरझाएंगे पुष्प ,उड़ेंगे तितली ,भँवरे ,
संचित पुष्पों की यादें है मधु में कितनी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भ्रमर
गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं गाया करता
खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता
गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम वर्ण मैं
सबके संग ,हिलमिल कर रास रचाया करता
मैं हूँ रस का लोभी,महक मुझे है प्यारी ,
मधुर मधु पीता हूँ,मधुप कहाया करता
तितली
फूलों जैसी नाजुक,सुन्दर ,रंग भरी हूँ
बगिया में मंडराया करती,मैं पगली हूँ
रंगबिरंगी ,प्यारी,खुशबू मुझे सुहाती
ऐसा लगता ,मैं भी फूलों की पंखुड़ी हूँ
वो भी कोमल ,मैं भी कोमल ,एक वर्ण हम,
मैं पुष्पों की मित्र ,सखी हूँ,मैं तितली हूँ
मधुमख्खी
भँवरे ,तितली सुना रहे थे ,अपनी अपनी
प्रीत पुष्प और कलियों से किसको है कितनी
पर मधुमख्खी ,बैठ पुष्प पर,मधु रस पीती ,
मधुकोषों में भरती ,भर सकती वो जितनी
मुरझाएंगे पुष्प ,उड़ेंगे तितली ,भँवरे ,
संचित पुष्पों की यादें है मधु में कितनी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'