Sunday, March 27, 2016

       भिक्षामदेही

         तुम कोमलांगिनि ,मृदुदेही
         है हृदय रोग ,  मै  मधुमेही
          मै प्यार मांगता हूँ तुमसे ,
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
दीवानों का दिल लूट लूट ,
तुमने अपने आकर्षण से
निज कंचन कोषों में बांधा  ,
तुमने कंचुकी के बंधन से
क्यों मुझको वंचित रखती हो ,
अपने  संचित यौवन धन से
           मै प्यार ढूढ़ता हूँ तुम में ,
           है नज़र तुम्हारी  सन्देही
          भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
मै नहीं माँगता हूँ कंचन ,
मुझको बस,  दे दो आलिंगन
मधु भरे मधुर इन ओष्ठों से,
दे दो एक मीठा सा चुंबन
मेरी अवरुद्ध शिराओं में ,
हो पुनः रक्त का संचालन
          ना होगा पथ्य,अपथ्य ,तृप्त ,
          होगा पागल ,प्रेमी ,स्नेही
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
  होलिका दहन

एक हसीना थी
बड़ी नाजनीना थी
जलवे दिखाती थी
सबको जलाती थी
करती थी ठिठोली
नाम था  होली
उसको था वरदान
कोई भी इंसान
उसका संग पायेगा
बेचारा जल जाएगा
और एक प्रह्लाद था
एकदम फौलाद था
ग्यानी और गुणी था
धुन का धुनी  था
होली के मन भाया
गोदी में बैठाया
उसको था जलाना
पर वो था दीवाना
नहीं किसी से कम था
फौलादी  जिसम था
बड़ा ही था बली
जलाने उसे चली
 कोशिश बेकार गई
बेचारी हार गयी   
मात यहाँ पर खायी
उसे जला ना पायी
खुद ही पिघल गयी
होलिका जल गई

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

Wednesday, March 23, 2016

        गोबर की अहमियत

हमारी जिंदगी में कदर कितनी गाय भेंसों की ,
एक छोटे से उदाहरण से ,समझ सब आप सकते है
करे इंसान विष्टा तो,बहा  दी जाती है फ्लश में,
करे गर गाय गोबर तो,हम उपले थाप रखते है
पवित्तर मानते इतना ,लगाते चौका गोबर का ,
हवन में काम में लाते ,जलाते आग चूल्हे की,
उन्ही के अंगारों पर रोटियां हम सेक खाते है ,
बचे जो राख ,उससे भी ,हम बरतन साफ़ करते है

घोटू
       न रंग होली के फागुन में

लड़कियां देख कर 'घोटू' बहुत फिसले लड़कपन में
हुई शादी, हसरतें सब, रह गई ,मन की ही मन में
किसी को ताक ना सकते,कहीं हम झाँक ना सकते ,
बाँध कर रखती है बीबी, हमे अब  अपने   दामन में 
हमारी हरकतों पर अब,दफा एक सौ चुम्मालिस है,
न आँखे चार कर सकते किसी से ,हम है बंधन में
गर्म मिज़ाज़ है बीबी, हर एक मौसम में तपती लू,
न रिमझिम होती सावन में ,न रंग होली के फागुन में 
काटते रहते है चक्कर ,उन्ही के आगे पीछे  हम,
बन गए बैल कोल्हू के ,बचा ही क्या है  जीवन में

घोटू
       आशिक़ी और होली

जलवा दिखा के हुस्न का ,हमको थी जलाती ,
   ये जान कर भी  रूप पर ,उनके हम  फ़िदा  है
हमको न घास डालती थी जानबूझ कर ,
      हम समझे हसीनो की ये भी कोई अदा  है
देखा जो किसी और को बाहों में हमारी ,
      मारे जलन के ,दिलरुबा ,वो खाक हो गयी
प्रहलाद सलामत रहा,होलिका जल गयी,
       ये तो पुरानी,  होली वाली ,बात हो गयी

घोटू  
        होली की जलन
                  १
सुंदर कन्या कुंवारी ,जिसका रूप अनूप
ज्यों गुलाब का फूल हो,या सूरज की धूप
या सूरज की धूप ,हमारे  मन को  भायी 
लाख करी कोशिश,मगर वो हाथ  न आयी
हमे जलाती रोज ,दिखा कर नूतन जलवा
ललचाता था बहुत ,हुस्न का उनके हलवा
                   २
हमने कुछ ऐसा किया ,रहगयी मलती हाथ
देखा हमको दूसरी , हुस्न परी  के  साथ
हुस्न परी के साथ ,कुढ़ी कुछ ऐसी मन में
जल कर हो गई खाक ,आग यूं लगी बदन में
'घोटू'  ये तो वही  पुरानी बात  हो गयी
जला नहीं प्रहलाद ,होलिका ख़ाक हो गयी
                     ३
जानबूझ कर जो हमे ,न थी डालती घास
आगबबूला सी खिंची ,आई हमारे  पास
आई हमारे पास ,तमक से  लाल लाल थी
'घोटू'खुश थे  ,सफल हमारी  हुई चाल थी
लगा प्रेम से गले, प्यार कर  उन्हें मनाया
अंग  अंग  उनके ,होली का रंग   लगाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, March 22, 2016

        थीम सॉन्ग -क्लब 18

ये मन भावन ,सबको प्यारा ,सुंदर बड़ा हसीन है
                                      ये तो क्लब एट्टीन है
बूढ़े,बड़े,प्रौढ़ भी आकर ,टीन एजर बन जाते है
मस्ती करते,मौज मनाते  और नाचते,गाते है
यहां पनपता भाईचारा और समां  रंगीन  है
                                 ये तो क्लब एट्टीन है
एक बड़ा परिवार यहां पर ,मिलता,जुलता हँसता है
साथ साथ त्योंहार मनाते ,प्यार दिलों में बसता   है
आपस में दिल मिले ,बज रही ,यहां चैन की बीन है
                                        ये तो क्लब एट्टीन है
अच्छी सेहत और कसरत के लिए यहां जिम प्यारा है
खुल्ली छत से दिखता प्यारा ,सुंदर भव्य नज़ारा   है
यहां जकूज़ी  है, सोना  है ,और   बाथ    स्टीम   है
                                           ये तो क्लब एट्टीन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
                             

Monday, March 21, 2016

 पांच तत्व की प्रतिमा -नारी

हमार काया
को प्रभु ने पांच तत्वों से बनाया
हवा,पानी ,अग्नि ,धरती और आकाश
पर इनका आभास
नारी में होता है ख़ास
उनमे हवा तत्व है भरपूर मिलता
उनकी इजाजत के बिना ,
घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता
अग्नि तत्व भी स्पष्ट नज़र आता है
इनके सानिध्य  से ,कोई भी ,
पत्थर से पत्थर दिलवाला इंसान पिघल जाता है
और जब ये अपने जल तत्व का जलवा दिखलाती है
तो पति की सारी कमाई ,पानी  की तरह बहाती है
जब कभी ये सजधज कर ,इतरा कर ,
आसमान में उड़ती है
तो अपने आकाश तत्व से जुड़ती है
और जो कोई इन्हे छेड़े और हरकतें करे ऊल जलूल
तो ये उसे चटा देती है ,धरा तत्व की धूल
इसीलिये मैं इस पांच तत्व की प्रतिमा से डरता हूँ
और रोज सुबह उठ कर ,
अपनी पत्नी को दंडवत प्रणाम करता हूँ
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'






Sunday, March 20, 2016

 होली-रंगों का त्योंहार

        आज होली दिवस भी है,
         रंगों का  त्योंहार भी है
पर्व कल था जो दहन का
आस्थाओं के दमन का
कुटिलता के नाश का दिन
भक्ति के  विश्वास का दिन
         शक्ति के उस परिक्षण में
         जीत भी है ,हार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का त्योंहार भी है
  आग  भी है, फाग भी है
जलन है  अनुराग भी है
दाह भी है,  डाह भी है
चाह भी है, आह भी है 
          अजब है संयोग देखो,
          प्यार है,प्रतिकार भी है
          आज होली  दिवस भी है,
           रंगों का  त्योंहार भी है
आज उत्सव है मदन का
पर्व है ये  मधु मिलन का
प्रीत का,मनमीत का दिन
मचलते  संगीत का दिन
         आज रंगों में बरसता,
          प्यार है,मनुहार भी है
         आज होली  दिवस भी है,
          रंगों का  त्योंहार भी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, March 19, 2016

           बीबी का एडिक्शन

जिस दिन खाने को ना मिलती ,है बीबीजी  डाट हमे ,
     वो सारा का सारा  दिन ही, सूना सूना सा लगता  है
जिस सुबह नहीं हमको मिलती ,उनकी हाथों की बनी चाय ,
     उस दिन गायब रहती चुस्ती ,और मन सुस्ती से भरता है
जिस उनके हाथों छोंकी , है दाल न होती थाली में,
       उस दिन रोटी का टुकड़ा भी,मुश्किल से गले उतरता है
जिस दिन न मिले उनकी झिड़की,खुल ना पाती दिल की खिड़की
      जिस दिन तकरार नहीं होती ,उस दिन ना प्यार उमड़ता है
जिस दिन वो नहीं रूठती है,मिलता ना मज़ा मनाने का ,
      उनकी लुल्लू और चप्पू में  ,आता आनन्द निराला है
वो नाज़ ,अदायें नखरों से हर रोज लुभाती रहती है ,
    हो जाती  मेहरबान जिस दिन ,तो कर देती मतवाला है
जिस दिन ना देती है पप्पी ,वो ऑफिस जाने के पहले ,
   उस दिन जाने क्यों ऑफिस में ,दिन भर झुंझलाहट रहती है
इतना 'एडिक्ट'हो गया हूँ ,मैं इस 'लाइफ स्टाइल 'का ,
   ना चलता उन  बिन काम भले ,कितनी ही खटपट  रहती है

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'        
     
      फिसलन

फिसलता कोई कीचड़ में ,फिसलता कोई पत्थर पर
कोई चिकनाई में  फिसले ,कोई  बर्फीले  पर्वत  पर
कोई  फिसले है चढ़ने में,कोई फिसले उतरने  में
फिसलने कितनी ही आती ,सभी के आगे  बढ़ने में
जो पत्थर पर पड़ा पानी ,फिसलते लोग है अक्सर
बड़ा फिसलन भरा  होता ,है पानी में पड़ा पत्थर
फिसलना एक क्रिया जो,न की जाती पर हो जाती
उन्हें जब हम पकड़ते है,वो हाथों से फिसल  जाती
हसीं हो जिस्म और चेहरा ,फिसलती नज़रें है सबकी
बड़ी फिसलन भरी होती, है ये राहें महोब्बत  की
जुबां  गलती से जो फिसले ,बात में में फर्क हो जाता
हंसाई जग में होती है  और बेड़ा गर्क  हो   जाता
फंसा लालच के चक्कर में,फिसल इंसान जाता है
चंद  चांदी के सिक्कों पर ,फिसल  ईमान जाता है
फिसलती हाथ  से सत्ता और पत्ता कटता है जिनका
उन्हें रह रह सताता है ,जमाना बीते उन दिन का
जवानी जब फिसलती है ,बुढ़ापा  घेर लेता है
अर्श से फर्श पर आना ,जरा सी देर   लेता  है
बड़ी फिसलन है दुनिया में,संभल कर चाहिए चलना
 नहीं तो मुश्किलें  होगी ,पड़ेगा हाथ फिर  मलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Tuesday, March 15, 2016

दादा पोता संवाद

दादा से पोते ने पूछा ,
जब आपका था जमाना
न बिजली थी ,न गैस ,
तो फिर कैसे पकता था खाना
दादा ने बतलाया
बेटे ,खाना उन दिनों ,
मिटटी के चूल्हे पर जाता था पकाया
आश्चर्य चकित होकर बोला पोता
ये मिट्टी का चूल्हा है क्या होता
दादा बोले ये चूल्हा ,
मिट्टी से बनी ,U शेप का ,
एक 'थ्री डाइमेंशनल ' बॉडी होती थी ,
जिसके U की इनर 'केविटी' में 'फ्यूल' ,
जो होती थी सूखी लकड़ी या
'काऊडंग' की 'केक '  जिन्हे उपले कहते थे ,
जलाये जाते थे और U के ' अपर सरफेस'पर
पतीली रख कर दाल उबालते थे
और तवा रख कर रोटी बनाई जाती थी ,
जो उपलों के अंगारों पर फुलाइ  जाती थी
पोता बोला 'काउ डंग 'पर रोटी बनाना
कितना 'अन हाइजीनिक 'होता होगा वो खाना
दादा बोले बेटे ,आग में वो ताक़त है
हर चीज को शुद्ध  कर देती है
एनर्जी भर देती है
और उस पर जो रोटी पकती है
तो सौंधी सौंधी खुशबू लिए ,
उसमे बड़ा स्वाद आता है
और साथ में सिलबट्टे पर पीसी चटनी हो
तो सोने में सुहागा है
पोते ने टोका
एक्सक्यूज मी दादा,
ये सिलबट्टा है क्या होता
दादा बोले ये सिलबट्टा ,
'स्टोन एज' का ,एक 'टू पीस'
'इक्विपमेंट 'है होता
जिसका लोअर पार्ट ,जिसे सिल कहते थे ,
होता है एक फ्लेट पत्थर
जिसके 'सरफेस' को ,
'रफ'किया गया होता है टाँच  कर 
और अपर 'पार्ट  भी होता था पत्थर का ,
उसका शेप ऐसा होता था कि,
 दोनों हाथों के पकड़ में आ जाता था
वो बट्टा कहलाता था
सिल और बट्टे के बीच में रख कर ,
धनिया,मिर्ची अदरक आदि मसालों को
क्रश किया जाता था
और बार बार 'फॉरवर्ड और बैकवर्ड ,
एक्शन ' करने पर ,
चटनी बन जाता था
पोते  ने हँस  कर कहा ,
 एक चटनी के लिए आप ,
इतना 'फॉरवर्ड एंड बैकवर्ड'मोशन करते थे 
क्या 'ओन लाइन 'नहीं खरीद सकते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      बीबी की अहमियत

एक फिलम,
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे 'थी आई
जो लोगों के मन इतनी भायी
कि एक सिनेमा हाल में ,
कितने ही वर्षों चल गई
उन्ही सितारों की ,
एक दूसरी फिल्म,'दिलवाले'भी बनी,
पर पता ही न चला ,
कब आई,और कब गई
इस उदाहरण का इतना सा सार है
बिना दुल्हनिया के ,दिलवाले बेकार है
हमे ये हक़ीक़त समझने की जरूरत है
जिंदगी में लम्बा चलने के लिए ,
दुल्हनिया की कितनी अहमियत है

घोटू
सबसे अच्छी हीरोइन

एक दिन ,पत्नीजी ने ,अपने ही अंदाज से ,
मेरी क्लास ले ली और बोली,
एक बात बताना सच्ची सच्ची
तुमको ,फिल्म की कौनसी हीरोइन
लगती है अच्छी
मुझे लगा कि ये गंगा उल्टी क्यों बह रही है
कहीं ये मेरे पत्नीव्रत धर्म का,
 इम्तहान  तो नहीं ले रही है
अब मैं क्या बताता
किस के गुण गाता
मेरी सांप छूछन्दर वाली गति थी ,
न निगलते बनता था न उगलते
फिर भी मैंने जबाब दिया ,
थोड़ा संभलते संभलते
मैंने कहा जानेमन
मेरी जिंदगी की फिलम
की सबसे खूबसूरत हीरोइन हो तुम
जब से मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ लिया है
इन फिलम वाली हीरोइनों का,
 ख्याल ही छोड़ दिया है
वो बोली बनो मत ,मुझे सब पता है
हीरोइनों को देख कर ,
तुम्हारे मन में क्या क्या पकता है
मैंने तो यूं ही पूछ लिया था,लगाने को पता
कि मेरी और तुम्हारी चॉइस में ,
कितनी है समानता
मैंने भी अपना दिल खोल दिया
और हिम्मत करके बोल दिया
एक दीपिका पदुकोने है ,कनक की छड़ी है
उसकी आँखे बड़ी बड़ी है
लम्बी , दुबली पतली और छरहरी है
पर उसका रूप हमको भाया नहीं है
क्योंकि उसका बदन ,तुमसा गदराया नहीं है
एक अनुष्का शर्मा है ,जिसकी तरफ ,
गलती से भी नहीं झाँका है
क्योंकि विराट कोहली से उसका टांका है
हाल ही आई ,आलिया भट्ट  अच्छी है
पर अभी छोटी नादान  बच्ची है
कटरीना,जबसे रणवीर कपूर के कटी है ,
रहती  परेशान है
उसे फिर से याद  या सलमान हैं
और प्रियंका,
जिसने बजा दिया अपना विदेशों में भी डंका
कभी 'मेरीकॉम 'बन बॉक्सिंग करती है
कभी पोलिस इन्स्पेटर बन अकड़ती है
उसे तो चाहते हुए भी लगता डर है
ये आजकल की हीरोइनें ,
हमारी पसंद के बाहर है
हमारे जमाने की हीरोइनें ,
बैजन्तीमाला की तरह इठलाती थी
मालासिंहा की तरह ,धूल के फूल खिलाती थी
मीनाकुमारी की तरह ,दारू पीकर ,पति को लुभाती थी
मंदाकिनी की तरह झरने में नहाती थी
श्रीदेवी या हेमा मालिनी होती थी
स्वच्छंद विहारिणी होती थी
रूप में परी होती थी
यौवन से भरी होती थी
आज की हीरोइनें उनके आगे
पानी तक भी नहीं मांगे
अब तो वो भूले बिसरे गीत बन गई है
जो जब भी याद आतें है
हम गुनगुनाते है
अब तुम पूछ रही तो बताना मेरा फर्ज है
और सच कहने में क्या हर्ज है
मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हीरोइन ,/
मेरी सास की बेटी है
जो मेरे सामने ही बैठी है
जो कभी जूही चावला सी लगती है ,
कभी राखी है ,कभी रेखा है
मैंने जब भी उसे देखा है,
नए अंदाज में देखा है
मेरी बेगम ,एक लाजबाब हस्ती है
फूल खिलाती है,जब हंसती है
जिसके आगे छोटे नबाब सैफ अली खान की,
ज़ीरो फिगर वाली,बेगम,करीना भी पानी भरती है
आजकल तो रोज रोज ही,
नयी नयी हीरोइनों का दौर है
पर तुममेरी सदाबहार हीरोइन हो,
तुम्हारी बात ही और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, March 12, 2016

          हम अंग्रेजी छोड़ न पाये

अंग्रेजों ने भारत छोड़ा,हम अंग्रेजी छोड़ न पाये
रहे गुलामी में ही बंध कर,वो जंजीरें तोड़ न पाये
केवल नहीं बोलते,पढ़ते,अंग्रेजी है ,पीते ,खाते
बच्चे जाते ,इंग्लिश स्कूल ,अपनी भाषा बोल न पाते
नहीं जलेबी,पोहा,इडली,उन्हें चाहिए पीज़ा,बरगर
करे नाश्ता,खाएं पास्ता। ऐसा भूत चढ़ा है सर पर
कहते है माता को मम्मी,'डेड'पिताजी को कहते है
बिन शादी के,लड़की लड़के ,पति पत्नी जैसे रहते है
धर्म कर्म और संस्कार को,इनने बिलकुल भुला दिया है
मातपिता को वृद्धाश्रम में ,भेज दिया और रुला दिया है
इंग्लिश में तारीफ़ करते है ,इंग्लिश में देते है गाली
इनके लिए ,महज छुट्टी ही ,होती होली और दिवाली
यूं त्योंहार मनाया जाता ,होटल जाते ,खाना खाने
जबसे 'योग 'बना है 'योगा',इसे लगे है ये अपनाने
भूल गए 'बसंत पंचमी' 'वेलेंटाइन'दिवस मनाते
दे कर कार्ड ,मदर फादर डे ,को है अपना फर्ज निभाते
राग रागिनी ,ना मन भाती, पाश्चात्य संगीत  लुभाता 
इंग्लिशदां लोगों से मिलना जुलना और रखते है नाता
भारतीय संस्कृति भुला कर ,पाश्चात्य में ऐसे भटके
न तो इधर के,नहीं उधर के ,बने त्रिशंकु से हम लटके
वेद,उपनिषद,गीता,गंगा, से हमख़ुद को जोड़ न पाये
अंग्रेजों ने भारत छोड़ा ,हम अंग्रेजी ,छोड़  न पाये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
       मारे गए गुलफाम

मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
         खेत कोई और ही आ चर  गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
         और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते  रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
        दूसरा ही कोई आ ,चट  कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
           दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे  गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको  लिखी,
         दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
         दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी  बन कर रह गए ,
         छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
                        बेटियां

बेटी को तो 'बेटा' कह कर ,अक्सर लोग बुलाते है
पर भूले से, भी बेटे को  ,'बेटी'  कह  ना   पाते  है
बेटी होती भले परायी , अपनापन  ना  जाता  है 
बेटा ,अपना होकर ,अक्सर, बेगाना  हो जाता है
बेटी ,शादी होने पर भी ,गुण  पीहर के  गाती  है
बेटे के सुर बदला करते ,जब  शादी हो जाती है
बेटे ,उदगम भूल ,नदी का ,चौड़ा पाट  देखते  है
अपना पुश्तैनी सब ,वैभव  ,ठाठ और बाट देखते है 
आज ,बदौलत जिनकी उनने ,ये धन दौलत पायी है
तिरस्कार ,उनका करते है, जिनकी सभी कमाई है
हक़ रखते ,उनकी दौलत पर,उन्हें  समझते नाहक़ है
लायक उन्हें बनाया जिनने ,वो लगते नालायक  है
वृद्ध हुए माँ बाप , दुखी हो,घुटते  रहते  है मन में
बेटे ,उनको बोझ समझ कर ,छोड़ आते ,वृद्धाश्रम में
या फिर उनको  छोड़ अकेला,खुद विदेश बस जाते है
केवल उनका ,अस्थिविसर्जन ,करने भर को आते है
माता पिता , वृद्ध जब होते,रखती ख्याल बेटियां है
उनके ,सब सुख दुःख में करती ,साझसँभाल  बेटियां है
क्योंकि बेटियां ,नारी होती, उनमे ममता  होती है
दो परिवार ,निभाया करती,उनमे क्षमता  होती है
बेटी तो  अनमोल निधि है,और प्यार का सागर  है
खुशनसीब वो होते जिनको,  बेटी देता  ईश्वर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, March 6, 2016

              गंगा तट -अक्षयवट

कल कल बहती प्रीतधार है,लम्बा चौड़ा  वृहद  पाट है
कहीं वृक्ष है,कहीं खेत है ,  और कहीं पर बने घाट है
जो भी मेरे पास बस गए,सच्चे मन से सबको सींचा
मैंने उनकी प्यास बुझाई ,उनका फूला फला  बगीचा
 टेडी मेडी बहती सरिता ,किन्तु शांत मैं ,ना नटखट हूँ
                                            मैं तो गंगाजी का तट हूँ
हरा भरा हूँ ,लम्बा चौड़ा ,मैं विस्तृत हूँ  और  घना हूँ
शीतल ,मंद ,हवाएँ देता ,सुख देने  के  लिए बना हूँ
पंछी रहते ,बना घोसला,और पथिक को मिलती छाया
जो भी आया,थकन मिटाई, सबने यहां  आसरा पाया
जिसकी जड़ें ,तना बन जाती ,अपने में ही रहा सिमट हूँ
                                            मैं वो पावन अक्षयवट हूँ
कुछ ने अपनी जीवन नैया ,रखी बाँध कर मेरे तट पर
उनका जीवन सफल हो गया,डुबकी लगा,पुण्य अर्जित कर
हतभागी वो जिनके मन में ,श्रद्धा भाव नहीं था  किंचित
मुझे छोड़ कर ,चले गए वो, रहे   छाँव  से मेरी  वंचित
उनको प्यार नहीं दे पाया , इसी पीर से  मै  आहत  हूँ
                                              मैं तो गंगाजी का तट हूँ ,
                                              मै वो पावन अक्षयवट हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                                          
 
            सच्चा समर्पण        

मैं तो एक कंटीली झाडी का गुलाब हूँ
सुंदर हूँ,मैं महक रहा हूँ, लाजबाब  हूँ
मैंने खुद को सच्चे मन से किया समर्पित
जीवन भर के लिए हो रहा तुम पर अर्पित
चाहे अपनी जुल्फों में तुम इसे सजाओ
या फिर मिश्री डाल ,इसे गुलकंद  बनाओ

मैं तो आम्र तरु की हूँ एक कच्ची  अमिया
खट्टी,मीठी और चटपटी ,लगती बढ़िया
मुझे काम में लो,जैसे भी   लगता  अच्छा
चटखारे ले ,चाहे इसे  ,खाओ तुम कच्चा
चाहे पका ,आम रस पियो ,और मज़ा लो
या फिर काट पीट ,इसका ,आचार बनालो

तुम्हे समर्पित हूँ मैं   पिसा हुआ सा बेसन
अपने अंग लगालो  इसे बना कर उबटन
या फिर घोलो और  मसाले  सारे  डालो
गर्म तेल में तलो, पकोड़े आप बना  लो
जैसे भी सुख मिले ,काम मे इसको लाओ
सेवा करू तुम्हारी ,तुम मुझको  अपनाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      कनक छड़ी से खिचड़ी तक

जब हम घोड़ी पर चढ़ते है,उसे 'घुड़ चढ़ी 'हम कहते है
मिलती सुंदर ,प्यारी पत्नी ,उसको 'कनकछड़ी 'कहते है
जब वो बढ़ मोटी  हो जाती,तो बन जाती 'मांस चढ़ी 'है
बात बात में नाक सिकोड़े ,तो सब कहते 'नाक चढ़ी' है
जब ज्यादा सर पर चढ़ जाती,बहुत 'सरचढ़ी'कहलाती है
खुश ना रहती,चिड़चिड़ करती,बहुत 'चिड़चिड़ी'बन जाती है
कैसी भी हो ,पर मनभाती ,'सोनचिड़ी'सी वो लगती है
खिला पुलाव जवानी में थी ,आज 'खिचड़ी 'वो लगती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

                  मैं नीबू हूँ

सुन्दर रूप,सुनहरी काया ,दिलकश प्यारी सी खुशबू हूँ
                                                                 मैं नीबू हूँ
पीला रंग,रसीला तनमन ,कुछ खट्टा,लेकिन मन भाता
कितने ही भोजन पदार्थ का,और चाट का स्वाद  बढ़ाता
छोले और भठूरे प्यारे ,या फिर चाट  फलों वाली में
खट्टे चावल हो या पोहे ,मुझे पाओगे  हर थाली में
दाल,सलाद और चटनी में ,मेरे बिना काम ना चलता
मेरे रस  से  बनी शिकंजी, देती  गर्मी  में  शीतलता
मुझे काट कर ,मिर्च मसाला मिला रखो,बनता अचार हूँ
चीनी संग मिल ,खटटी मीठी,चटनी बन कर मैं तैयार हूँ
लोग निचोड़ा करते मुझको ,अपना स्वाद बढ़ाया  करते
मेरी जीर्ण शीर्ण काया से ,घिस बरतन चमकाया  करते
अदना पर कमजोर नहीं हूँ ,भरा विटामिन सी है तन में
ढेरों दूध ,फाड़ सकती है , मेरी कुछ बूँदें,  कुछ  क्षण  में
कभी बिमारी में, मैं भेषज,और कभी सौंदर्य  प्रसाधन
तांत्रिक ,मंत्र तंत्र सिद्धि का ,मुझे बनाया करते   साधन
टोने और टोटके करता ,बुरी नज़र से  ,सदा  बचाता
इसीलिए मैं ,दुकानो में , मिरची संग, लटकाया जाता
हो कुरबान ,सभी को सुख दो,परोपकार है मैंने सीखा
अंग्रेजी में ,मैं 'लेमन' हूँ,  जिसने ले मन लिया सभीका
यूं तो मेरे गुण गाते ही रहते  , लोग , स्वाद  के  मारे
पर अपने सुख सुविधा हित जब वो खरीदते मंहगी कारें  
पूजा कर ,टायर के नीचे , सदा दबाया जाता  क्यूँ  हूँ
                                                            मैं नीबू हूँ