Saturday, May 21, 2011

इक्कीस तारीख

         इक्कीस तारीख
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महीने में सबसे अच्छा दिन,
मुझको पहली तारीख लगती
क्योकि इस दिन  तनख्वाह मिलती
सबसे अच्छा महिना लगता मुझे फ़रवरी
क्योंकि इस महीने का हर दिन,
सबसे अधिक कीमती होता
काम करो अट्ठाईस दिन बस
और तुम पावो तनख्वाह पूरी
तीन पांच में झगडा होता,
नौ दो ग्यारह ,होते चम्पत
आँखें अगर चार हो जाती ,
सब कहते है हुई महोब्बत
और सबसे ज्यादा रोमांटिक,
तारीख होती, तारीख इक्कीस
क्योंकि इसमें छुपा हुआ होता है इक किस (kiss )

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


हम तो बस सूखे उपले है

हम तो बस सूखे उपले है
जिनकी नियति जलना ही है
         रोज रोज क्यों जला रहे हो
दूध,दही,घी,थे  हम एक दिन,
              भरे हुए ममता ,पोषण से
पाल पोस कर बड़ा किया था,
               प्यार लुटाया सच्चे मन से
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
                पढ़ा लिखा कर तुम्हे सवांरा
ये कोई उपकार नहीं था,
                 ये तो था कर्तव्य  हमारा
तुम चाहे मत करो,आज भी,
                  हमें तुम्हारी बहुत फिकर है
अब भी बहुत उर्वरक शक्ति,
                  हममे,मत समझो गोबर हैं
हमें खेत में डालोगे तो,
                  फसल तुम्हारी लहलहाएगी
जल कर भी हम उर्जा देंगे,
                  राख हमारी काम आएगी  
उसे खेत में बिखरा देना,
                 नहीं फसल में कीट  लगेंगे
जनक तुम्हारे हैं ,जल कर भी,
                   भला तुम्हारा ही सोचेंगे
क्योंकि हम माँ बाप तुम्हारे,
                  तुम्हे प्यार करते है जी भर
हाँ,हम तृण थे ,दूध पिलाया
                    तुम्हे,बच गए बन कर गोबर
और अब हम हैं सूखे उपले,
                    जिन्हें जला दोगे तुम एक दिन
राख और सब अवशेषों का,
                   कर दोगे गंगा में   तर्पण
       हम तो बस सूखे उपले है,   
     जिनकी नियति जलना ही है
               रोज रोज क्यों जला रहे हो
मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

हम तो बस सूखे उपले है

हम तो बस सूखे उपले है
जिनकी नियति जलना ही है
         रोज रोज क्यों जला रहे हो
दूध,दही,घी,थे  हम एक दिन,
              भरे हुए ममता ,पोषण से
पाल पोस कर बड़ा किया था,
               प्यार लुटाया सच्चे मन से
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
                पढ़ा लिखा कर तुम्हे सवांरा
ये कोई उपकार नहीं था,
                 ये तो था कर्तव्य  हमारा
तुम चाहे मत करो,आज भी,
                  हमें तुम्हारी बहुत फिकर है
अब भी बहुत उर्वरक शक्ति,
                  हममे,मत समझो गोबर हैं
हमें खेत में डालोगे तो,
                  फसल तुम्हारी लहलहाएगी
जल कर भी हम उर्जा देंगे,
                  राख हमारी काम आएगी  
उसे खेत में बिखरा देना,
                 नहीं फसल में कीट  लगेंगे
जनक तुम्हारे हैं ,जल कर भी,
                   भला तुम्हारा ही सोचेंगे
क्योंकि हम माँ बाप तुम्हारे,
                  तुम्हे प्यार करते है जी भर
हाँ,हम तृण थे ,दूध पिलाया
                    तुम्हे,बच गए बन कर गोबर
और अब हम हैं सूखे उपले,
                    जिन्हें जला दोगे तुम एक दिन
राख और सब अवशेषों का,
                   कर दोगे गंगा में   तर्पण
       हम तो बस सूखे उपले है,   
     जिनकी नियति जलना ही है
               रोज रोज क्यों जला रहे हो
मदन मोहन बहेती 'घोटू'