Wednesday, June 13, 2018

आजकल तो रह गए हम छाछ है 

जवानी के वो सुहाने दिन गए ,बुढ़ापे का हो गया आग़ाज़ है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी में थोड़ी भी ऊष्मा मिली ,खूं हमारा था उछालें  मारता 
दूध जैसे उफनने लगते थे हम,बड़ा ही मस्ती भरा  संसार था 
मलाई बन हसीं गालों पर लगे ,होते थे टॉनिक सुहागरात के 
उन दिनों की बात ही कुछ और थी ,मुश्किलों से संभलते जज्बात थे 
दिल किया खट्टा किसी ने फट गए ,किसी ने जावन जो डाला ,जम गए 
खोया बन के खोया अपने रूप को ,मथा जो कोई ने मख्खन बन गए 
अब पिघलते झट से आइसक्रीम से ,हमसे यौवन हो गया नाराज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम ,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी का सारा मख्खन खुट गया ,कुछ यहाँ कुछ वहां यूं ही बंट गया 
लुफ्त तो सबने ही जी भर कर लिया ,खजाना सब लुट यूं ही झटपट गया 
मलाई जो भी थी थोड़ी सी बची ,बुढ़ापे की बिल्ली ,आ चट कर गयी 
स्निग्धता अब भी बची है प्यार की ,दूध की ताक़त भले ही घट गयी 
अब तो खट्टी छाछ सी है जिंदगी ,मगर फिर भी ,स्वास्थवर्धक स्वाद है 
तुम बनाओ कढ़ी चाहे रायता ,अब  भी देती ,हृदय को आल्हाद है 
सुरों में अब भी मधुरता है वही ,भले ही अब ये पुराना  साज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम पीठ खुजाओ हमारी 

हम संग है एक दूजे के ,तो फिर कैसी लाचारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
इस बढ़ती हुई उमर में ,जो आई शिथिलता तन में 
 बढ़ गयी प्रगाढ़ता उतनी  ,हम दोनों के  बंधन में 
हम रोज घूमने जाते ,हाथों में  हाथ  पकड़ कर 
मिलती जब धुंधली नज़रें ,बहता है प्यार उमड़ कर 
रह कर के व्यस्त हमेशा 
हम रहे कमाते  पैसा 
बस यूं ही उहापोह में  ,ये उमर बिता दी सारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
है दर्द मेरे घुटनो में ,तुम इन पर बाम लगा दो 
नस चढ़ी पिंडलियों की है ,तुम थोड़ा सा सहला दो 
हमने झुकना ना सीखा ,जीवन भर  रहे तने हम 
अब रहा नहीं वो दमखम ,आया झुकने का मौसम 
नाखून बढे  पैरों के 
काटे हम एक दूजे के 
काम एक दूजे के आएं ,यूं हम तुम बारी बारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी ,तुम पीठ खुजाओ हमारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पुराने दिनों की यादें 

आते है याद वो दिन ,जब हम जवान थे 
कितने ही हुस्नवाले हम पे मेहरबान  थे 
हमारी शक्शियत का जलवा कमाल था
आती थी खिंची लड़कियां कुछ ऐसा हाल था 
लेकिन हम फंस के एक के चंगुल में रह गए 
शादी की ,अरमां दिल के आंसुओ में बह गए 
फंस करके गृहस्थी में, हवा सब निकल गयी 
चक्कर में कमाई के ,जवानी फिसल गयी
 होकर के रिटायर , हुए ,बूढ़े  जरूर  है 
चेहरे पे हमारे अभी भी ,बाकी नूर   है 
लेकिन हम हसीनो के  चहेते  नहीं  रहे 
आती है पास लड़कियां ,अंकल हमें कहे 
अब मामले में इश्क के ,कंगाल हो गए 
गोया पुराना ,बिका हुआ, माल हो गए 
एक बात दिल को हमारे,रह रह के सालती 
बुढ़ियायें भी तो हमको नहीं घास डालती 
हालांकि उनका भी तो है उजड़ा हुआ चमन 
मिल जाए जो आपस में तो कुछ गुल खिला दे हम 
लेकिन हमारी किस्मत ही कुछ रूठ गयी  है
हाथों से जवानी की पतंग ,छूट गयी  है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मोहब्बत का मज़ा -बुढ़ापे में 

न उनमे जोर होता है ,न हम में जोर होता है 
बुढ़ापे में,मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

गया मौसम जवानी का,यूं ही हम मन को बहलाते 
कभी वो हमको सहलाते,कभी हम उनको सहलाते 
लिपटने और चिपटने का ,ये ऐसा दौर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है   

टटोला करती है नज़रें ,जहां भी  हुस्न है  दिखता
करो कोशिश कितनी ही कहीं पर मन नहीं टिकता 
भटकता रहता दीवाना ,ये आदमखोर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

फूलती सांस ,घुटनो में ,नहीं बचता कोई दम खम
मगर एक बूढ़े बंदर से ,गुलाटी मारा करते हम 
भूख, पर खा नहीं सकते ,हाथ में कौर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

जिधर दिखती जवानी है ,निगाहें दौड़ जाती है 
कह के अंकल हसीनाएं ,मगर दिल तोड़ जाती है 
पकड़ में आ ही जाते हो ,जो मन में चोर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '