Saturday, October 19, 2019

सजना संवरना

नहीं पड़ती कोई जरुरत ,है बचपन में संवरने की ,
जवानी में यूं ही चेहरे पे  छाया नूर होता  है
दिनोदिन रूप अपने आप ही जाता निखरता है ,
लबालब हुस्न से चेहरा भरा भरपूर  होता है
मगर फिर  भी हसीनायें ,संवरती और सजती है,
आइना देख कर के अक्स भी मगरूर होता है
पार चालीस के घटती लुनाई जब है चेहरे की ,
नशा सारा जवानी का ,यूं ही काफूर होता है
सफेदी बालों में और चेहरे पे जब सल नज़र आते ,
बुढ़ापा इस तरह आना   नहीं  मंजूर होता है
तभी पड़ती है जरूरत ख़ास ,नित सजने सँवरने की ,
नहीं तो हुस्न का जलवा ये चकनाचूर होता है

घोटू 
पर्यटक का प्यार

आज मेरी चाह 'अजमेरी 'हुई है ,
और 'दिल्ली' की तरह है दिल धड़कता
'चेन्नई 'सा चैन भी खोने लगा है ,
'आगरे' की आग में तन बदन जलता
मैं 'अलीगढ' का अली हूँ ,तुम कली थी,
देह' देहरादून' सी विकसी  हुई है
मन बना है 'बनारस' जैसा रसीला ,
मुरादें  अब , 'मुरादाबादी' हुई है
चाहता हूँ प्यार से दिल विजय करके ,
तुझे 'जयपुर' में गले जयमाल डालूं
बना रानी ,रखूँ  'रानीखेत' दिल में ,
मिलान की रजनी 'मनाली 'में मनालूं

घोटू  
माँ का आशीर्वाद

बचपन से ले अब तक जिसका ,रहा हमारे सर पर साया
जिसने हमको पाला,पोसा ,पढ़ा लिखा इंसान बनाया  
जीवन में आगे बढ़ने का सदा दिया हमको प्रोत्साहन
जिस ममता की मूरत  माँ ने ,प्यार लुटाया हम पर हरदम
चली गयी वो हमें छोड़ कर ,घर में  बिखर गया  सूनापन
याद तुम्हारी ,आती माता ,हमको हर दिन ,हर पल ,हर क्षण
बैठी हो तुम ,दूर स्वर्ग में ,किन्तु नेह जल हो  छलकाती
फूलें फलें ,रहें सुखी हम   ,सब  पर आशीषें  बरसाती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '