Friday, August 15, 2014

नहीं तो तुम कहाँ रहते ?

       नहीं तो तुम कहाँ रहते ?

हुई शादी हमारी थी ,बड़े ही दिन थे वो प्यारे
न रहते तुम बिना मेरे ,न रहती बिन मैं  तुम्हारे
बदन था छरहरा मेरा,बड़ी पतली  कमरिया थी
तुम्हारे प्यार में पागल ,मेरी बाली उमरिया थी
बसाया मैंने तुमको था ,अपने उस नन्हे से दिल में
तुम ही तुम छाये रहते थे ,मेरे सपनो की महफ़िल में
हुए बच्चे हमारे जब , लगे  रहने   मेरे  दिल  में
जगह पड़ने लगी तब कम,पड़े हम कितनी मुश्किल में
मेरे दिल में कहीं पर तुम,कहीं बच्चे बसा करते
बड़ी होती गृहस्थी में ,गुजारा बस ,यूं ही  करते
मगर कुदरत ने मुश्किल का ,निकाला हल बड़ा न्यारा
कमर पतली थी जो मेरी,उसे चौड़ा  बना डाला
उमर इतनी शरारत से ,नहीं तुम बाज आते हो
बहुत मैं हो गयी मोटी  ,मुझे कह कर चिढ़ाते हो
 कमर मेरी बनी कमरा ,मुझे तुम कोसते  रहते
खुदा का शुक्र समझो ये,नहीं तो तुम कहाँ रहते ?

घोटू
 

तीर या तुक्का

      तीर या तुक्का

जहाँ पर तीर ना चलते ,वहां पर तुक्का चलता है 
हाथ जब मिल नहीं पाते , वहां पर मुक्का चलता है
लग गयी बीड़ी और सिगरेट पर है जब से पाबंदी,
प्रेम से गुड़गुड़ाते  सब  ,आजकल हुक्का चलता  है
हो गयी भीड़ है इतनी ,यहाँ देखो,वहां देखो,
जगह अपनी बनाने को,बस धक्कमधुक्का चलता है
गए वो दिन जब लोगो में ,मोहब्बत ,दोस्ताना था ,
बचा अब रस न रिश्तो में,बड़ा ही सूख्खा चलता है
हो गयी लुप्त सी है  प्यार की स्निघ्ता 'घोटू',
इसलिए लोगों का व्यवहार, काफी लुख्खा चलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
  

बदलते नाम-पुराना स्वाद

      बदलते नाम-पुराना स्वाद

सिवइयां बन गयी' नूडल ',परांठे बन गए 'पीज़ा',
       समोसे आज 'पेटिस'है,और बड़ापाव 'बर्गर'है
पराठों में भरो सब्जी तो  'काठी रोल'कहलाते ,
       पकोड़े और कटलेटों में थोड़ा सा ही अंतर है
भुनाते जब थे मक्का को ,भाड़ में कहते थे धानी ,
     उसे 'पोपकोर्न'कह कर के ,प्यार से लोग खाते है
पिताजी 'डेड'है ,माता ,आजकल हो गयी 'मम्मी '
     बहन 'सिस 'और दादी को ,'ग्रांड माँ 'कह बुलाते है
बहुत सी खाने की चीजें ,जिन्हे हम खाते सदियों से,
      स्वाद से खाते है अब भी ,मगर फ्लेवर विदेशी है
किन्तु कुछ चीज ऐसी है,अभी तक भी जो देशी है,
      बदल पाये न रसगुल्ले ,जलेबी भी ,जलेबी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'