Wednesday, July 8, 2015

बिगड़े रिश्ते

          बिगड़े रिश्ते

कई बार ,
सहेजे हुए गेहूं में भी घुन लग  जाते है
पिसे हुए आटे  में, कीड़े  पड़  जाते  है
संभाली हुई दालों में ,फफूंद लग  जाती है 
पर उन्हें हम फेंकते नहीं,
साफ कर,छान कर ,कड़क धूप  देते है
और फिर से सहेज लेते है
इसी तरह ,
जब आपसी रिश्तों में ,
शक के कीड़े और स्वार्थ का घुन लगता है
तो उन्हें ,प्यार की धूप देकर
और सौहार्द की चलनी से छान ,
फिर से सहेजा जा सकता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खाने के शौकीन

      खाने के शौकीन

हमारे शौक खाने के ,हमसे क्या क्या कराते है
हम मूली,गोभी,आलू के,बना खाते  परांठे   है
बड़ा चिकना सा वो बैंगन ,ताज पहने था मतवाला
इस तरह आग में भूना ,उसका भुड़ता बना डाला
गुलाबी छरहरी गाजर का था जो सेक्सी  जलवा
उसको किस किस किया ,भूना,बनाया टेस्टी हलवा
काट मोटे से कद्दू को ,बनाये  आगरा  पेठे
दूध को फाड़,छेना कर,हम रसगुल्ले बना बैठे
बना हम क्या का क्या देते ,बड़े खाने के हैं  रसिया
चने से दाल,फिर बेसन ,कभी लड्डू,कभी भुजिया
फुलकिया आटे की फूली ,में भर कर चरपरा पानी
आठ दस यूं ही गटकाते ,हमारा कोई ना सानी
कभी चटनी दही के संग , मसाला आलू भर खाते  
पानीपूरी ,गोलगप्पा,कहीं पुचका  कह पुचकाते
हम पालक ,मिर्ची ,बेंगन के, पकोड़े तल के खाते है
हमारे शौक खाने के ,हम से क्या क्या कराते है

घोटू

जड़-चेतन

             जड़-चेतन

अंकुरित बीज जब होता ,तो नीचे जड़ निकलती है
पेड़  पौधों में जीवन का ,जड़ें  संचार  करती  है
जड़ों में जान है जब तक ,वृक्ष सब चेतन रहते है
जो चेतन रखती है सबको,उसे फिर जड़ क्यों कहते है

घोटू

रूमानी मौसम

              रूमानी मौसम

कलेजा आसमां का चीर ,बरसती रिमझिम
ये बूँदें बारिशों की ,प्यार की ,जैसे सरगम
भीग कर कपडे भी ,तन से चिपकने लगते है ,
 रूमानी इस कदर बारिश का ये होता मौसम

घोटू 

मधुमक्खी सी औरतें

          मधुमक्खी सी औरतें

औरतें होती है ,मधुमक्खी सी कर्मठ
परिवार हित करती दिन भर ही है खटपट
उड़ उड़ कर ,पुष्पों से ,करती है मधु संचित
छत्ते को भर देती ,रह जाती ,खुद  वंचित
डालता छत्ते पर ,कोई जो बुरी  नज़र
काट काट उसका वो बुरा हाल देती कर
एक दूजे संग गहरा ,बड़ा प्यार है इनका
बसा मधु छत्ते में ,परिवार  है  इनका

घोटू 

जमे हुए रिश्ते

           जमे हुए रिश्ते

आजकल हालत हमारी ,इस तरह की हो रही है
रिश्ते ऐसे जम गए है ,जैसे जम जाता  दही है
नींद हमको नहीं आती ,उनको भी आती नहीं है
जानते हम ,हो रहा जो ,सब गलत कुछ ना सही है
हमारे रिश्तों में  पर    ऐसी दरारें पड़  गयी है
अहम का टकराव है ये ,दोष कोई का नहीं है
सो रहे हम मुंह फेरे,वो भी उलटी  सो रही  है
मिलन की मन में अगन पर ,जल रही वो वही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीत का अंदाज

                 जीत का अंदाज          

हरेक चूहे में इतनी काबलियत कहाँ होती है ,
                 मिले एक कपडे की चिंदी ,और बजाज बन जाए
कभी भी जिसके पुरखों ने ,न मारी मेंढकी भी हो,
                 हिम्मती बेटा  यूं निकले  ,कि तीरंदाज  बन जाए
भरा मन में जो ज़ज्बा हो,अगर कुछ कर दिखाने का,
                    तो कायनात की सब ताकतें भी साथ देती है,
तुम्हारे हौंसले को फक्र  से सलाम सब बोलें,  
                    तुम्हारी जीत का कुछ इस तरह ,अंदाज बन जाए  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यादें -बरसात की

              यादें -बरसात की

हमको तो बारिश में भीगे ,एक अरसा हो गया ,
               मगर वो रिमझिम बरसता प्यारा सावन याद है
याद है वो नन्ही नन्ही ,बूंदों की मीठी चुभन ,
                      श्वेत  भीगे वसन से वो झांकता तन ,याद है
पानी में तरबतर तेरा थरथरा कर कांपना,
                     संगेमरमर से बदन की ,प्यारी सिहरन याद है
तेरी जुल्फों से टपकती ,मोतियों की वो लड़ी,
                      और भीगे से अधर का , मधुर चुम्बन  याद है
मांग से चेहरे बहती लाली वो सिन्दूर की,
                      आग तन मन में लगाता ,तेरा यौवन याद है
तेरे संग बारिश में मेरा ,छपछपा कर नाचना ,
                       आज भी मुझको वो अपना दीवानापन याद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'