Monday, August 10, 2020

रणछोड़ कृष्ण

गोकुल छोड़ा ,गोपी छोड़ी और नन्द यशोदा को छोड़ा
जिसके संग नेह लगाया था ,उस राधा का भी दिल तोडा
खारे सागर का तट भाया ,मीठी यमुना के छोड़ घाट
और बसा द्वारका राज किया ,छोड़ा मथुरा का राजपाट
रबड़ी छोड़ी ,खुरचन छोड़ी ,पेड़े छोड़े ,छोड़ा माखन
ढोकले ,फाफड़े मन भाये ,तज दिए भोग तुमने छप्पन
उत्तर भारत की राजनीति में चक्र तुम्हारा था चलता
और युद्ध महाभारत के भी ,तुम्ही तो थे करता धरता
तुमने गीता का ज्ञान दिया और पूजनीय ,सिरमौर बने
पर जब उत्तर भारत छोड़ा ,रण छोड़ दिया ,रणछोड़ बने
उत्तर की संस्कृति को तुमने ,पश्चिम में जाकर फैलाया
गौ प्रेम तुम्हारा गोकुल का ,गुजरात के घर घर में छाया
जो प्रेम भाव तुमने सीखा ,बचपन में गोपी ,राधा से
गुजरात में जाकर सिखा दिया,तुमने सबको मर्यादा से
वह महारास वृन्दावन का ,बन गया डांडिया और गरबा
कहती है नमक को भी मीठा ,इतनी शांति प्रिय है जनता
यह तुम्हारा रणछोड़ रूप ,है प्रेम ,शांति का ही प्रतीक
घर घर में इसी रूप में तुम ,पूजे जाते  द्वारिकाधीश

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '  
आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ये लोग किसलिए जलते हैं

ये लोग किसलिए जलते है
इर्षा के मारे तिल तिल जल ,
मन ही मन बहुत उबलते है
ये लोग किसलिए जलते है

कोई जल कर होता उज्जवल ,
बन कर भभूत ,चढ़ता सर पर
कोई जल कर बनता काजल ,
नयनो में अंज, करता सुन्दर  
कोई जल कर दीपक जैसा ,
फैलता जग भर  में प्रकाश
तो कोई शमा जैसा जलता ,
परवानो का करता  विनाश
हो पास नहीं जिसका प्रियतम ,
वह विरह आग में जलता है
भोजन को पका ,पेट भरने ,
घर घर में चूल्हा जलता है
कोई औरों की प्रगति देख ,
जलभुन कर खाक हुआ करता
कोई  गुस्से में गाली दे ,
जल कर गुश्ताख हुआ करता
कोई की प्रेम प्रतीक्षा में ,
जलते आँखों के दीपक है
होते सपूत है जो बच्चे ,
वो कहलाते कुलदीपक है
मनता दशहरा,जला रावण ,
दीपावली  , दीप जलाते  है
होली पर जला होलिका को,
हम सब त्यौहार मनाते है
पूजा में दीप आरती में ,
करते जब हवन ,जले समिधा
माँ  के मंदिर में ज्योत जले ,
मातारानी, हरती दुविधा
जलना संस्कृति का अभिन्न अंग ,
काया जलती ,जब मरते है
ये लोग इसलिए जलते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '