समंदर
समंदर ,समंदर,समंदर,समंदर
भला हो,बुरा हो,खरा हो या खोटा ,
समा जाता सब कुछ ही है इसके अंदर
समंदर,समंदर,समंदर,समंदर
उठा करते दिल में है लहरों के तूफां ,
मचलता है चंदा को लख ,पागलों सा
उडा ताप सूरज का देता है , पानी,
तो बनते है बादल,जनक बादलों का
बढ़ता ही जाता है खारापन मन में,
पर कुछ ऐसा जादू है उसकी कशिश में
भरे मीठा जल ,दौड़ती सारी नदियां ,
इससे मिलन को, समाने को इसमें
सीपों में स्वाति की बूंदे ठहरती ,
समा कर के इसमें है ,मोती बनाती
इसे मथने से रत्न सोलह निकलते ,
अमृत कलश और लक्ष्मी भी आती
बड़ी व्हेल सुरसा सी,या छोटी मछली ,
सभी को सहारा ,मिले इसके अंदर
समंदर,समंदर ,समंदर ,समंदर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
समंदर ,समंदर,समंदर,समंदर
भला हो,बुरा हो,खरा हो या खोटा ,
समा जाता सब कुछ ही है इसके अंदर
समंदर,समंदर,समंदर,समंदर
उठा करते दिल में है लहरों के तूफां ,
मचलता है चंदा को लख ,पागलों सा
उडा ताप सूरज का देता है , पानी,
तो बनते है बादल,जनक बादलों का
बढ़ता ही जाता है खारापन मन में,
पर कुछ ऐसा जादू है उसकी कशिश में
भरे मीठा जल ,दौड़ती सारी नदियां ,
इससे मिलन को, समाने को इसमें
सीपों में स्वाति की बूंदे ठहरती ,
समा कर के इसमें है ,मोती बनाती
इसे मथने से रत्न सोलह निकलते ,
अमृत कलश और लक्ष्मी भी आती
बड़ी व्हेल सुरसा सी,या छोटी मछली ,
सभी को सहारा ,मिले इसके अंदर
समंदर,समंदर ,समंदर ,समंदर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'